मप्र में फर्जी जाति प्रमाण-पत्रों का खेल, एक और मंत्री पर लगे आरोप
मध्य प्रदेश की एक और राज्य मंत्री प्रतिमा बागरी का जाति प्रमाण पत्र संदेह के दायरे में है। गलत जाति प्रमाण पत्र पर चुनाव जीतना व नौकरी पाने के कई मामले पहले भी सामने आए,लेकिन इन्हें संरक्षित करने का खेल बदस्तूर जारी है।
बाएं से दाएं- गोतम टेटवाल, प्रतिमा बागरी और ज्योति धुर्वे Photograph: (the sootr)
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BHOPAL. दस साल सांसद रहीं, बैतूल की ज्योति धुर्वे, राज्य मंत्री गौतम टेटवाल और अब रैगांव अजा सीट से विधायक व राज्य मंत्री प्रतिमा बागरी का जाति प्रमाण पत्र संदेह के दायरे में है। धुर्वे के मामले में तो 10 साल बाद पता चला कि उनका जाति प्रमाण पत्र गलत है। ऐसे ही प्रदेश के छह सौ से अधिक अफसर व बड़ी संख्या में कर्मचारी गलत जाति प्रमाण पत्र पर नौकरी पाने के आरोपों से घिरे हैं। इनके खिलाफ जांच का अंतहीन सिलसिला जारी है। कई तो ऐसे हैं जो जांच के चलते रिटायर भी हो गए।
प्रतिमा पर कांग्रेस ने लगाए सप्रमाण आरोप
गलत जाति प्रमाण पत्र पर चुनाव जीतने संबंधी मामलों के ताजा प्रकरण की बात करें तो कांग्रेस नेता प्रवीण अहिरवार ने राज्य मंत्री प्रतिमा बागरी को राजपूत यानी सामान्य जाति का बताया है। अहिरवार का आरोप है कि बुंदेलखंड में बागरी जाति अनुसचित जाति में शामिल नहीं है,लेकिन प्रतिमा ने स्वयं को अनुसूचित जाति का बताकर न केवल चुनाव जीता बल्कि इसी कोटे से वह मंत्री भी बनी। जो गलत व किसी का हक मारने जैसा है।
मध्यप्रदेश के कौशल विकास एवं रोजगार विभाग के स्वतंत्र प्रभार मंत्री गौतम टेटवाल का जाति प्रमाण पत्र भी जांच के दायरे में है। सालभर पहले हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायालय ने गत जनवरी में छानबीन समिति को टैटवाल के जाति प्रमाण पत्र की जांच के आदेश दिए,लेकिन तीन माह गुजरने के बाद भी जांच मंथर गति से जारी है।
टेटवाल के जाति प्रमाण पत्र पर पहले भी सवाल उठे। साल 2015 में तो छानबीन समिति उन्हें क्लीन चिट भी दे चुकी है। यानी टैटवाल के राजनीतिक सफर के साथ ही शुरू हुआ यह विवाद अब भी बना हुआ है,लेकिन दूसरी बार के विधायक टैटवाल अब मंत्री भी बन चुके हैं।
भाजपा नेत्री ज्योति धुर्वे साल 2009 से 2019 तक बैतूल से सांसद रही। यह एसटी के लिए आरक्षित सीट है। 2009 में ज्योति का गोंड जाति का प्रमाण-पत्र संदिग्ध होने की शिकायत हुई, पर कार्रवाई नहीं हुई। 2019 में उनका एमपी का कार्यकाल भी खत्म हो गया। हाई कोर्ट के निर्देश पर राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने जांच की तो प्रमाण-पत्र फर्जी निकला। यानी दस साल बाद इसका खुलासा हो सका।
हाईकोर्ट की डबल बेंच ने दी राहत
एससी आरक्षित सीट अशोकनगर से 2018 में विधायक बने जजपाल जज्जी की जाति को लेकर भी मामला हाईकोर्ट में पहुंच चुका है। कोर्ट की सिंगल बेंच ने उनके अनुसूचित (नट) जाति प्रमाण-पत्र को खारिज कर दिया था पर अगस्त 2023 में डबल बेंच से राहत मिल गई। इससे पहले जज्जी ने ओबीसी प्रमाण-पत्र के आधार पर निकाय चुनाव जीता था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां से भी उन्हें राहत मिल गई,लेकिन इस विवाद के चलते जज्जी साल 2023 का चुनाव हार गए।
मध्य प्रदेश अब तक ऐसी कोई नजीर पेश नहीं कर सका जो महाराष्ट्र की पूर्व आइएएस पूजा खेडकर के मामले में केंद्रीय लोक सेवा आयोग ने पेश की। खेडकर को गलत प्रमाण पत्र पर नौकरी गंवानी पड़ी लेकिन मप्र में छह सौ अधिक प्रथम व द्वित्तीय श्रेणी अधिकारियों सहित करीब 17 हजार से अधिक कर्मचारियों से जुड़े मामले लंबे समय से कोर्ट,छानबीन समिति व विभागीय स्तर पर विचाराधीन हैं,लेकिन 90 फीसद से अधिक मामलों में सरकार व अन्य निर्णायक किसी अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंच सके।
जांच का अंतहीन सिलसिला
राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग के स्पष्ट निर्देश हैं कि नेता व सरकारी कर्मचारियों के जाति प्रमाण-पत्र के संबंध में संदेह होने पर तीन माह में जांच कर कार्रवाई की जाए। इसके विपरीत प्रदेश में 14-15 सालों से जांच लंबित है। खास बात यह कि इस बीच ऐसे कई अधिकारी,कर्मचारी सेवानिवृत भी हो चुके हैं,लेकिन इनकी जांच खत्म नहीं हुई।