JABALPUR. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो न केवल हाइकोर्ट की संवेदनशीलता को दिखा रहा है, बल्कि न्यायपालिका की मानवीय दृष्टि को भी दर्शाता है। अदालत ने एक नाबालिग रेप पीड़िता के नवजात शिशु की कस्टडी उसके नाना-नानी को सौंपने का फैसला लिया है। यह फैसला जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह की सिंगल बेंच ने सुनाया। याचिका में पीड़िता के माता-पिता ने नवजात शिशु की परवरिश का अधिकार मांगा था, जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए यह फैसला दिया।
नाबालिक रेप पीड़िता से जुड़ा हुआ है मामला
यह मामला उस समय सामने आया जब एक नाबालिग लड़की को बलात्कार का शिकार होना पड़ा, जिसके कारण वह गर्भवती हो गई। यह स्थिति परिवार के लिए न केवल भावनात्मक आघात लेकर आई, बल्कि सामाजिक दबाव और कानूनी उलझनों का सामना भी करना पड़ा। गर्भावस्था के दौरान परिवार ने नाबालिग को सहारा दिया और उसे हर संभव मानसिक और भावनात्मक सहायता प्रदान की। नवजात के जन्म के बाद, पीड़िता के माता-पिता ने कोर्ट में याचिका दायर कर उसके भविष्य के लिए संरक्षक बनने की अनुमति मांगी। उन्होंने यह दलील दी कि नाबालिग पीड़िता अपनी उम्र, अनुभव और भावनात्मक स्थिति के कारण इस जिम्मेदारी को निभाने में सक्षम नहीं है।
हाईकोर्ट ने दिया संवेदनशील आदेश
जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह (Justice Avnindra Kumar Singh) ने मामले की सुनवाई के दौरान यह साफ किया कि अदालत का प्रमुख उद्देश्य बच्चे के हित की रक्षा करते हुए उसके अच्छे लालन पालन को सुनिश्चित करना है। उन्होंने यह भी कहा कि नाबालिग पीड़िता, जो खुद एक दर्दनाक घटना का शिकार है और मानसिक प्रताड़ना के दौर से गुजर रही है, उसके लिए मातृत्व की जिम्मेदारी उठाना असंभव होगा। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि नवजात को एक ऐसा वातावरण मिलना चाहिए, जहां वह सुरक्षित महसूस करे और उसका समुचित विकास हो सके।
पीड़िता के माता-पिता ने यह भी वादा किया कि वे बच्चे को बिना किसी भेदभाव के अपना लेंगे और उसे अपना नाम, पहचान और सुरक्षा प्रदान करेंगे। इस वादे के साथ अदालत ने उन्हें नवजात का कानूनी अभिभावक घोषित कर दिया।
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न्यायपालिका की संवेदनशीलता
यह फैसला समाज में न्यायपालिका की मानवीयता और पीड़ित परिवारों के प्रति उसकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। कोर्ट ने न केवल कानूनी प्रावधानों का पालन किया, बल्कि उस सामाजिक और भावनात्मक दर्द को भी समझा, जिससे यह परिवार गुजर रहा था। इस निर्णय से यह भी साफ होता है कि अदालतें अब ऐसे मामलों में पारंपरिक सोच से आगे बढ़कर, व्यावहारिक और मानवीय दृष्टिकोण अपना रही हैं।
यह मामला केवल एक कानूनी निर्णय नहीं है, बल्कि एक संदेश है कि पीड़ितों और उनके परिवारों को न्यायपालिका के लिए विश्वास बनाए रखना चाहिए। हाई कोर्ट का यह फैसला उन परिवारों के लिए एक उम्मीद की किरण है, जो ऐसी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
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