BHOPAL. एमपी अजब है, सबसे गजब है। प्रदेश की तस्वीर चमकाने के लिए कुछ साल पहले मध्यप्रदेश सरकार ये टैग लाइन लेकर आई थी। इसके सहारे प्रदेश की खासियतों को खूब प्रचार- प्रचार भी किया गया लेकिन अब यही टैग प्रदेश में जारी गडबड़झालों की पहचान बन गया है। विभागों के हजारों करोड़ रुपए के घपले घोटाले तो आए दिन चर्चा में रहते हैं लेकिन छतरपुर नगर पालिका की कारगुजारी इन सब पर भारी है। जहां अधिकारी बड़े निर्माण कार्य और टेंडरों में कमाई का रास्ता खोजते हैं लेकिन छतरपुर नगर पालिका के जिम्मेदारों ने मरे हुए गधों के नाम पर ही लाखों रुपए डकार लिए हैं।
ये है गधा घोटाला
नगर पालिका परिषद छतरपुर के वार्ड 38 की महिला पार्षद काशीबाई कुशवाह के पास नगरीय प्रशासन विभाग के सागर स्थित संभागीय कार्यालय से बीते दिनों एक मोबाइल कॉल पहुंचा था। काशीबाई के प्रतिनिधि और उनके पुत्र पुष्पेन्द्र ने मोबाइल फोन पर बात की। कॉल करने वाले ने उन्हें बताया कि आपके वार्ड में पिछले दिनों एक गधा मरा है। मरे हुए गधे को उठाने के लिए नगर पालिका प्रशासन द्वारा 2700 रुपए का बिल लगाया गया है। ऑडिट के लिए खर्च की पुष्टि करने उनको कॉल किया गया है। यह सुनकर पुष्पेन्द्र हैरान रह गए।
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मरे गधे पर 2700 खर्च
एक मृत गधे का शव उठाकर शहर के बाहर करने के लिए नगर पालिका द्वारा 2700 रुपए खर्च करने की बात सामने आने पर उन्होंने पड़ताल की। वार्डवासियों से चर्चा में उन्हें पता चला कि वार्ड में अब किसी के पास गधा ही नहीं है। यही नहीं पुष्पेन्द्र कुशवाह को पता चला कि पिछले दो-तीन साल से उनके वार्ड कोई गधा भी नहीं मरा है। जानकारी के बाद पुष्पेन्द्र कुशवाह सन्न रह गए कि आखिर मरे गधे का शव ठिकाने लगाने पर कैसे 2700 रुपए खर्च किए जा रहे हैं। उन्होंने मरे गधों को ठिकाने लगाने के नाम पर फर्जी तरीके से 2700 से लेकर 3000 रुपए तक खर्च दिखाकर नगर पालिका को चूना लगाने की शिकायत की है।
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गली-गली में हो रही चर्चा
मरे गधे के नाम पर हजारों की हेराफेरी का मामला अब छतरपुर नगर पालिका के हर वार्ड और गली में चर्चा का केंद्र बन गया है। नागरिक भी हैरान है कि अब तक निर्माण और खरीददारी के टेंडरों के सहारे बंदरबाट तो आम बात भी लेकिन कागजों पर गधों को मरा बताकर लाखों की हेराफेरी से भी अधिकारी-कर्मचारी पीछे नहीं हटे।इस मामले की शिकायत के बाद अधिकारियों ने भी चुप्पी साध ली है।