गंजबासौदा उपजेल: जेल की कमाई सूदखोरी में लगाई, जेलर-प्रहरी सबके हिस्से में आया माल

विदिशा जिले की गंजबासौदा उपजेल में भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया है। जेल की काली कमाई को सूदखोरी में लगाने का आरोप प्रहरी रामबाबू शर्मा और जेलर आलोक भार्गव पर लगा है। पीड़ित अंकित दुबे ने इस मामले का खुलासा किया है। 

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मध्य प्रदेश में अभी परिवहन विभाग में काली कमाई का खेल थमा भी नहीं था कि एक और कांड सामने आ गया है। भ्रष्टाचार की सड़ांध जेलों तक पहुंच गई है। विदिशा जिले की गंजबासौदा उपजेल से काली कमाई का खौफनाक खेल उजागर हुआ है। प्रहरी रामबाबू शर्मा ने जेल की काली कमाई को सूदखोरी में लगाया और उस पर मनमाना ब्याज वसूला है। आरोप है कि इस कांड में जेलर आलोक भार्गव की ​भी मिलीभगत है। जेलर की पत्नी के नाम के चेक से भी लेनदेन हुआ है। 

इस मामले के पीड़ित गंजबासौदा निवासी अंकित दुबे ने स्थानीय पुलिस थाने, लोकायुक्त, एसपी और जेल मुख्यालय तक शिकायत की, लेकिन जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो वह न्याय की आस लेकर ''द सूत्र'' के दफ्तर पहुंचा। फिर पूरी कहानी कह सुनाई। यह दास्तां कहते- कहते उसके आंसू छलक आए। ​अंकित ने सिलसिलेवार जो कहानी सुनाई, वह पूरा खेल उजागर करती है। साथ ही यह भी पता चलता है कि कैसे सिस्टम सड़ चुका है। रुपयों के लिए सरकारी मातहत कैसे किसी भी हद तक जा सकते हैं। 

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अंकित ने 'द सूत्र' के दफ्तर में क्या- क्या बताया...

ये कहानी शुरू होती है अंकित दुबे के जेल जाने से। अंकित गंजबासौदा मंडी में गल्ला व्यापारी हैं। वह छोटे दुकानदारों को रुपए भी देता है। बदले में उनसे निश्चित राशि ली जाती है। स्थानीय भाषा में इसे कलेक्शन या छोटे स्तर पर सूदखोरी कहते हैं। चूंकि दुकानदार जरूरत के हिसाब से एकमुश्त रुपए ले लेते हैं और धीरे- धीरे हर दिन रुपए लौटाते रहते हैं। अंकित हर दिन की तरह यह काम कर रहा था। 

मार्च 2024 में एक झगड़ा हुआ, जिसमें अंकित को दो दिन की जेल हो गई। इसी बीच वह जेल प्रहरी रामबाबू शर्मा के संपर्क में आया। उसने अंकित से उसके कामकाज में बारे में पूछा। इस पर अंकित ने बताया कि वह कलेक्शन का काम करता है। दो दिन बाद अंकित जेल से छूट गया। फिर कुछ दिन बाद रामबाबू शर्मा की उससे एक शादी में मुलाकात हुई। यहीं रामबाबू ने अंकित को और बड़ी रकम बाजार में लगाने का ऑफर दिया। अंकित मान गया। उसे अंदाजा नहीं था कि वह कितनी बड़ी मुसीबत मोल ले रहा है। 

बस यहीं से पूरा खेल शुरू हुआ। गंजबासौदा उपजेल में तैनात प्रहरी रामबाबू शर्मा ने जेलर समेत अन्य अधिकारियों के नाम पर काली कमाई का पैसा गल्ला व्यापारी अंकित दुबे के जरिए सूदखोरी में लगाया। प्रहरी ने सूदखोरी में चलाने के लिए अंकित को पहले 2 लाख नकद दिए। फिर ऑनलाइन ट्रांजेक्शन, चेक और नकदी के रूप में 64.33 लाख रुपए और दिए। 10 महीने तक यह लेन- देन चलता रहा। अंकित का दावा है कि उसने रामबाबू को कुल 83.62 लाख रुपए लौटाए। इसके बावजूद रामबाबू ने कहा कि जो राशि लौटाई है, वह तो ब्याज था। अब भी 50 लाख रुपए बकाया हैं। 

यह बात सुनकर अंकित परेशान हो गया। उसने जान देने के लिए जहर गटक लिया। उसकी हालत बिगड़ गई, डॉक्टरों तक ने कह दिया कि उसका बचना मुश्किल है, लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। अंकित की जान बच गई। फिर उसने रामबाबू शर्मा और जेल प्रशासन का काला खेल उजागर करने की ठानी। उसने पुलिस और प्रशासन को तमाम शिकायतें की, जेल मुख्यालय भी पहुंचा, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। अंतत: वह ''द सूत्र'' के ऑफिस पहुंचा और अपनी पीड़ा बताई। 

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ऑनलाइन ट्रांजेक्शन और नकद रुपए लौटाए 

अंकित का दावा है कि उसने ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के जरिए 33.49 लाख रुपए रामबाबू और 3 लाख रुपए उसकी पत्नी के बैंक अकाउंट में भेजे। इसके अलावा 45 लाख रुपए नकद अलग दिए, लेकिन रामबाबू शर्मा उसे लगातार प्र​ताड़ित करता रहा। जेल की काली कमाई को सूदखोरी में लगाने के मामले का पूरा खेल अंकित दुबे, प्रहरी रामबाबू शर्मा व उनकी पत्नी के बैंक खातों में फोन पे के जरिये लेन-देन से पुख्ता होता है। रामबाबू और अंकित के बीच 13 मई 2024 से 16 नवंबर 2024 तक 575 बार लेन-देन हुआ। रामबाबू के एसबीआई और एचडीएफसी बैंक के खातों में रुपए भेजे गए। रामबाबू की पत्नी के खातों में 30 मई 2024 से 26 सितंबर 2024 तक 73 से अधिक ट्रांजेक्शन हुए हैं। रामबाबू ने अलग-अलग नंबरों पर भी रुपए ट्रांसफर करवाए।

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जेलर की पत्नी का नाम का चेक 

अंकित ने 'द सूत्र' को जो मोबाइल की कॉल रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराई हैं, उनमें जेलर का भी हाथ सामने आता है। एक रिकॉर्डिंग में रामबाबू अंकित से कह रहा है कि जल्दी पैसे लौटाओ साहब को भी देना है, जब अंकित हैरानी जताता है तो रामबाबू कहता है कि साहब की पत्नी का एक चेक तुम्हें दिया तो था। दरअसल, अंकित ने रामबाबू की रकम सूदखोरी के 'डेली कलेक्शन' के साथ अनाज के भंडारण में लगाई थी। हालांकि, जब रामबाबू ने 50 लाख रुपए और मांगे तो अंकित ने कलेक्शन का काम बंद करने और हिसाब करने को कहा। तब दोनों के बीच फोन पर हुई बातचीत में रामबाबू ने कहा कि यह अकेली उसकी रकम नहीं है। इसमें जेलर साहब का भी रुपया लगा है। एक चेक जो पोस्ट ऑफिस का दिया था, वो उन्हीं ने दिया था। रामबाबू ने कहा कि 10 से 11 लोगों को ये पैसा लौटाना है। इसकी वजह से उसके ऊपर भी दबाव है।

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'द सूत्र' से जेलर बोले- मेरा नार्को टेस्ट करा लिया जाए 

पूरे मामले को समझने के लिए 'द सूत्र' ने गंजबासौदा में भी पड़ताल की। जेलर आलोक भार्गव से बात की तो उन्होंने कहा कि मामला मेरी जानकारी में है, लेकिन मेरी अंकित दुबे से कभी बात नहीं हुई। जब ''द सूत्र'' ने सवाल किया कि रामबाबू आपका नाम ले रहा है, तो जेलर ने कहा कि रामबाबू को अंकित से रुपए लेना है, हो सकता है उस पर दबाव बनाने के लिए रामबाबू ने मेरा नाम ले लिया हो। इसके उलट जेलर आलोक भार्गव रामबाबू के पक्ष में बात करते रहे। उन्होंने कहा, रामबाबू आर्मी से रिटायर्ड है। मुरैना में उसके पास जमीनें हैं। उसके पास अच्छा पैसा है। बाद में उन्होंने कहा कि मेरी 21 साल की नौकरी में मुझ पर कोई दाग नहीं है। यदि लगता है तो मेरा नार्को टेस्ट करा लिया जाए। लाई डिटेक्टर टेस्ट करा लिया जाए, मेरा इसमें कोई हाथ नहीं है। 

(अंकित और रामबाबू के बीच हुए लेन देन के दस्तावेज और कई कॉल रिकॉर्डिंग 'द सूत्र' के पास हैं, जिनसे काला खेल उजागर होता है।)

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