JABALPUR. यूरो प्रतीक इस्पात इंडिया लिमिटेड के डायरेक्टर्स हिमांशु श्रीवास्तव, सन्मति जैन, सुनील अग्रवाल और कंपनी सेक्रेटरी लाची मित्तल को हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली। 30 अप्रैल 2025 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में इस बहुचर्चित मामले की अंतिम सुनवाई हुई, जिसमें चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत याचिका खारिज की जा चुकी है, तो आरोपियों को गिरफ्तारी से कोई संरक्षण नहीं दिया जा सकता।
जांच की प्रगति को लेकर उठे सवाल, जांच अबतक अधूरी
पिछली सुनवाइयों में हाईकोर्ट ने तत्कालीन एसपी को आदेश दिया था कि वह मामले की जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें। सुनवाई के दौरान यह जानकारी सामने आई कि रिपोर्ट अब तक पूर्ण नहीं हो पाई है, क्योंकि मामले में दो संदिग्ध रेजिग्नेशन लेटर की मूल प्रतियां जांच में उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। इस कारण फॉरेंसिक जांच अधूरी है। हाईकोर्ट ने माना कि जांच की दिशा और निष्पक्षता महत्वपूर्ण है, लेकिन यह गिरफ्तारी पर रोक का आधार नहीं बन सकती।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना का आरोप, आईजी की भूमिका पर भी सवाल
शिकायतकर्ता हरनीत सिंह लांबा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया ने कोर्ट में यह दलील दी कि आरोप गंभीर हैं और सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट संकेत दिए हैं कि आरोपियों को कोई संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि तत्कालीन आईजी अनिल कुशवाहा ने जांच अधिकारी को सीधे निर्देश दिए, जो पुलिस की कार्यप्रणाली के मानकों के विरुद्ध है, क्योंकि यह हस्तक्षेप निष्पक्षता को प्रभावित करता है।
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कंपनी की जनरल मीटिंग पर भी हाईकोर्ट की रोक कायम
इस मामले से जुड़े एक अन्य आदेश में, हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जस्टिस विशाल मिश्रा ने यूरो प्रतीक इस्पात की प्रस्तावित जनरल मीटिंग (AGM) पर रोक लगाई थी। आरोप था कि वर्तमान प्रबंधन कंपनी पर एकतरफा नियंत्रण स्थापित करने हेतु AGM की आड़ में महत्वपूर्ण निर्णय ले रहा है। जब यह मामला चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच के समक्ष पहुंचा, तब वहां भी इस रोक को बरकरार रखा गया। डबल बेंच ने स्पष्ट कहा कि जब तक मामले का अंतिम निपटारा नहीं हो जाता, कंपनी की संरचना से जुड़े किसी भी प्रकार के निर्णय पर रोक लगी रहेगी। यह निर्देश कंपनी के ढांचे की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया गया।
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मामले से जुड़ी अन्य याचिकाओं पर जारी रहेगी सुनवाई
इस मामले से जुड़ी मुख्य याचिका सहित FIR रद्द करने की मांग की याचिका पर भी सिंगल बेंच में सुनवाई जारी रहेगी। गिरफ्तारी से राहत मांगने के अलावा, आरोपियों की ओर से FIR निरस्त करने की याचिका भी दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि FIR में कई तथ्यात्मक त्रुटियां हैं और मामला द्वेषपूर्ण प्रतीत होता है। हालांकि हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है और अन्य याचिकाओं की सुनवाई सिंगल बेंच में जारी रहेगी जो 7 मई को तय की गई है। तो अब सिंगल बेंच के सामने तत्कालीन आईजी को पेश होना ही पड़ेगा।
गिरफ्तारी पर कोई रोक नहीं, आगे की प्रक्रिया कानून अनुसार
सुनवाई के अंत में अदालत ने आदेश दिया कि आरोपी अब किसी प्रकार की गिरफ्तारी से राहत की उम्मीद नहीं कर सकते, और यदि पुलिस पर्याप्त सबूतों के आधार पर गिरफ्तारी की कार्यवाही करती है, तो उसे रोका नहीं जाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आगे की जांच प्रक्रिया और कानूनी कार्यवाहियां विधि सम्मत रूप से चलती रहेंगी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि पुलिस को निष्पक्ष जांच की दिशा में आगे बढ़ने की स्वतंत्रता दी जाती है, लेकिन किसी भी पक्ष को कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता।
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