तकनीकी चूक करने वाले इंजीनियर के पास आरओबी-फ्लाईओवर निर्माण की कमान

मध्य प्रदेश में सिंहस्थ से पहले उज्जैन और आसपास दो दर्जन फ्लाईओवर, आरओबी बनाने की तैयारी है। वहीं ऐसी ही जल्दबाजी में तैयार 350 प्रोजेक्ट तकनीकी कमियों से रोक दिए गए हैं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. मध्य प्रदेश में आने वाले दो सालों में दो दर्जन फ्लाईओवर, आरओबी और पुलों का निर्माण करने की तैयारी है। इसमें सबसे ज्यादा पुल, आरओबी और फ्लाई ओवर उज्जैन और आसपास के क्षेत्र में बनेंगे। इनमें से कुछ की डिजाइन-ड्राइंग तैयार हो चुकी है तो कुछ पर काम भी शुरू कर दिया गया है। वहीं जल्दबाजी में तैयार किए गए ऐसे ही 350 प्रोजेक्ट सेतु इकाई की जांच में कमियां सामने आने पर रोक दिए गए हैं।

ऐसी ही जल्दबाजी के चलते जबलपुर, भोपाल और इंदौर में पुलों के निर्माण में तकनीकी खामियां सामने आ चुकी हैं। ऐसे में तकनीकी रूप से मजबूत अधिकारियों की फील्ड पोस्टिंग के निर्देश अमल में आने से पहले नए पुल बनाने की जल्दबाजी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 

निर्माण पर ध्यान, निगरानी भूले

प्रदेश में कनेक्टिविटी बढ़ाने पर सरकार का फोकस है। इसके लिए नए फ्लाईओवर, रेलवे ओवर ब्रिज और पुलों का निर्माण कराया जा रहा है। लोक निर्माण विभाग के अधिकारी भी हजारों करोड़ रुपए के इन प्रोजेक्ट में खासी रुचि ले रहे हैं। सरकार नए पुलों के निर्माण पर ध्यान दे रही है लेकिन अधिकारी पुरानी गलतियों से सबक लेने तैयार नहीं है। साल 2024 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट में भी इन गलतियों का उल्लेख किया गया था।

तब यह मामला मध्य प्रदेश विधानसभा में भी चर्चा में आया था। कैग ने पुल की स्वीकृति के बाद अधिकारियों द्वारा इनकी डिजाइन और ड्राइंग में किए गए बदलावों पर भी आपत्ति दर्ज कराई थी। साल 2015 से 2020 के बीच प्रदेश में छोटे- बड़े 347 पुलों के निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी और डिजाइन- ड्राइंग में अचानक किए गए बदलाव से सरकार को 100 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा था। वहीं ठेकेदारों पर केवल आंशिक कार्रवाई ही की हुई थी। 

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क्यों रोक दिए गए 350 प्रोजेक्ट

पुल निर्माण में तकनीकी खामी से हुई फजीहत के बाद सरकार द्वारा कराई गई जांच में बड़े पुल, आरओबी और फ्लाईओवर की जनरल अरेंजमेंट ड्राइंग निरस्त कर दी गई है। इससे प्रदेश में करीब 350 प्रोजेक्ट रोकने पड़े हैं। इनमें 250 बड़े पुल, 100 आरओबी और 5 फ्लाईओवर भी शामिल हैं।

ऐशबाग और इंदौर आरओबी के निर्माण में उजागर हुई तकनीक चूक को देखते हुए सेतु इकाई को जांच सौंपी गई थी। अब हाईलेवल कमेटी  अलाइनमेंट, जियामैट्रिक स्ट्रक्चर और स्पीड कैल्कुलेशन के आधार पर इन प्रोजेक्ट्स की जनरल अरेंजमेंट ड्राइंग की दोबारा पड़ताल करेगी।  

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सरकार की मंशा पर भारी अधिकारी

हाल ही में भोपाल के ऐशबाग और इंदौर में पोलोग्राउंड आरओबी के निर्माण में तकनीकी खामी सामने आ चुकी है। इस पर सरकार ने पीडब्ल्यूडी के अनुभवी और तकनीकी रूप से दक्ष इंजीनियरों को मैदान में उतारने के निर्देश दिए हैं।

वहीं जिन अधिकारियों की निगरानी में निर्माण कार्यों में गड़बड़ियां हुई हैं, उन्हें ऑफिस में पोस्टिंग की जानी है। आदेश को महीना भर बीत चुका है लेकिन अब भी ज्यादातर प्रोजेक्ट पुराने इंजीनियर ही संभाल रहे हैं। इस आदेश पर पूरी तरह अमल ही नहीं किया गया है। 

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सरकारी खजाने को लग रहा है बट्टा

पिछले साल आई कैग की रिपोर्ट में लोक निर्माण विभाग की सेतु इकाई को प्लानिंग में फिसड्डी माना था। इस रिपोर्ट में स्पष्ट दर्ज किया गया था कि जिले से लेकर राज्य स्तर तक पुल निर्माण की प्लानिंग नहीं की गई। विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट, सर्वे और स्थल परीक्षण भी अधूरा रहा।

पुलों की डिजाइन-ड्राइंग में बार-बार परिवर्तन किए गए। जरूरी गाइडलाइन की अनदेखी की गई। पुलों की मजबूती का आधार नींव, पिलर्स और स्पॉन के नापजोख में भी हेराफेरी हुई। इस वजह से सरकार को करोड़ों रुपए अतिरिक्त खर्च करना पड़ा है। 

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क्यों बदलते हैं बार-बार डिजाइन  

  • स्वीकृति के बाद इंजीनियरों द्वारा ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए ये बदलाव किए जाते हैं। हांलाकि इससे पुल की गुणवत्ता पर असर पड़ता है और लागत भी बढ़ जाती है।   
  • डिजाइन बदलने का प्रमुख मामला भोपाल के ऐशबाग ओवरब्रिज का है जिसको लेकर देशभर में सरकार को फजीहत का सामना करना पड़ा है। 
  • इंदौर के पोलो ग्राउंड आरओबी का है जिसके निरीक्षण के दौरान नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के सामने ऑफिस में बैठकर डिजाइन तैयार करने की बात सामने आई थी। 
  • नर्मदापुरम के इटारसी जंक्शन के सोनासावरी आरओबी का है। इसके निर्माण के दौरान डिजाइन बदलने की शिकायत बीजेपी विधायक सीतासरन शर्मा ने ही की थी।   

    तकनीकी चूक के ये हैं उदाहरण 

    • इंदौर सेतु संभाग अंतर्गत ओंकारेश्वर डेम के नजदीक नागर घाट पर हाई लेवल पुल निर्माण में गड़बड़ी हुई थी। सर्वे और जांच के बाद पुल को 177 मीटर हाई फ्लड लेवल और 180.72 मीटर फॉर्मेशन लेवल पर बनाने की स्वीकृति मिली। जनरल अरेंजमेंट ड्राइंग हासिल कर ली गई लेकिन स्थन परीक्षण नहीं कराया गया। नतीजा लोग विरोध में आ गए। तब अधिकारियों ने मनमाने तरीके से डिजाइन बदली जिससे पुल की ऊंचाई हाई फ्लड लेवल से नीचे आ गई। इस चूक का खामियाजा सरकार के खजाने से 10 करोड़ ज्यादा खर्च कर भुगतना पड़ा।  
    • सलकनपुर-धर्मकुंडी मार्ग पर नर्मदा नदी के आंवलीघाट पुल के टेंडर और निर्माण एजेंसी के चयन में भी जल्दबाजी की गई। नदी में मिट्टी, चट्टान और जमीन के परीक्षण के लिए सेंपल ही नहीं जुटाए गए। निर्माण के दौरान नदी के बीच गहरी खाई ने काम अटका दिया। नदी में पिलर के निर्माण में भी दिक्कत खड़ी हुई और पुल के बीच डाले जाने वाले स्पान की लंबाई बढ़ाई गई। इंजीनियरों ने निर्माण के बीच तीन बार डिजाइन में बदलाव किया। इससे पुल की मजबूती प्रभावित हुई और लागत भी दो करोड़ रुपए तक बढ़ गई थी। 

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