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आमीन हुसैन@ RATLAM
रतलाम की गीता देवी अस्पताल (G.D. Hospital) पर कई गंभीर आरोप हैं। इसमें मरीजों के साथ धोखाधड़ी, इलाज में लापरवाही, और अस्पताल के दलालों का आरोप शामिल है। अस्पताल के प्रमुख लेखराज पाटीदार मीडिया के सवालों से घबराकर कैमरे से भाग गए, जिससे और भी सवाल उठ रहे हैं।
जीडी अस्पताल की लापरवाही पर सवाल
गीता देवी अस्पताल, रतलाम में मरीजों के साथ लापरवाही और धोखाधड़ी के आरोप बढ़ते जा रहे हैं। इस अस्पताल पर तीन गंभीर आरोप लग चुके हैं, जिनमें इलाज में लापरवाही, मरीजों की जान से खेलना, और सरकारी अस्पतालों से मरीजों को अपनी तरफ खींचने के लिए दलाली करना शामिल हैं। इन मामलों में कार्रवाई करने के बजाय जांचों को लटकाया जा रहा है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या सिर्फ दिखावे के लिए जांचें चल रही हैं?
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प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़कर भागे डायरेक्टर
जब मीडिया ने अस्पताल से जुड़ी गंभीर घटनाओं पर सवाल पूछे, तो अस्पताल के डायरेक्टर लेखराज पाटीदार बौखला गए और सवालों का जवाब देने की बजाय प्रेस कॉन्फ्रेंस से ही भाग गए। पाटीदार द्वारा दी गई जानकारी में और मरीजों के परिजनों द्वारा पेश किए गए तथ्य परस्पर विरोधी थे, जो अस्पताल के मैनेजमेंट की लापरवाही को उजागर करते हैं।
बंटी निनामा के मामले में सफाई
बीते कुछ समय पहले जीडी अस्पताल में एक मरीज बंटी निनामा का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह नाक और पेशाब की नली लेकर अस्पताल के खिलाफ विरोध कर रहा था। इस वीडियो ने अस्पताल की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए थे। हालांकि, अस्पताल ने अपनी सफाई में जो सीसीटीवी फुटेज प्रस्तुत किए, उनमें वीडियो के तथ्यों से मेल नहीं खा रहे थे। यही नहीं, अस्पताल ने बंटी निनामा को आरोपी भी घोषित कर दिया, जबकि वीडियो में उसका व्यवहार धमकी देने वाला नहीं था।
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जीडी अस्पताल की लापरवाही
एक और गंभीर मामला नैना पति नितेश भाटी का है, जो जीडी अस्पताल में इलाज के दौरान कोमा की शिकार हो गईं। नैना की हालत में सुधार नहीं हो रहा है और इसके लिए जीडी अस्पताल के डॉक्टर्स, विशेष रूप से एनेस्थियटिस्ट डॉ. गौरव यादव पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। नैना के भाई ने इसकी शिकायत स्वास्थ्य अधिकारियों से की है, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
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अस्पताल में मरीज का मामला
एक और दुखद घटना 7 सितंबर 2024 की है, जब शंभू नामक मरीज को सरकारी अस्पताल से जीडी अस्पताल शिफ्ट किया गया। शंभू के पेट में दर्द हो रहा था और जीडी अस्पताल के दलालों ने उसे गंभीर बताकर अस्पताल में भर्ती करवा दिया। इलाज के नाम पर लगातार पैसों की मांग की गई और अंत में शंभू की मौत हो गई। इसके बाद शंभू के परिजनों को बिना जानकारी दिए शव जिला अस्पताल भेज दिया गया। इस घटना ने सरकारी अस्पताल की भी भूमिका पर सवाल उठाए हैं।
जांचों पर सवाल और कार्रवाई की कमी
यहां तक कि पहले की जांचों के बावजूद, कार्रवाई का कोई स्पष्ट परिणाम सामने नहीं आया है। सरकारी अधिकारी जांच करने के बावजूद कुछ ठोस नतीजा देने में नाकाम रहे हैं। जांच अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते दिखाई दे रहे हैं, और यह सवाल उठता है कि क्या जांच सिर्फ समय बिताने के लिए की जा रही हैं?