वन अधिकार पत्र के आवेदन लंबित हैं तो जंगल से बेदखल नहीं होंगे आदिवासी परिवार

मध्यप्रदेश वन विभाग ने आदिवासी परिवारों को राहत दी है जिनके वन अधिकार आवेदन लंबित हैं। नर्मदा नदी किनारे बसे आदिवासी परिवारों को बेघर होने से बचाने के लिए वन विभाग ने रणनीति में बदलाव किया है।

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Sanjay Sharma
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Photograph: (THESOOTR)

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BHOPAL. जंगलों को अतिक्रमणमुक्त करने की आड़ में बेघर करने की कार्रवाई से आदिवासी समुदाय में नाराजगी बढ़ रही थी। इसे  देखते हुए वन विभाग ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। नदी तट के 5 किमी दायरे में बसे ऐसे आदिवासी परिवारों को रियायत दे दी है, जिनके वन अधिकार आवेदन विचाराधीन हैं।

मध्यप्रदेशवन विभाग (Madhya Pradesh Forest Department) की कार्रवाई से नर्मदा नदी से सटे जिलों के रहने वाले हजारों आदिवासी परिवार घर छिन जाने की आशंका से घबराए हुए थे। वन मुख्यालय ने नर्मदा तट स्थित जिलों में डीएफओ को इस संबंध में पत्र जारी कर दिए हैं। 

पौधरोपण को भी स्वीकृति

मध्य प्रदेश की प्रमुख नदी नर्मदा के प्रवाह को सहेजने और निर्मल बनाए रखने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत नदी के किनारों से मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए पौधरोपण को भी स्वीकृति दी गई है।

वन विभाग ने नर्मदा के उद्गम से गुजरात राज्य की सीमा तक सभी जिलों के तैनात डीएफओ को इसके लिए निर्देशित किया है। वन मंडलों में नदी के किनारों पर जंगलों में पौधरोपण की जिम्मेदारी वन समितियों को सौंपी गई है।

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 डीएफओ स्तर पर सख्ती

वन विभाग ने नर्मदा को संरक्षित करने के लिए जंगलों से कब्जे हटाने की तैयारी भी कर ली है। अभियान के तहत अनूपपुर, मंडला, डिंडौरी, जबलपुर, नरसिंहपुर,नौरादेही, सिवनी, सीहोर, खंडवा, खरगौन, आलीराजपुर, बड़वानी, धार, देवास जिलों में पौधरोपण कराया जा रहा है।

पेड़ों को काटकर वन भूमि को खेतों में बदलने की स्थिति पर कसावट के लिए डीएफओ स्तर पर सख्ती की जा रही है। इसके लिए जंगलों में बीते कुछ सालों में बसाहटों में हुए विस्तार की जांच जारी है।

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आदिवासी समुदाय में था विरोध

नर्मदा तट किनारे स्थित जंगलों से कब्जे हटाने के लिए वन मंडल अधिकारी कार्यालय से परिक्षेत्र और बीट में तैनात वन रक्षकों को भी निर्देशित किया गया है।

आलीराजपुर जिले में डीएफओ द्वारा मथवाड और उमराली परिक्षेत्र अधिकारियों को भेजे गए पत्र के बाद आदिवासी समुदाय में खलबली मच गई थी। इसके साथ ही नर्मदा किनारे मजरे, टोलों और फलियों में रहने वाले आदिवासी वन विभाग की कार्रवाई पर सवाल उठा रहे थे। आदिवासी समुदाय के संगठन भी इस कार्रवाई पर मुखर होने लगे थे। 

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नाराजगी देख वन मुख्यालय का यू-टर्न 

जंगलों से बेदखली की आशंका से आदिवासी समुदाय में बढ़ती नाराजगी की भनक लगने के बाद वन मुख्यालय ने रणनीति में बदलाव किया है। वन मुख्यालय से 7 नवम्बर को नया आदेश भी जारी किया गया है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक बिभाष कुमार ठाकुर द्वारा जारी यह आदेश सभी जिलों के वन मंडल अधिकारियों को संबोधित है।

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आवेदन लंबित तो नहीं होगी कार्रवाई

पत्र में ऐसे आदिवासियों को कार्रवाई से दूर रखा गया है जिनके वन अधिकार पत्र के आवेदन वन विभाग के पास विचाराधीन हैं। जबकि इससे पहले 18 अगस्त, 9 एवं 19 सितम्बर को जारी आदेशों में वन भूमि को कब्जा मुक्त करने सीधी कार्रवाई का उल्लेख था। अब अधिकारियों को सीधे एक्शन से रोका गया है। ऐसे आदिवासी परिवारों को आवेदनों के निराकरण से पहले बेदखल नहीं किया जाएगा।

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