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जाली बैंक गारंटी के मामले में फंसी निर्माण कंपनी तीर्थ गोपीकॉन को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। हालांकि हाईकोर्ट ने कंपनी को यह स्वतंत्रता दी है कि वह कॉन्ट्रैक्ट से संबंधित अपने विवाद को वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र (ADR) के माध्यम से सुलझाए। वहीं कोर्ट ने CBI को निर्देशित किया है कि वह जाली बैंक गारंटी के मामले में जांच तेजी से पूरी करे और उसे निष्कर्ष तक पहुंचाए।
तीर्थ गोपीकॉन ने दायर की याचिका
अंकित नायर के जरिए तीर्थ गोपीकॉन की ओर से दायर याचिका में आरोप था कि संबंधित विभाग ने पहले दिए गए अनुबंधों को रद्द करने का नोटिस जारी किया है। यह नोटिस इस आधार पर भेजा गया कि कंपनी की ओर से निविदा के दौरान प्रस्तुत की गई बैंक गारंटी जाली पाई गई थी। इसके खिलाफ कंपनी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
184 करोड़ की फर्जी बैंक गारंटी का मामला
इंदौर की तीर्थ गोपीकॉन कंपनी, जो हाल ही में 454 करोड़ रुपए के कुक्कुट पालन केंद्र की स्मार्ट सिटी जमीन के सबसे बड़े रियल एस्टेट सौदे को लेकर सुर्खियों में रही थी। अब 184 करोड़ की फर्जी बैंक गारंटी मामले में CBI जांच के घेरे में आ गई है।
MP जल निगम को PNB कोलकाता की शाखा से दी गई इस गारंटी को फर्जी पाया गया। इसके बाद जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश पर 9 मई को CBI ने भोपाल मुख्यालय में केस दर्ज कर जांच शुरू की है। कंपनी का दावा है कि वह खुद धोखाधड़ी का शिकार हुई है। उसने रावजी बाजार थाने में इस संबंध में शिकायत भी की थी, जिसे आधार बनाकर CBI ने केस रजिस्टर किया है। हाईकोर्ट ने 30 जून तक जांच रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे। साथ ही, कंपनी को वैध गारंटी देने के लिए एक महीने की मोहलत भी दी थी।
तीर्थ गोपीकॉन को कोर्ट से नहीं मिली राहत, मामले पर एक नजर...
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हाईकोर्ट ने दिया था 30 दिनों का मौका
दिनांक 5 मई 2025 को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कंपनी को 30 दिन के भीतर नई बैंक गारंटी प्रस्तुत करने की अनुमति दी थी। साथ ही CBI, भोपाल को पूरे मामले की जांच करने का निर्देश भी दिया था। इसके बाद 30 जून को CBI ने सीलबंद लिफाफे में स्थिति रिपोर्ट कोर्ट में पेश की। इसमें बताया गया कि FIR दर्ज हो चुकी है और जांच अभी जारी है।
बाद में अनुबंध किया गया समाप्त
जब मामला अदालत में लंबित था, उसी बीच जल विभाग ने तीर्थ गोपीकॉन के साथ अनुबंध को पूरी तरह रद्द कर दिया। इसके चलते याचिकाकर्ता ने अदालत से अपनी याचिका में संशोधन करने की अनुमति मांगी ताकि वह इस नए घटनाक्रम के मद्देनजर अपनी बात रख सके।
मध्यस्थता का हवाला देते हुए आपत्ति
जल बोर्ड की ओर के वकील ने आपत्ति उठाई कि अनुबंध में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के अंतर्गत विवाद निपटाने का प्रावधान है। इसलिए कोर्ट में याचिका दाखिल करना उचित नहीं है। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से अनुरोध किया कि याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए ताकि कंपनी मध्यस्थता के माध्यम से आगे की कार्रवाई कर सके।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, लेकिन दिए बड़े निर्देश
जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजन बेंच ने पूरे मामले पर विचार करते हुए याचिकाओं को बिना किसी पूर्वाग्रह के खारिज कर दिया और यह स्पष्ट किया कि-
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याचिकाकर्ता को अनुबंध के अनुसार वैकल्पिक रास्ते अपनाने की पूरी स्वतंत्रता है।
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याचिका की वापसी का कोई असर CBI के जरिए की जा रही आपराधिक जांच पर नहीं होगा।
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CBI को निर्देशित किया गया है कि वह जांच तेजी से पूरी करे और कानून के अनुसार मामले को निष्कर्ष तक पहुंचाए।
इस आदेश के बाद अब तीर्थ गोपीकॉन को कॉन्ट्रैक्ट से जुड़े मसले सुलझाने के लिए हाईकोर्ट के बजाय मध्यस्थता जैसे वैकल्पिक उपायों का सहारा लेना होगा। वहीं CBI के लिए अदालत का यह आदेश एक साफ संकेत है कि जाली बैंक गारंटी मामले में अब तेजी से जांच पूरी कर कार्रवाई तय करें।
यह मामला उन तमाम सरकारी अनुबंधों पर सवाल खड़े करता है जिनमें जाली दस्तावेजों के सहारे ठेके हासिल किए जाते हैं, और अब हाईकोर्ट की सख्ती से उम्मीद की जा रही है कि ऐसे मामलों में जल्द से जल्द और कड़ी कार्रवाई होगी।
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का फैसला | Madhya Pradesh High Court | CBI Investigation