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MP NEWS: मध्य प्रदेश के जबलपुर रेलवे स्टेशन पर मंगलवार की दोपहर उस समय अफरा-तफरी मच गई। यहां पर बाहरी राज्यों से आए दर्जनों मजदूरों को घेर लिया और जबलपुर आने का विरोध करने लगे। यह मजदूर मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल) और बिहार जैसे क्षेत्रों से जबलपुर आए थे, जिनका स्टेशन पर पहुंचना ही विवाद का कारण बन गया। आरोप लगाया गया कि ये युवक फर्जी पहचान पत्र के सहारे जबलपुर में प्रवेश कर रहे हैं और उनका मकसद केवल मजदूरी नहीं, बल्कि शहर के सामाजिक वातावरण को प्रभावित करना भी हो सकता है। यह घटना कुछ ही मिनटों में इतनी गंभीर हो गई कि आम यात्रियों और स्थानीय लोगों को भी स्टेशन से बाहर निकलने में कठिनाई होने लगी।
फर्जी पहचान बनाकर शहर में दाखिल होने का आरोप
हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने इस पूरे मामले को मुर्शिदाबाद हिंसा में हुई एक सांप्रदायिक तनाव की घटना से जोड़ा। उनका आरोप है कि मुर्शिदाबाद में जिस प्रकार वर्ग विशेष के युवकों द्वारा माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई थी, उसी कड़ी में अब ये युवक जबलपुर जैसे शांत शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। उनका मानना है कि योजनाबद्ध तरीके से ये लोग फर्जी पहचान बनाकर शहर में दाखिल हो रहे हैं और स्थानीय समाज के बीच अविश्वास फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी शंका के चलते संगठन के लोगों ने रेलवे स्टेशन पर इन मजदूरों की जांच-पड़ताल शुरू की।
आईडी में नाम का रहस्य, पहचान पर संदेह
हंगामे की असली वजह तब सामने आई जब संगठन के कार्यकर्ताओं ने इन मजदूरों से उनकी पहचान संबंधी दस्तावेज मांगे। अधिकांश युवकों ने आधार कार्ड न दिखाकर अपने कार्यस्थल यानी ब्रिज निर्माण कंपनी के आईडी कार्ड प्रस्तुत किए, जिसमें उनके नाम हृदेश एस के, दीपक, महेश आदि के रूप में दर्ज थे। कार्यकर्ताओं को आपत्ति इस बात पर हुई कि मुस्लिम समुदाय से होने के बावजूद इन मजदूरों के नाम हिंदू जैसे क्यों हैं? साथ ही कुछ मजदूरों के आईडी में सरनेम की जगह केवल "एस के" जैसे संक्षेप अक्षर दर्ज थे, जिसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि ये लोग जानबूझकर अपनी असली पहचान छुपा रहे हैं और शहर में किसी बड़ी साजिश के तहत दाखिल हुए हैं। यह संदेह इतना गहरा गया कि बहस तेज हो गई और मामला शारीरिक हिंसा तक पहुंच गया।
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मारपीट और तनाव, पुलिस ने संभाला मोर्चा
स्थिति तब और बिगड़ गई जब एक महिला कार्यकर्ता ने इनमें से एक युवक पर पहचान छिपाकर शहर में घुसने का आरोप लगाते हुए उस पर हाथ उठा दिया। अन्य युवक डर के मारे पीछे हटने लगे लेकिन भीड़ उग्र होती जा रही थी। इसी बीच स्टेशन परिसर में मौजूद स्थानीय पुलिस ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए सिविल लाइन थाने को सूचित किया। कुछ ही देर में थाना प्रभारी के नेतृत्व में पुलिस बल मौके पर पहुंचा और दोनों पक्षों को अलग किया गया। पुलिस ने तुरंत ही मजदूरों से आधार कार्ड मंगवाए और उनकी पहचान की पुष्टि प्रारंभ की। यह स्पष्ट किया गया कि आधार कार्ड से सत्यापन के बाद ही किसी प्रकार की कार्रवाई की जाएगी। पुलिस की सक्रियता से माहौल कुछ हद तक शांत हुआ, लेकिन तनाव अब भी बना रहा।
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तिलवारा ब्रिज के निर्माण कार्य से जुड़े है मजदूर
पुलिस जांच में यह तथ्य सामने आया कि ये सभी मजदूर जबलपुर के तिलवारा क्षेत्र में निर्माणाधीन पुल (ब्रिज) के कार्य के लिए अधिकृत रूप से लाए गए हैं। यह ब्रिज एक महत्वपूर्ण संरचना परियोजना है, जिसमें कई बाहरी एजेंसियों को कार्य दिया गया है। इन्हीं एजेंसियों के ठेकेदार ने मुर्शिदाबाद, बिहार और अन्य क्षेत्रों से मजदूरों की नियुक्ति की है। इनके पास कंपनी के आईडी कार्ड थे जो निर्माण साइट से जुड़े कर्मचारियों को दिए जाते हैं। थाना प्रभारी ने यह भी बताया कि मजदूरी के दस्तावेजों के साथ-साथ आवास और भोजन की व्यवस्था भी संबंधित एजेंसी द्वारा की जा रही है। ऐसे में इन मजदूरों के जबलपुर आने को किसी भी रूप में अवैध नहीं ठहराया जा सकता।
थाना प्रभारी का आश्वासन: हर पहलू की होगी जांच
थाना प्रभारी ने हंगामा कर रहे संगठनों को स्पष्ट किया कि हर मजदूर की पहचान कानून के तहत सत्यापित की जाएगी और यदि कोई फर्जी दस्तावेज पाया गया, तो उस पर कानूनी कार्रवाई होगी। उन्होंने बताया कि सभी मजदूरों के स्थायी पते, आधार नंबर और कंपनी रिकॉर्ड की पूरी जांच की जा रही है, और अब तक किसी प्रकार की असामान्य गतिविधि या फर्जीवाड़ा सामने नहीं आया है। उन्होंने यह भी अपील की कि सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश न की जाए और किसी भी तरह के संदेह को पुलिस को सौंपा जाए, न कि भीड़ को।
अब पहचान ही बन रही सबसे बड़ी चुनौती
इस पूरी घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या आज का समाज किसी की पहचान के आधार पर उसे काम करने या कहीं बसने देने से पहले उसकी आस्था, भाषा या क्षेत्र पर शक करने लगा है? देश के विभिन्न कोनों से आए मजदूर केवल अपनी रोज़ी-रोटी के लिए यात्रा करते हैं, लेकिन अगर उनकी पहचान ही उनका अपराध बन जाए, तो यह लोकतंत्र और सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरनाक संकेत है। जबलपुर की यह घटना सिर्फ मजदूरी और फर्जी पहचान की कहानी नहीं, बल्कि उस बदलते सामाजिक नजरिए की तस्वीर है, जहां धर्म, नाम और भाषा पर भरोसा कम और शक अधिक किया जा रहा है।