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Photograph: (the sootr)
मध्य प्रदेश राज्य आजीविका मिशन में नियम विरुद्ध नियुक्तियों और आर्थिक अनियमितताओं को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने इस मामले में FIR दर्ज की है। जांच में सामने आया है कि बिना शासन की अनुमति के फर्जी HR मैनुअल के आधार पर नियुक्तियां की गईं और दस्तावेजों से छेड़छाड़ कर चहेतों को लाभ पहुंचाया गया। और यह सब हुआ आजीविका मिशन मिशन के तत्कालीन सीईओ ललित मोहन बेलवाल के कार्यकाल के दौरान…
5 प्वाइंट में इस मामले को समझते हैं….
✅ फर्जी HR मैनुअल के आधार पर नियुक्तियां
राज्य आजीविका मिशन में नियुक्तियों के लिए शासन से अनुमोदित मानव संसाधन नीति के बजाय, फर्जी HR मैनुअल तैयार कर उसी के आधार पर संविदा नियुक्तियां की गईं। नियमों को दरकिनार करते हुए पात्रता और अनुभव की भी अनदेखी की गई।
✅ फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर नियुक्ति
आजीविका मिशन मिशन के तत्कालीन सीईओ ललित मोहन बेलवाल ने सुषमा रानी शुक्ला को राज्य परियोजना प्रबंधक पद पर MBA और अनुभव के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त कर दिया। उन्होंने NIRD हैदराबाद का फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र और शैक्षणिक दस्तावेज प्रस्तुत किए थे।
✅ अवैध मानदेय वृद्धि
इतना ही नहीं ललित मोहन बेलवाल ने सुषमा रानी शुक्ला को चार महीने के भीतर ही ₹70,000 प्रतिमाह का मानदेय स्वीकृत कर दिया, जबकि उनके पास अपेक्षित अनुभव ही नहीं था। जबकि अन्य योग्य अभ्यर्थियों को यह लाभ नहीं मिला।
✅ भर्ती प्रक्रिया में मिलीभगत और पक्षपात
जांच में पाया गया कि तत्कालीन CEO ललित मोहन बेलवाल, विकास अवस्थी और मती शुक्ला ने मिलकर चयन प्रक्रिया को प्रभावित किया। सायकोमेट्रिक टेस्ट में तकनीकी खामियां और साक्षात्कार में मनमानी कर चयन किया गया।
✅ FIR दर्ज, जांच जारी
EOW ने IPC की धारा 420, 468, 471, 120-B और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7(सी) के तहत FIR दर्ज की है। जांच अभी जारी है और अन्य गड़बड़ियों के भी जल्द खुलासे की संभावना जताई जा रही है।
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2015 से 2018 के बीच हुआ था खेल
आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने राज्य आजीविका मिशन, मध्य प्रदेश में 2015 से 2018 के बीच की गई नियुक्तियों और व्यय में गंभीर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोपों पर FIR दर्ज की है। शिकायतकर्ता राजेश कुमार मिश्रा द्वारा की गई शिकायत के बाद यह मामला उजागर हुआ है, जिसमें विभिन्न कर्मचारियों की अवैध नियुक्तियां, फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल और मानदेय में अवैध वृद्धि का आरोप लगाया गया था।
सुषमा रानी शुक्ला की नियुक्ति में कैसे हुआ खेल
सुषमा रानी शुक्ला को वर्ष 2016 में राज्य परियोजना प्रबंधक (सामुदायिक संस्थागत विकास) के पद पर नियुक्त किया गया था। इस पद के लिए स्पष्ट शर्तें थीं, जिसमें MBA और कम से कम 15 वर्ष का प्रासंगिक अनुभव अनिवार्य था। जांच में यह तथ्य सामने आया कि उनके द्वारा प्रस्तुत MBA डिग्री और अनुभव प्रमाण पत्रों में गंभीर विसंगतियां पाई गईं, और चयन प्रक्रिया में पक्षपात किया गया।
फर्जी प्रमाणपत्र:
सुषमा रानी शुक्ला ने NIRD हैदराबाद से प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया, जो बाद में फर्जी पाया गया। इसके अलावा, उनके MBA डिग्री के प्रमाणपत्रों में भी विसंगतियां पाई गईं।
चयन प्रक्रिया में खामियां:
सुषमा रानी शुक्ला को चयन प्रक्रिया में सर्वोच्च अंक दिए गए, और चयन पैनल का गठन भी बेलवाल द्वारा किया गया, जिसमें बाहरी विशेषज्ञों का चयन पूर्व निर्धारित था। चयन के बाद भी शासन से अनुमोदन नहीं लिया गया था, फिर भी उन्हें नियुक्त कर दिया गया।
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अब आगे क्या
EOW ने अब तक की प्रारंभिक जांच में यह सिद्ध किया है कि ललित मोहन बेलवाल, विकास अवस्थी और सुषमा रानी शुक्ला ने मिलकर भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित किया, फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया और व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी नीतियों का उल्लंघन किया। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471, 120-बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7(सी) के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया है। वर्तमान में, EOW राज्य आजीविका मिशन में की गई अन्य अवैध गतिविधियों की जांच कर रही है। आने वाले समय में और भी कई गड़बड़ियों के खुलासे की संभावना जताई जा रही है।
विवादों से नाता रहा है बेलवाल का…
इसी साल फरवरी में मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (SGSY) में एक बड़े वित्तीय घोटाले और अवैध नियुक्तियों का मामला सामने आया था, जिसमें पूर्व IFS अधिकारी और तत्कालीन सीईओ ललित मोहन बेलवाल पर गंभीर आरोप लगाए गए थे। यह मामला भोपाल की फर्स्ट क्लास कोर्ट के आदेश पर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) द्वारा दर्ज किया गया था। बेलवाल पर आरोप था कि उन्होंने 2015 से 2023 के बीच अपने पद का दुरुपयोग किया और सरकारी नियमों की अनदेखी कर अवैध नियुक्तियां कीं, मानदेय में अनियमित बढ़ोतरी की और बीमा योजना के नाम पर करोड़ों रुपए का गबन किया।
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यह हैं पूर्व IFS बेलवाल पर मुख्य आरोप
अवैध नियुक्तियां: बेलवाल पर आरोप था कि उन्होंने मानव संसाधन गाइडलाइन के बिना कई सलाहकारों की नियुक्तियां कीं। यह गाइडलाइन उस समय अस्तित्व में नहीं थी, लेकिन फिर भी बेलवाल ने नियमों का उल्लंघन कर अवैध रूप से नियुक्तियां कीं।
वित्तीय अनियमितताएं: बेलवाल ने बीमा योजना के नाम पर 81,647 महिलाओं से 300 रुपये प्रति व्यक्ति वसूले थे, लेकिन किसी भी महिला को बीमा पॉलिसी प्रदान नहीं की गई थी। इससे कुल 1.73 करोड़ रुपये का गबन हुआ था।
नियमों का उल्लंघन: आरोप था कि बेलवाल ने सरकारी गाइडलाइनों और नियमों की अनदेखी करते हुए अपने पद का दुरुपयोग किया और अपने करीबी लोगों को सरकारी पदों पर नियुक्त किया।
न्यायिक कार्रवाई: भोपाल की फर्स्ट क्लास कोर्ट के आदेश पर EOW ने इस मामले की जांच शुरू की थी और ललित मोहन बेलवाल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। इस मामले की शिकायत राजेश कुमार मिश्रा नामक व्यक्ति ने की थी, जिन्होंने आरोप लगाया था कि बेलवाल ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए अवैध नियुक्तियां कीं और वित्तीय लाभ प्राप्त किया।
आंकलन और जांच की दिशा: जांच में यह संभावना जताई जा रही थी कि इस मामले की आंच मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस तक पहुंच सकती थी। क्योंकि बेलवाल को नियुक्ति देने और उन्हें संरक्षण देने के आरोप बैंस पर भी लगाए गए थे। इससे यह सवाल उठता था कि क्या बैंस की भूमिका इस पूरे घोटाले में कोई संलिप्तता थी या नहीं। EOW ने इस मामले की विस्तृत जांच शुरू कर दी थी, और प्रमुख सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को एक रिपोर्ट भी सौंपी थी।