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विशेष गहन पुनरीक्षण (special intensive revision mp) के मध्य प्रदेश में धीमे काम ने अब अधिकारियों को संकट में डाल दिया है। बुधवार सुबह भारत निर्वाचन आयोग की समीक्षा बैठक में मध्य प्रदेश में धीमी रफ्तार पर आयोग ने नाराजगी जाहिर की। खासकर इंदौर, भोपाल और ग्वालियर जिला प्रशासन पर आयोग जमकर बरसा।
सुधार नहीं तो सभी कार्रवाई के लिए रहें तैयार
चुनाव आयोग की डायरेक्टर शुभ्रा सक्सेना ने इंदौर, भोपाल और ग्वालियर शहर को लेकर भारी नाराजगी जाहिर की।
उन्होंने सीधे शब्दों में अधिकारियों को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि यहां के जिला निर्वाचन अधिकारी यानी कलेक्टर, साथ में चुनाव की जिम्मेदारी संभालने वाले निगमायुक्त अन्य सहायक निर्वाचन अधिकारी सभी कार्रवाई के लिए तैयार रहें।
अगली बैठक के पहले सुधार नहीं दिखे तो फिर हम सख्त कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटेंगे। इस मामले में कोई देरी नहीं चलेगी। डायरेक्टर ने कहा कि कलेक्टर (ग्वालियर कलेक्टर रुचिका चौहान) (आईएएस कौशलेन्द्र विक्रम सिंह )मैदानी समस्याओं को हैंडल करेंगे।
इंदौर और भोपाल निचले पायदान पर
इंदौर और भोपाल खासकर मध्य प्रदेश में निचले पायदान पर हैं। यहां पर 10 फीसदी ही डिजिटलाइजेशन हुआ है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें फार्म भरकर मतदाता बीएलओ को देता है। फिर वह आयोग की एप पर इनका डिजिटलाइजेशन करता है।
इसमें इंदौर और भोपाल निचले पायदान पर है। इंदौर में यह काम करीब 10 फीसदी ही हुआ है। सभी काम 4 दिसंबर तक करके देना है।
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इंदौर में 28 लाख मतदाता, समस्या आयोग से शुरू
इंदौर में 28 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। करीब तीन लाख मतदाताओं के ही फार्म अभी लौटकर आए हैं। हालांकि समस्या आयोग की तरफ से ही शुरू हुई है।
चार नवंबर को ही सभी फार्म छपकर चुनाव अधिकारियों को मिल जाने थे। आयोग ने मध्य प्रदेश में केवल एक सिंगल वेंडर अतुल मेहता को रखा। यानी इस अकेले वेंडर को मध्य प्रदेश में 11 करोड़ से ज्यादा फार्म छापकर पूरे प्रदेश में देना थे (हर मतदाता के दो फार्म)।
इसने इंदौर में करीब दस दिन देरी से यह फार्म दिए। इसके लिए भी इंदौर के अधिकारियों को जो प्रिंटिंग मशीन ली वह अपने पास ली। दिन-रात पटवारियों और आरआई को बैठाकर खुद फार्म छपवाए।
इसके बाद यह बीएलओ के पास पहुंचाए गए। फार्म छपकर आने के दो दिन के भीतर इनका वितरण बीएलओ को हो गया। अब बीएलओ घर-घर जाकर फार्म पूरे दे चुके हैं लेकिन अभी मतदाताओं से लौटकर नहीं आए हैं।
मतदाता को यह आ रही समस्या
इस प्रक्रिया में मतदाता को अपने पिछले SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) की जानकारी देनी होती है। चाहे वो अपनी हो या फिर उनके परिवार के किसी सदस्य (जैसे पिता, चाचा, भाई आदि) की जानकारी।
शहरी इलाकों में लोग अक्सर ट्रांसफर या घर बदलते रहते हैं। इससे बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) को 30 से 40 फीसदी मतदाता ही नहीं मिल पा रहे हैं।
अगर इन मतदाताओं को फार्म नहीं मिले, तो उनके नाम लिस्ट से हट जाएंगे। इससे फिर एक बड़ा विवाद खड़ा हो सकता है। इस स्थिति में बीएलओ से लेकर जिला कलेक्टर तक, सभी चुनाव अधिकारी परेशान हैं। पूरी मशीनरी इस काम में लगी हुई है। बाकी का सारा काम रुक गया है।
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कलेक्टर बोले कर रहे हैं दिन-रात काम
कलेक्टर शिवम वर्मा ने कहा कि आयोग ने लगातार प्रगति दिखाने को कहा है। इंदौर में पूरी टीम और प्रशासन काम में जुटा हुआ है। दिन-रात मेहनत कर रहा है। इंदौर प्रशासन ने यह फैसला लिया है कि हर विधानसभा में जो बीएलओ 100% काम करेंगे। उन्हें सबसे पहले सम्मानित किया जाएगा और साथ ही नकद पुरस्कार भी दिया जाएगा।
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