सरकार को सिस्टम पर नहीं, योजनाओं के सोशल ऑडिट के लिए जनता पर भरोसा

प्रदेश में राज्य और केंद्र की योजनाओं की नब्ज को टटोलने के लिए सरकार अब हितग्राहियों का सहारा लेगी। अब तक प्रशासनिक तंत्र के जरिए फीडबैक ले रही सरकार इस बार आम जनता से अपनी योजनाओं का सोशल ऑडिट कराने जा रही है।

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Sanjay Sharma
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Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. प्रदेश में राज्य और केंद्र की योजनाओं की नब्ज को टटोलने के लिए सरकार अब हितग्राहियों का सहारा लेगी। अब तक प्रशासनिक तंत्र के जरिए फीडबैक ले रही सरकार इस बार आम जनता से अपनी योजनाओं का सोशल ऑडिट कराने जा रही है। इसके पीछे योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर उठ रहे सवालों को वजह माना जा रहा है। सरकार हितग्राहियों से योजनाओं की स्थिति, उनके लाभ और उनमें हो रही गड़बड़ी की जानकारी जुटाएगी। जिससे प्रशासनिक फीडबैक की समीक्षा की जा सके। हितग्राहियों के माध्यम से अपनी योजनाओं के सोशल ऑडिट पर कांग्रेस ने सवाल खड़े किए हैं। विपक्ष का कहना है सरकार को अपने तंत्र पर भरोसा नहीं है। योजनाओं में हो रही धांधली से जनता में बढ़ रही नाराजगी को कम करने के लिए सरकार ये पैंतरे अपना रही है। 

सरकारी तंत्र नहीं जनता पर भरोसा 

मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना जैसी लोकलुभावन योजना के साथ ही केंद्र की पीएम आवास, जनमन, आयुष्मान कार्ड जैसी योजनाएं चल रही हैं। केंद्र और राज्य सरकार की इन योजनाओं की जमीनी हकीकत जानने के लिए सरकार समय_समय पर अधिकारियों के स्तर पर समीक्षा करती रही है। लेकिन अब सरकार इन योजनाओं को लेकर जनता की राय को जानने सोशल ऑडिट कराने जा रही है। ये सोशल ऑडिट किसी एजेंसी या सरकार का कोई विभाग नहीं करेगा और न ही इसमें बीजेपी या किसी संगठन का दखल होगा। ये ऑडिट सरकार की योजनाओं का लाभ लेने वाली जनता यानी हितग्राहियों खुद करेंगे। यानी योजना कैसी है, उसका क्या असर है और हकीकत में उसका क्रियान्वयन जनता को फायदा पहुंचाने वाला है या नहीं ये हितग्राही ही बताएंगे।

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कैग की तर्ज पर तैयार होगी रिपोर्ट 

सोशल ऑडिट के जरिए जनता से जुटाए गए फीडबैक का डेटा जुटाने के बाद सरकार उसकी समीक्षा करेगी। इसमें योजनाओं को श्रेणियों में बांटकर जनता की राय, उनके सुझावों का परीक्षण किया जाएगा। इसके आधार पर जनता के बीच जिस योजना को अच्छा रिस्पांस मिलेगा उसे और बेहतर बनाया जाएगा। इन योजनाओं का बजट बढ़ाकर उसे और भी बूस्ट किया जाएगा। सोशल आडिट के लिए केंद्र और राज्य की योजनाओं का विभागवार खाका तैयार किया जाएगा। इनमें प्रधानमंत्री मातृवंदना, पीएम आवास, निशुल्क खाद्यान्न वितरण, पथ विक्रेता योजना, लाडली बहना योजना, लाड़ली लक्ष्मी योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन जैसी योजनाओं को रखा गया है। इन योजनाओं के हितग्राहियों से सीधे संपर्क कर कैग की तर्ज पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। आमजन के लिए चल रही योजनाओं के सोशल ऑडिट को लेकर प्रदेश सरकार उत्साहित है।  

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योजनाओं की नब्ज टटोल रही सरकार 

बीते कुछ महीनों में योजनाओं को लेकर आ रहे फीडबैक से सरकार नाखुश है। इनमें से कई योजनाओं को लेकर लोग भ्रमित हैं या फिर किसी प्रशासनिक पेंच या लालफीताशाही के कारण लाभ से वंचित हैं। वहीं कई योजनाओं में दस्तावेजी कमी बाधा बन रही है। ऐसी वजहें सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं की लोकप्रियता को कम करती हैं। प्रदेश सरकार इसी वजह से हितग्राही स्तर पर सोशल ऑडिट के माध्यम से योजनाओं की नब्ज टटोल रही है। वहीं इसके जरिए योजनाओं के क्रियान्वयन से जनता के जीवन स्तर में निजी या सामाजिक बदलाव की स्थिति का भी आंकलन किया जाएगा। जनता के फीडबैक के आधार पर जो रिपोर्ट तैयार होगी उसकी समीक्षा सीएम डॉ.मोहन यादव स्वयं करेंगे। सोशल ऑडिट के लिए अब सरकार की हरी झंडी का इंतजार किया जा रहा है।  

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फ्लैगशिप योजनाओं पर लुट रहा खजाना 

प्रदेश में जनता के कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर सरकार बेहिसाब खर्च कर रही है। लाड़ली बहना जैसी लोकप्रिय योजनाओं के संचालन के लिए तो सरकार को महीने_ दो महीने में करोड़ों रुपए का कर्ज तक लेना पड़ रहा है। साल 2023 में प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लाड़ली बहना योजना शुरू हुई थी। इसके तहत प्रदेश में 1 करोड़ 17 लाख से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं जिन्हें अब हर माह 1250 रुपए मिल रहे हैं। यानी इस योजना पर हर महीने सरकार को 1550 करोड़ खर्च करने पड़ रहे हैं। 

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सबसे लोकप्रिय एमपी की लाड़ली बहना 

योजना की लोकप्रियता के चलते बीजेपी ने महाराष्ट्र और दिल्ली में विधानसभा चुनाव जीतने इसी की तर्ज पर योजना शुरू की है। ऐसी ही एक योजना लाड़ली लक्ष्मी है। प्रदेश में 2 लाख 43 हजार से ज्यादा बालिकाएं इस योजना के तहत रजिस्टर्ड हैं। इस योजना पर सरकार सालाना 12 हजार 932 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। इसी तरह मातृ वंदना योजना के तहत दर्ज 52 लाख 75 हजार महिलाओं पर बीते वित्त वर्ष में सरकार 264 करोड़ खर्च कर चुकी है। आदिवासी समुदाय की बैगा, भारिया, सहरिया जनजातियों को कुपोषणमुक्त करने के लिए चल रही आहार अनुदान योजना के तहत 2 लाख 20 हजार महिलाओं पर सरकार हर महीने 33 करोड़ और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के 1 करोड़ 33 लाख परिवारों को सरकार 32 लाख 47 हजार टन अनाज दे चुकी है।  

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