गले की हड्डी बनी ​कांग्रेस विधायक के कॉलेज की मान्यता समाप्ति, कोर्ट ने लगाई फटकार

निजी ​स्वार्थ की ​खातिर नौकरशाही कई बार​ सरकार की भी किरकिरी कराने से नहीं चूकती। मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग इसकी बानगी है। जहां व्याप्त भर्राशाही अब मौजूदा अफसरों के लिए परेशानी का सबब बन गई है।

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Ravi Awasthi
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भोपाल।

मध्य प्रदेश  के उच्च शिक्षा विभाग में क्या वाकई भांग घुली हुई है? जहां पैसों की खातिर,जिम्मेदार अफसर उल्टे—पुल्टे निर्णय लेने से भी नहीं चूकते। यह हम नहीं कह रहे,बल्कि राजधानी के एक निजी कॉलेज की मान्यता समाप्ति प्रकरण में हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान इसी आशय की टिप्पणी सामने आई। न्यायालय ने कॉलेज को पूर्व में दी गई मान्यता से जुड़े सभी दस्तावेज तलब किए हैं। प्रकरण में अगली सुनवाई 30 जून को होगी। 

दरअसल,उच्च शिक्षा विभाग ने गत 13 जून को राजधानी के दो दशक पुराने इंदिरा प्रियदर्शिनी कॉलेज की मान्यता खत्म कर दी थी। यह कॉलेज शहर के कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद का है। सरकार के फैसले के खिलाफ मसूद ने हाईकोर्ट में गत 19 जून को याचिका दायर की। इस प्रकरण को न्यायालय ने प्रा​थमिक प्रकरणों की सूची में शामिल कर,चार दिन बाद ही सुनवाई भी शुरू की।  

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कॉलेज प्रबंधन का तर्क बना मुसीबत

सूत्रों के मुताबिक,जिरह के दौरान कॉलेज प्रबंधन की ओर से तर्क दिया गया कि जिन दस्तावेजों का हवाला देकर मान्यता को खत्म किया गया। इन्हीं के आधार पर बीते दो दशक से कॉलेज संचालित किया जा रहा है। दस्तावेजों में कमी की बात कॉलेज प्रबंधन की ओर से पहले ही स्वीकार की जा चुकी है। बावजूद इसके कॉलेज की मान्यता नवीनीकरण में कभी कोई अड़चन नहीं आई। 

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द्वेषतावश मान्यता समाप्ति का दिया हवाला

यचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि कॉलेज प्रमुख मसूद विधायक हैं व विपक्षी दल से आते हैं। इस नाते कॉलेज को द्वेषतावश निशाना बनाया गया। सरकारी अधिवक्ता ने भी इस बात को स्वीकार किया कि मान्यता के लिए जरूरी दस्तावेजों में गड़बडी की बात पहले भी विभाग के संज्ञान में रही है। 

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इसके बाद ही यह टिप्पणी सामने आई ​की क्या उच्च शिक्षा के समूचे सिस्टम में भांग घुली हुई है। जब तक निजी स्वार्थ सिद्ध होता रहा,मान्यता जारी रही। बताया जाता है कि इसके बाद न्यायालय ने आगामी 30 जून को प्रकरण की अगली सुनवाई तय करते हुए संबंधित दस्तावेज पेश करने के आदेश दिए। न्यायालय के इस रुख के बाद कॉलेज प्रबंधन और विभागीय अधिकारी दोनों पशोपेश में हैं।

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4 सालों से एक विवि की दूसरे से संबंद्धता !

वाकई,उच्च शिक्षा विभाग में वाकई गजब की भर्राशाही है। मप्र का पहले निजी महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय का प्रकरण इसकी बानगी है। विवि ने बीपीएड पाठयक्रम संचालित करने स्वयं को रानी दुर्गावती विवि से संबंद्ध होना बताया। बीते चार सालों से इसी संबंद्धता के आधार पर पाठयक्रम संचालित होते रहा। बीते दिनों द सूत्र ने इस मामले का खुलासा किया। इसके बाद निजी विवि प्रबंधन ने हाल ही में विभाग को एक पत्र लिखकर विभागीय पोर्टल में उक्त त्रुटि को सुधारने का आग्रह किया है। इसका ठीकरा एनसीटीई पर फोड़ा गया। 

खास बात यह कि यूजीसी की ओर से निजी विवि को अपने मुख्यालय के बाहर पाठ्यक्रम संचालित करने का अधिकार नहीं है। बावजूद इसके वह बार-बार अपना पता बदलकर पाठ्यक्रम संचालित करता रहा है। वहीं, विभाग आंख बंदकर न केवल उसे इसकी अनुमति दे रहा है,बल्कि अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर संबंधित पाठ्यक्रमों की फीस भी तय कर रहा है। 

 

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