जिन लोगों ने कोविड-19 महामारी को अपने शरीर में झेला है और चिकित्सा या ‘भगवान की कृपा’ से बच गए हैं, तो भी वे लोग निश्चिंत न रहे। एक विदेशी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस महामारी के होने पर तीन साल की अवधि तक दिल सेफ नहीं है। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है, जिससे उनकी जान पर बन सकती है। रिपोर्ट ने यह भी जानकारी दी है कि ओ ब्लड ग्रुप से अधिक बाकी ब्लड ग्रुप के लोगों को इसका जोखिम ज्यादा है। वैसे इस रिपोर्ट में सुकून वाली बात यह है कि हार्ट से जुड़ी बीमारी का पता चलने पर किए जाने वाले इलाज से समस्या से बचा जा सकता है। दूसरा विशेष तथ्य यह है कि यह रिपोर्ट उन मरीजों पर विश्लेषण कर बनाई गई है, जिन्हें उस दौरान इस महामारी का टीका नहीं लगा था।
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रिसर्च में बड़ी संख्या में लोग शामिल किए गए
अमेरिका हार्ट एसोसिएशन से जुड़ी एक पत्रिका आर्टेरियोस्क्लेरोसिस, थ्रोम्बोसिस और वैस्कुलर बायोलॉजी (Arteriosclerosis, Thrombosis and Vascular Biology (ATVB) की एक रिपोर्ट में कोविड-19 झेलने वाले लोगों पर एक रिसर्च की जानकारी दी है। जिसमें कहा गया है कि जिन लोगों ने इस महामारी को झेला है, उन्हें तीन साल तक दिल संबंधी बीमारी का खतरा बना रहेगा। यूके में तैयार की गई इस रिपोर्ट के अनुसार रिसर्च में इस विश्लेषण में करीब 10,000 वयस्कों का स्वास्थ्य डेटा शामिल था, जो 1 फरवरी 2020 और 31 दिसंबर 2020 के बीच COVID-19 वायरस से ग्रस्त पाए गए थे और उन्हें अस्पताल में दाखिल किया गया था। विशेष बात यह है कि इस विश्लेषण में 2,17,730 लोग, जिन्हें उसी समय अवधि के दौरान COVID-19 नहीं था, को शामिल किया गया। संक्रमण के समय इस लोगों में से किसी को भी टीका नहीं लगाया गया था क्योंकि वर्ष 2020 में कोविड-19 का टीका उपलब्ध नहीं हो पाया था।
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कोरोना से पीड़ित लोग तीन साल तक ‘रेड’ जोन में
रिसर्च में पाया गया कि कोविड-19 संक्रमण के तीन साल बाद भी दिल का दौरा और स्ट्रोक का यह बढ़ा हुआ जोखिम जारी रहा। कुछ मामलों में, बढ़ा हुआ जोखिम लगभग उतना ही अधिक था जितना कि टाइप 2 ब्लड शुगर या धमनी रोग जैसी दिल की बीमारी में होता है। इस शोध में यह भी पता चला कि COVID-19 संक्रमण के बाद पहले महीने के भीतर दिल को अधिक जोखिम नजर आ रहा था। रिपोर्ट बताती है कि करीब तीन 3 साल के दौरान कोविड-19 से पीड़ित वयस्कों में दिल का दौरा, स्ट्रोक और मौत का जोखिम दो गुना से अधिक था और कोविड-19 के साथ अस्पताल में भर्ती वयस्कों में कोविड-19 संक्रमण का कोई इतिहास नहीं रखने वाले समूह की तुलना में लगभग चार गुना अधिक था। रिपोर्ट के अनुसार महामारी से ग्रस्त जो लोग पहले से ही दिल के रोग या टाइप 2 मधुमेह से ग्रस्त थे, उनकी जान का खतरा सामान्य लोगों से 21 प्रतिशत अधिक था। विशेष बात यह है कि इस प्रकार के दिल के क्षतिग्रस्त होने का खतरा ओ ब्लड ग्रुप में कम नजर आया, जबकि ए, बी या एबी ब्लड ग्रुप के लोगों में यह खतरा अधिक था।
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कोरोना टीके से पहले तैयार की गई है रिपोर्ट
वैसे एक्सपर्ट मान रहे हैं कि यह रिपोर्ट सीमित दायरे वाली है। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से जानकारी दी गई है कि सारे तथ्य उन मरीजों की जांच पर आधारित हैं, जिनहें कोविड का टीका नहीं लगा था। रिपोर्ट ने बताया है कि जांच में जो मरीज लिए गए थे, उन्हें कोविड का टीका इसलिए नहीं लग पाया, क्योंकि उस समय यह टीका बन नहीं पाया था। स्पष्ट है कि यह जांच होना बाकी है कि जिन लोगों ने कोविड का दंश झेला और बाद में उन्हें कोरोना रोधी टीका लगा गया, वे लोग दिल संबंधी बीमारी से बचे रहेंगे या नहीं।
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रिसर्च की मुख्य बातें:
• हल्के से लेकर गंभीर COVID-19 संक्रमण वाले वयस्कों में दिल का दौरा, स्ट्रोक और मौत का खतरा लगभग तीन वर्षों तक बढ़ा हुआ था।
• यह जोखिम टाइप 2 डायबिटीज, परिधीय धमनी रोग (PAD) और हृदय रोग जैसे अन्य कारकों के समान था।
• गैर-O ब्लड ग्रुप (A, B, AB) वाले लोगों में COVID-19 संक्रमण के बाद दिल का दौरा और स्ट्रोक का जोखिम बढ़ा हुआ था।
निष्कर्ष:
• लगभग 10,000 वयस्कों (8000 हल्के और गंभीर COVID-19 संक्रमित और 2000 अस्पताल में भर्ती) को जांच की परिधि में रखा गया।
• तीन साल की अवधि में COVID-19 से संक्रमित वयस्कों में दिल का दौरा, स्ट्रोक और मौत का खतरा दो गुना से ज्यादा था और अस्पताल में भर्ती मरीजों में यह खतरा चार गुना तक बढ़ा था।
रिसर्च की सिफारिशें:
• शोधकर्ताओं का मानना है कि COVID-19 संक्रमित मरीजों को हृदय रोग की रोकथाम के उपचारों का फायदा मिल सकता है, ताकि भविष्य में दिल से जुड़ी जटिलताओं का जोखिम कम किया जा सके।
• यह अध्ययन विश्व स्तर पर COVID-19 संक्रमण और हृदय स्वास्थ्य पर लंबे समय तक प्रभावों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
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