आंखों पर चश्मा और हूटर वाली कार, कलेक्टर को फोन कर बना फर्जी सरकारी मेहमान

भोपाल के फर्जी मीडिया अधिकारी सुधीर प्रसाद ने सर्किट हाउस में रुकने के लिए कलेक्टर को फोन कर रौब जमाया, लेकिन पुलिस जांच में असलियत सामने आ गई। जानें क्या है पूरा मामला इस लेख में...

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Neel Tiwari
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सुधीर कुमार प्रसाद (Left) और किरण पटेल (Right)

भोपाल में पकड़ा गया फर्जी अफसर सुधीर कुमार प्रसाद (क्रीम कलर के कोट में)

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शुक्रवार को जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना के मोबाइल पर एक अज्ञात व्यक्ति ने खुद को मंत्रालय का मीडिया अधिकारी बताते हुए सर्किट हाउस में कमरा बुक करवाने का अनुरोध किया। इस संदेश में लिखा था, “हैलो, मैं वल्लभ भवन मंत्रालय से मीडिया अधिकारी सुधीर कुमार बोल रहा हूं। दो दिन के लिए विभागीय काम से जबलपुर आ रहा हूं। मेरे लिए सर्किट हाउस में एक कमरा बुक करा दो।” कलेक्टर ने  इस संदिग्ध संदेश की गंभीरता को समझते हुए तुरंत प्रोटोकॉल अधिकारी को निर्देश दिया कि व्यक्ति के लिए सर्किट हाउस में कमरा बुक किया जाए।

हालांकि, इसके साथ ही कलेक्टर ने मंत्रालय में इस व्यक्ति की पहचान की पुष्टि करनी चाही। जब उन्होंने इस नाम का सत्यापन कराया, तो पता चला कि मंत्रालय में सुधीर कुमार नाम का कोई मीडिया अधिकारी पदस्थ ही नहीं है। इसके बाद कलेक्टर ने प्रोटोकॉल अधिकारी को सतर्क किया, जिन्होंने सर्किट हाउस में उस व्यक्ति का इंतजार किया। लेकिन, संदिग्ध व्यक्ति वहां नहीं पहुंचा।

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हूटर लगी एसयूवी ने बढ़ाया शक

शुक्रवार रात को सिविल लाइन थाने में सूचना दी गई कि शहर में एक काली रंग की एसयूवी गाड़ी हूटर बजाते हुए घूम रही है। गाड़ी पर ब्लैक फिल्म चढ़ी हुई थी और उस पर "प्रेस" और "पीआरओ" लिखा हुआ था। इस सूचना पर तुरंत कार्रवाई करते हुए सिविल लाइन थाने में पदस्थ एसआई सुमित मिश्रा ने अपनी टीम के साथ गाड़ी का पीछा किया और उसे रोका।

जैसे ही पुलिस ने गाड़ी को चेक किया, उसमें वही व्यक्ति पाया गया जिसने कलेक्टर को फर्जी संदेश भेजा था। संदिग्ध व्यक्ति ने अपनी पहचान सुधीर कुमार प्रसाद, निवासी भोपाल के रूप में दी। पुलिस को वाहन की हालत देखकर और उसमें हूटर, प्रेस का लोगो, और ब्लैक फिल्म जैसी चीजें देखकर मामला संदिग्ध लगा। इसके बाद व्यक्ति से गहन पूछताछ की गई।

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मीडिया अधिकारी से अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी तक का दावा

पुलिस द्वारा रोके जाने पर सुधीर कुमार ने खुद को अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी और मीडिया अधिकारी बताया। गाड़ी पर "सेक्रेटरी एमपीडीसीए" (मध्य प्रदेश डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन) की प्लेट लगी हुई थी, जो उसे एक अधिकारी जैसा दिखाने की कोशिश कर रही थी। सुधीर ने पुलिस के सामने रौब झाड़ने का प्रयास किया और यह दावा किया कि वह सर्किट हाउस में रुकने वाला है।

पुलिस ने जब कलेक्टर और संबंधित अधिकारियों से संपर्क कर मामले की पूरी जानकारी ली, तो सुधीर कुमार का दावा झूठा साबित हुआ। पूछताछ में उसने यह भी कबूल कर लिया कि उसने खुद को मंत्रालय का मीडिया अधिकारी बताते हुए झूठा संदेश भेजा था ताकि सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था हो सके।

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फर्जी अधिकारी की असलियत

संदिग्ध व्यक्ति की पहचान 63 वर्षीय सुधीर कुमार प्रसाद के रूप में हुई। जांच में पता चला कि वह भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से सेवानिवृत्त (retired) कर्मचारी है और उसने 2001 से 2024 तक अपनी नौकरी भोपाल में की। सुधीर ने बताया कि वह मंत्रालय की कार्यशैली से परिचित है और जानता है कि अगर किसी अधिकारी को मंत्रालय का नाम लेकर कोई निर्देश दिया जाए, तो उसे आसानी से पूरा किया जा सकता है। इसी जानकारी का फायदा उठाते हुए उसने कलेक्टर को झूठा मैसेज भेजा।

जबलपुर में सुधीर की बहन रहती है और वह उनसे मिलने आया था। उसने सोचा कि सर्किट हाउस में रुकने के लिए मंत्रालय का नाम उपयोग करना आसान तरीका होगा। हालांकि, पुलिस की सतर्कता और जांच ने उसकी चालाकी का पर्दाफाश कर दिया।

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गाड़ी, व्यक्तित्व  और अनुभव का उठाया फायदा

सुधीर ने अपने षड्यंत्र को सफल बनाने के लिए एक काली एसयूवी गाड़ी का इस्तेमाल किया, जिसे हूटर और "प्रेस" का लोगो लगाकर सरकारी वाहन जैसा दिखाया गया। गाड़ी के शीशों पर ब्लैक फिल्म लगी हुई थी और उस पर "सेक्रेटरी एमपीडीसीए" लिखा हुआ था। यह दिखाने की कोशिश की गई कि गाड़ी किसी सरकारी अधिकारी या उच्च पदस्थ व्यक्ति की है। जब पुलिस ने गाड़ी की तलाशी ली और उसके ड्राइवर से पूछताछ की, तो उसने भी सुधीर कुमार को अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी बताते हुए उसे सर्किट हाउस का मेहमान कहा। लेकिन जैसे ही पुलिस ने सच्चाई जानने के लिए अधिकारियों से संपर्क किया, मामला साफ हो गया कि यह सब कुछ झूठ पर आधारित था।

पुलिस ने की कार्रवाई और जमानत पर रिहा

पुलिस ने सुधीर कुमार को फर्जी तरीके से कलेक्टर को गुमराह करने और सर्किट हाउस में रुकने के प्रयास के आरोप में हिरासत में लिया। उसकी गाड़ी को जब्त कर लिया गया और मामला दर्ज किया गया। हालांकि, बाद में उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया। यह घटना सरकारी प्रशासन के लिए एक सबक है कि फर्जी लोगों द्वारा सरकारी सेवाओं और प्रतिष्ठानों का दुरुपयोग करने की घटनाएं बढ़ रही हैं। मंत्रालय का नाम लेकर काम कराने की प्रवृत्ति सरकारी प्रक्रियाओं पर सवाल खड़े करती है।

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