न्याय के कठोर रक्षक से सुरों के सरताज तक : विदाई समारोह में चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत का अनोखा अंदाज

अपने भावुक भाषण में चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने विशेष रूप से 24 सितंबर 2024 की तारीख का उल्लेख करते हुए कहा कि जब वे पहली बार जबलपुर पहुंचे थे, तब जिस आत्मीयता और गरिमा के साथ उनका स्वागत किया गया...

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Neel Tiwari
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Photograph: (THESOOTR)

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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के स्वर्ण जयंती सभागार में आयोजित विदाई समारोह उस समय भावनाओं और आश्चर्य का केंद्र बन गया, जब अदालत में अपनी कड़ी टिप्पणियों और सरकार को समय-समय पर फटकारने के लिए जाने जाने वाले मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने मंच से “तेरे नैना हैं बड़े बेईमान” जैसे फिल्मी गीत को अपनी आवाज़ में प्रस्तुत किया। इस क्षण ने पूरे सभागार को रोमांचित कर दिया।

बार काउंसिल के सदस्य, अधिवक्ता, न्यायाधीशगण और अन्य गणमान्य अतिथि सभी एक सख्त न्यायिक व्यक्तित्व के भीतर छिपे इस संवेदनशील और कलात्मक पक्ष को देखकर दंग रह गए। संगीत में डूबा यह क्षण, न्यायिक इतिहास के एक अनोखे पहलू को उजागर करता है कि कानून की कठोरता के पीछे भी एक कोमल हृदय धड़कता है।

जबलपुर में स्वागत को बताया जीवन का सबसे यादगार अनुभव

अपने भावुक भाषण में चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने विशेष रूप से 24 सितंबर 2024 की तारीख का उल्लेख करते हुए कहा कि जब वे पहली बार जबलपुर पहुंचे थे, तब जिस आत्मीयता और गरिमा के साथ उनका स्वागत किया गया, वह उनके अब तक के जीवन का सबसे अनमोल अनुभव बन गया। उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे स्टेशन से लेकर न्यायालय परिसर तक, रंग गुलाल में रंगे हुए लोग, फूलों की मालाएँ और भव्य गुलदस्ते लेकर उन्हें अभिवादन करने आए थे। उस दृश्य को उन्होंने “एक मानवीय समुद्र” की उपमा दी। उनका यह कथन न केवल जबलपुर के प्रति उनके जुड़ाव को दर्शाता है, बल्कि उस सांस्कृतिक और सामाजिक आत्मीयता को भी उजागर करता है जो मध्य प्रदेश की पहचान है।

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सफल न्यायिक यात्रा का श्रेय पत्नी को

चीफ जस्टिस ने अपने जीवन की यात्रा को अकेले नहीं, बल्कि एक सहभागी के साथ तय किया है, इस भावना को उन्होंने बेहद सादगी और स्नेह से व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि नारीशक्ति केवल सामाजिक परिवर्तन की वाहक नहीं, बल्कि पारिवारिक और मानसिक स्थिरता की सबसे बड़ी शक्ति होती है।

उन्होंने अपनी पत्नी श्रीमती सरोज कैत का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि वह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन की शक्ति रही हैं, बल्कि उनकी न्यायिक यात्रा की अघोषित सहचर भी रही हैं। हल्के-फुल्के अंदाज़ में उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि वो उनका उल्लेख नहीं करेंगे, तो “आखिर उन्हें घर ही तो लौटना है”, जिससे सभागार में ठहाकों की गूंज सुनाई दी।

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हनुमान मंदिर विवाद पर दिया स्पष्टीकरण

हाल ही में मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा उठाए गए उस विवाद की भी चीफ जस्टिस ने चर्चा की, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि उनके आधिकारिक आवास परिसर से एक हनुमान मंदिर को तोड़ा गया। इस पर उन्होंने स्पष्ट किया कि “हनुमान वहां हैं, जहाँ संजीवनी है; जहां भक्ति है; जहां कार्य सिद्ध होते हैं। हनुमान किसी का कार्य रोकने नहीं आते।”

जस्टिस कैत ने यह भी बताया कि इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री सहित शासन के शीर्ष अधिकारियों से उनकी बैठक हुई थी और इन बैठकों में उन्होंने उन मीडिया संस्थान की भी चर्चा की थी जिसने इस खबर को बिना पुष्टि के ब्रह्म खबर बना दिया। उन्होंने स्पष्ट किया ऐसे आरोपों के क्षणों में धैर्य और दृढ़ता बनाए रखना ही न्यायिक दायित्व होता है।

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सुरों में छलका भावनाओं का सागर

कार्यक्रम का सबसे मार्मिक और रंगीन पल तब आया, जब चीफ जस्टिस कैत ने मोहम्मद रफी का एक और प्रसिद्ध गीत “फिरकीवाली तू कल फिर आना” पूरे मंच से गाया। उनकी आवाज़ में वह भावनात्मक थरथराहट थी, जो दर्शकों के दिलों तक उतर गई। अधिवक्ताओं से लेकर अन्य न्यायाधीशों तक  सभी एक क्षण के लिए मानो किसी न्यायिक विदाई समारोह में नहीं, बल्कि किसी आत्मीय संगीत संध्या में उपस्थित थे। यह प्रस्तुति केवल एक गीत नहीं थी, बल्कि उनके दिल की गहराइयों से निकली हुई विदाई थी और एक ऐसा संदेश जो शब्दों में नहीं, सुरों में कहा गया।

स्टाफ और बार काउंसिल को कहा धन्यवाद

अपने भाषण के समापन पर चीफ जस्टिस ने अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के समस्त स्टाफ, न्यायिक अधिकारियों, रजिस्ट्री कर्मचारियों, अधिवक्ताओं और स्टेट बार काउंसिल के पदाधिकारियों को उनके स्नेह, सहयोग और विश्वास के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने विशेष रूप से आयोजन समिति का आभार प्रकट करते हुए कहा कि “इस आयोजन ने मेरे जीवन के अंतिम न्यायिक पड़ाव को एक ऐसी सुखद स्मृति में बदल दिया है, जिसे मैं सदैव अपने हृदय में संजोकर रखूँगा।”

इस दौरान जस्टिस सुरेश कुमार ने वकीलो , साथी जजों और परिवार की चर्चा तो की ही लेकिन वह अपने ड्राइवर तक को नहीं भूले, बीते दोनों एक वार्तालाप का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि ड्राइवर के साथ जब उनकी चर्चा हो रही थी तो उसने बोला कि सर अब आप जाते-जाते और क्या करके जाएंगे तो चीफ जस्टिस ने कहा कि चीफ जस्टिस के बंगले पर एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनवा दूंगा जिसमें आप लोगों को घर मिल जाएगा, जिस पर ड्राइवर ने कहा कि सर ऐसा मत करना। हालांकि यह बात एक वार्तालाप के तौर पर व्यंग्य पर की गई थी लेकिन यह दर्शा रही है कि चीफ जस्टिस अपनी विदाई समारोह में अपने उस वाहन चालक को भी नहीं भूले थे जो उन्हें रोज घर से हाईकोर्ट और हाईकोर्ट से घर लेकर जाता है।

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जस्टिस सुरेश कुमार कैत : एक जीवन यात्रा

24 मई 1963 को हरियाणा के कैथल जिले के एक छोटे से गांव काकौत में जन्मे सुरेश कुमार कैत का जीवन एक साधारण ग्रामीण परिवेश से निकलकर न्यायिक व्यवस्था के उच्चतम शिखरों तक पहुंचने की अद्वितीय मिसाल है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से मानविकी में स्नातक और फिर राजनीति विज्ञान में परास्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। वे छात्र जीवन में भी नेतृत्व क्षमता से परिपूर्ण थे वह एनएसएस यूनिट लीडर रहे और छात्र संघ में संयुक्त सचिव पद पर चुने गए।

वर्ष 1989 में वकालत प्रारंभ कर उन्होंने केंद्रीय सरकारी मामलों से लेकर रेलवे, यूपीएससी जैसे बड़े संस्थानों के लिए प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 2004 में उन्हें केंद्र सरकार का स्थायी अधिवक्ता नियुक्त किया गया। फिर 2008 में दिल्ली हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में न्यायिक यात्रा शुरू हुई, जो बाद में तेलंगाना-आंध्र प्रदेश होते हुए 25 सितंबर 2024 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद तक पहुँची।

20 मई को होंगे सेवानिवृत्त

चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत 20 मई 2025 को औपचारिक रूप से सेवानिवृत्त होंगे, लेकिन उनके निर्णय, उनका साहसिक रुख, जनहित के लिए लिया गया दृढ़ और संतुलित दृष्टिकोण और अब इस विदाई समारोह में दिखा उनका मानवीय और कलात्मक पक्ष यह सब उन्हें हमेशा के लिए एक यादगार न्यायमूर्ति के रूप में स्थापित कर चुका है। जबलपुर, मध्य प्रदेश और भारत के न्यायिक इतिहास में उनका नाम एक प्रेरणा के रूप में अंकित रहेगा।

जबलपुर हाईकोर्ट जस्टिस सुरेश कुमार कैत विदाई समारोह बार काउंसिल