इंदौर में एसआईआर के फार्म 70 फीसदी ही छपे, चुनाव आयोग को बताई देरी की समस्या

मध्य प्रदेश में एसआईआर फार्म छापने का काम धीमा पड़ा है। वेंडर से हुई देरी के कारण चुनाव प्रक्रिया में बाधा आई है। कलेक्टर और चुनाव अधिकारी इसका समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं। इंदौर में 56 लाख फार्म छापे जाने हैं।

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Sanjay Gupta
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INDORE. मध्यप्रदेश में भारत निर्वाचन आयोग का मतदाता सूची सही करने के लिए 4 नवंबर से एसआईआर शुरू हुआ। वहीं अब यह प्रक्रिया इंदौर सहित पूरे मध्य प्रदेश में पिछड़ गई है। इसमें फार्म छपने का काम ही लगभग 70 फीसदी पूरा हुआ है।

इसके बाद बीएलओ के जरिए इनके बांटने का काम होना है और फिर फार्म भरकर भी लेना है। यह सभी काम 4 दिसंबर तक किया जाना है। कुल मिलाकर SIR ने सिरदर्द बढ़ा दिया है।

कलेक्टर बोले और करेंगे काम, कवर करेंगे

इंदौर कलेक्टर शिवम वर्मा ने इसे लेकर सोमवार को समीक्षा की। उन्होंने कहा कि फार्म छपने के काम में वेंडर की लेटलतीफी हुई है, लेकिन अब अतिरिक्त मशीन लगवाकर यह काम किया जा रहा है। जो भी काम पिछड़ा है, उसे अतिरिक्त काम करके कवर किया जाएगा। इसकी जानकारी चुनाव आयोग को भी दे दी गई है।

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एसडीएम को दिए खास निर्देश

सूत्रों के अनुसार इस अहम मामले में कोई कोताही नहीं हो, इसके लिए कलेक्टर ने सभी चुनाव अधिकारियों, एसडीएम को खास निर्देश दिए हैं। उन्हें अपने स्तर पर प्रिंट करने वालों की व्यवस्था करने के लिए कह दिया गया है। इसका भुगतान कांट्रैक्ट लेने वाला ठेकेदार ही करेगा। अधिकारियों ने बूथ के हिसाब से मतदाता सूची डाउनलोड कर ली है और इसे बाहर छपवाना शुरू कर दिया है।

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क्यों फंस रहा है यह काम?

पूरे मध्य प्रदेश में इंदौर के इकलौते वेंडर यानी ठेकेदार के पास इसके लिए सबसे अहम प्रपत्र (फार्म) छापने का ठेका है। मध्य प्रदेश में मतदाताओं की संख्या 5 करोड़ 70 लाख से ज्यादा है। प्रति मतदाता 2 फार्म छापने हैं, यानी 11 करोड़ से ज्यादा।

वहीं इंदौर में ही करीब 28 लाख मतदाता के हिसाब से 56 लाख फार्म छापकर बांटे जाने हैं। हर जिले के चुनाव अधिकारी इन फार्म का इंतजार कर रहे हैं। हालत यह है कि प्रदेश भर के जिला कलेक्टर इन फार्म के लिए इंदौर में अपने अधिकारी भेज रहे हैं, ताकि वह वेंडर से बात करके काम में तेजी ला सकें।

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फार्म छापने का काम 3 नवंबर से हुआ शुरू

इंदौर के ठेकेदार अतुल मेहता के पास आयोग के इस काम का ठेका है। वर्क ऑर्डर के बाद 3 नवंबर से यह फार्म छपने शुरू हुए। इसके लिए ठेकेदार ने हर जिले में पेटी कांट्रैक्ट देकर फार्म छपवाने के लिए मशीनें लगवाई हैं, लेकिन अभी फर्म पहुंचने में तंगी हो गई है। पूरे प्रदेश के चुनाव अधिकारी हलाकान हो चुके हैं।

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पेटी कांट्रैक्ट में भी कम दरों का झंझट

सूत्रों के अनुसार मेहता को यह ठेका प्रति फार्म एक रुपए 49 पैसे में मिला है। वहीं, उनके जरिए पेटी कांट्रैक्ट बहुत ही सस्ती दर में 40-50 पैसे प्रति फार्म में दिया जा रहा है।

इसके चलते पेटी कांट्रैक्ट के जरिए इसमें सुस्ती दिखाई जा रही है। पेज यानी फार्म की गुणवत्ता भी गिर गई है। ऐसे में पूरे प्रदेश में इन फार्म की मारामारी हो गई है।

हर फार्म क्यूआर कोड वाला, मतदाता विशेष के लिए

इसमें एक और समस्या यह है कि ऐसा नहीं है कि कोई भी फार्म किसी भी बीएलओ और मतदाता के पास चला जाएगा। हर फार्म पर क्यूआर कोड है यानी हर मतदाता विशेष के लिए स्पेशिफिक फार्म है। वह दूसरे के पास नहीं जा सकता है।

चुनाव अधिकारियों के जरिए हर बूथ केंद्र के हिसाब से यह मतदाता सूची पहले अपलोड की गई है। वहीं, इसे छपवाने के लिए दी गई है। इसमें फार्म आधे-अधूरे छपने है। साथ ही, फार्म ऊपर-नीचे होने पर बीएलओ को भी इन्हें जमाकर हर मतदाता के पास पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए इन फार्म को क्रम से छापना और बूथ के हिसाब से बीएलओ को देना खासा अहम है। इसके बिना प्रपत्र और मतदाता का मैच ही नहीं होगा।

दिन-रात काम चल रहा है - ठेकेदार

वहीं वेंडर मेहता का कहना है कि अकेला वेंडर हूं, लेकिन मध्य प्रदेश में 600-700 मशीनें लगी हुई हैं। हर जिले में काम तेजी से चल रहा है। एक-एक बूथ का प्रिंट देना होता है, मिल जाएगा तो समस्या हो जाएगी। कुल 11 करोड़ 20 लाख प्रिंट करना है। दिन-रात काम कर रहे हैं।

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