हनुमानताल वार्ड की पार्षद कविता रैकवार को हाईकोर्ट से राहत, पद से हटाने का आदेश निरस्त

जबलपुर हाईकोर्ट ने हनुमानताल वार्ड की पार्षद कविता रैकवार को पद से हटाने का आदेश असंवैधानिक कर निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि छानबीन समिति का अंतिम निर्णय तक वे पद पर बने रहेंगी। इससे उनकी गरिमा बनी रही।

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Neel Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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JABALPUR. जबलपुर शहर के हनुमानताल क्षेत्र की वार्ड क्रमांक 24 की पार्षद कविता रैकवार को जबलपुर हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। संभागीय आयुक्त जबलपुर द्वारा 29 अप्रैल 2025 को पारित उस आदेश को हाइकोर्ट ने पूरी तरह से असंवैधानिक करार दिया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कविता रैकवार को पार्षद पद से हटाने वाले आदेश को निरस्त कर दिया है।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि जब तक उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति द्वारा अंतिम रूप से निर्णय नहीं ले लिया जाता, तब तक कविता रैकवार को पार्षद पद से हटाया जाना उचित नहीं है। इस आदेश के बाद कविता रैकवार की न केवल पद की गरिमा बरकरार रही है, बल्कि यह भी साफ हो गया कि न्यायपालिका के सामने अफसरशाही नहीं चल सकती।

जाति प्रमाणपत्र को लेकर पहले ही अदालत में लंबित था मामला

कविता रैकवार के वकील ने अदालत को अवगत कराया कि पार्षद पद के लिए अर्हता से संबंधित जाति प्रमाणपत्र को लेकर उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति ने 18 फरवरी 2025 को एक आदेश पारित किया था, जिसमें कविता की जाति पर संदेह जताते हुए उनके प्रमाणपत्र को अमान्य ठहराया गया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए कविता रैकवार ने हाईकोर्ट में एक याचिका (डब्ल्यू.पी. नं. 12753/2025) दायर की थी।

हाईकोर्ट ने 28 अप्रैल 2025 को इस याचिका का निस्तारण करते हुए जाति छानबीन समिति के आदेश को रद्द कर दिया था और समिति को निर्देशित किया था कि वह कविता रैकवार को पर्याप्त अवसर देकर और सतर्कता विभाग की सहायता से पुनः जांच करते हुए 45 दिनों के भीतर नया आदेश पारित करे।

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हाईकोर्ट के आदेश के ठीक अगले दिन पार्षद पद से हटाए जाने का आदेश

हैरान कर देने वाली बात यह रही कि हाईकोर्ट द्वारा 28 अप्रैल को यह आदेश पारित किए जाने के ठीक अगले दिन, यानी 29 अप्रैल 2025 को, संभागीय आयुक्त जबलपुर ने कविता रैकवार को पार्षद पद से हटाने का आदेश पारित कर दिया। आयुक्त ने अपने आदेश में 13 फरवरी 2025 को हुई समिति की बैठक और उसके परिणामस्वरूप 18 फरवरी को पारित निर्णय का हवाला दिया।

बता दें कि कमिश्नर ने इस आदेश में बाकायदा हाईकोर्ट की उस याचिका क्रमांक का भी उल्लेख किया था, जिसमें हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही थी । आयुक्त ने उस आदेश को आधार बनाया जिसे हाईकोर्ट एक दिन पहले ही रद्द कर चुका था।  जिससे यह साफ नजर आ रहा था कि रिटायरमेंट के ठीक पहले उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को नजरअंदाज कर आदेश जारी किया था।

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हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी देने के बाद भी कमिश्नर ने जारी की आदेश 

रिकॉर्ड के अनुसार, कविता रैकवार ने 23 अप्रैल 2025 को आयुक्त को एक विधिवत आवेदन प्रस्तुत कर बताया था कि उन्होंने हाईकोर्ट में जाति जांच समिति के आदेश के खिलाफ याचिका दाखिल की है और वह विचाराधीन है। उन्होंने यह भी आग्रह किया था कि जब तक कोर्ट निर्णय नहीं दे देता, तब तक की जाने वाली प्रशासनिक कार्रवाई को स्थगित रखा जाए।

बावजूद इसके, आयुक्त कार्यालय ने मामले को 29 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया और उसी दिन यह कहकर निर्णय सुना दिया कि कविता रैकवार और उनके वकील उपस्थित नहीं हुए, इसलिए उन्हें सुनवाई का अवसर नहीं दिया जाएगा। यह प्रक्रिया न्याय के मूल सिद्धांत audi alteram partem (दोनों पक्षों को सुनने का अधिकार) का उल्लंघन थी।

नहीं चली राज्य सरकार की दलीलें

राज्य की ओर से अधिवक्ता केकरे ने दलील दी कि नगर निगम अधिनियम की धारा 19(3) के अनुसार, पार्षद पद से हटाए जाने पर अपील का एक वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है, इसलिए याचिका विचार करने योग्य नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि आयुक्त को हाईकोर्ट द्वारा 28 अप्रैल को दिए गए निर्णय की जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने पुरानी जांच समिति की कार्यवाही के आधार पर निर्णय लिया, जिसे गलत नहीं माना जा सकता। लेकिन, कोर्ट ने इन तर्कों को ठोस कारणों से खारिज कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब याचिकाकर्ता ने आयुक्त को पहले ही अदालत में लंबित मामले की जानकारी दे दी थी, तब यह आयुक्त की जिम्मेदारी थी कि वह आदेश पारित करने से पहले अदालत के निर्णय की जानकारी प्राप्त करते।

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छानबीन समिति के पास मामला तो फिर कैसे जारी हुआ आदेश 

कोर्ट ने अपने फैसले में यह उल्लेख किया कि 18 फरवरी 2025 को पारित जाति छानबीन समिति का आदेश, जो आयुक्त के फैसले का आधार था, पहले ही रद्द किया जा चुका है और मामला पुनः समिति के पास विचाराधीन है। ऐसे में, उस रद्द किए गए आदेश के आधार पर किसी व्यक्ति को निर्वाचित पद से हटाया जाना कानूनन टिकाऊ नहीं है। इसलिए, 29 अप्रैल 2025 को पारित आयुक्त का आदेश विधिसम्मत नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने न केवल उस आदेश को खारिज किया बल्कि यह भी निर्देश दिया कि अब जब तक समिति नया आदेश पारित न कर दे, तब तक कविता रैकवार के खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाए।

पार्षद कविता रैकवार को मिली बड़ी राहत, राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज

हाईकोर्ट के इस आदेश से कविता रैकवार को बड़ी कानूनी और राजनीतिक राहत मिली है। यह फैसला न केवल उनके लिए सम्मान की पुनर्स्थापना है, बल्कि इससे उनके समर्थकों में भी खुशी की लहर दौड़ गई है। राजनीतिक हलकों में इस निर्णय की व्यापक चर्चा है, जहां इसे प्रशासन द्वारा जल्दबाज़ी में उठाए गए कदम के खिलाफ न्याय की जीत बताया जा रहा है। वहीं, विरोधी खेमे में अब इस मामले की अगली सुनवाई तक रणनीति तय करने की सुगबुगाहट तेज हो गई है।

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रिटायरमेंट के ठीक पहले कमिश्नर अभय वर्मा ने जारी किया था आदेश 

जबलपुर में कमिश्नर अभय वर्मा ने रिटायरमेंट के ठीक पहले यह आदेश जारी किया था। इस आदेश में उन्होंने  हाईकोर्ट में इस मामले की याचिका का भी जिक्र किया और बताया कि उच्च स्तरीय जांच समिति में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता कविता रैकवार उपस्थित नहीं हुई थी और जांच समिति ने एक पक्षीय फैसला सुनाया है इसके बाद हनुमानताल वार्ड के पार्षद पद को शून्य घोषित किया गया। अब यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि हाईकोर्ट के आदेश की ही अपने आदेश में गलत व्याख्या करने वाले कमिश्नर के ऊपर भी क्या कोई कार्रवाई होगी।

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