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इंदौर। होली-रंगपंचमी का पर्व दुनियाभर में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल की तरह इस बार भी इंदौर का अनूठा उत्सव रंगपंचमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से 19 मार्च को मनाया जाएगा। इसके लिए इंदौर की फैक्ट्रियों में क्विंटलों रंग-गुलाल तैयार हो चुके हैं। इन रंगों को बनाने का काम करीब 4-5 माह पहले से ही शुरू हो जाता है। इन रंगों को लेकर लोगों के मन में कई तरह के संशय रहते हैं कि ये रंग कैसे बनते होंगे और इनके बनने की प्रक्रिया क्या होती है। आखिर इन रंगों की गुणवत्ता को कैसे जांचा जा सकता है? द सूत्र की एक खास रिपोर्ट में जानिए...
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यूके और महाराष्ट्र में जाते हैं रंग-गुलाल
शहर की एक फैक्ट्री के संचालक प्रकाश जैन ने बताया कि हमारी फैक्ट्री में सभी प्रकार के रंग-गुलाल बनते हैं। ये पूरी तरह हाइजीनिक होते हैं। इन रंग-गुलाल को हम खासतौर पर यूके और महाराष्ट्र में भी एक्सपोर्ट करते हैं। जितने भी रंग बनते हैं, उनका पहले स्टार्च तैयार किया जाता है, फिर गीला करने के बाद इसे सुखाकर, छानकर और पैकिंग की जाती है। ये कलर पानी में घुलने वाले होते हैं। इन्हें मशीन में ग्राइंड किया जाता है और ये सभी रंग फूड आइटम्स से बनते हैं। होली के करीब चार-पांच माह पहले ही रंग-गुलाल बनना शुरू हो जाता है।
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25 मिनट में 400 किलो रंग बनता है, तीन दिन में होता है तैयार
इंदौर में लगभग 5-6 फैक्ट्रियां हैं जहां रंग-गुलाल बनाए जाते हैं। फैक्ट्री मालिकों के मुताबिक, होली के रंग की मशीन में प्रोसेस करीब 20-25 मिनट में 400 किलो तक होती है। यह गीला माल होता है, इसके बाद इसे सुखाया जाता है और फिर छनाई होने के बाद पैकिंग होती है। इस तरह तीन दिन की प्रक्रिया के बाद रंग तैयार होता है। सभी रंग फूल कलर से बनते हैं और जो माल बाहर जाता है, उसे हम सर्टिफिकेट भी देते हैं और उसकी टेस्टिंग भी कराते हैं। इसके अलावा, यदि कोई भी व्यक्ति इसे चेक कराना चाहे तो वह लैब में भी जांच कर सकता है।
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ऐसे भी कर सकते हैं रंग की जांच
आजकल मार्केट में हर्बल रंग बताकर नुकसानदायक रंग भी बेचे जा रहे हैं। ऐसे में जब रंग खरीदें तो उसकी थोड़ी-सी मात्रा लेकर पानी में घोलकर उसकी पहचान करें। यदि रंग पानी में आसानी से घुल जाता है, तो वह नैचुरल रंग है और यदि नकली या मिलावटी रंग है, तो वह पानी में पूरी तरह नहीं घुलेगा। इसके साथ ही, ज्यादा चमकीले रंग न खरीदें क्योंकि इनमें कांच के कण भी मिलाए जाते हैं। रंगों को बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री लेबल पर लिखी होती है, उसे भी अच्छी तरह से पढ़ें। रंगों की गंध से भी आप असली और नकली रंगों की पहचान कर सकते हैं।
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रंग, परफ्यूम, पानी और फूलों की मिसाइलें
प्रतिवर्ष 35 किलो की एक गुलाल की बोरी होती है, जो करीब 150 बोरियां लगती हैं। इसके अलावा, 150 किलो फूल, दस किलो आधा गुलाबी और आधा केसरिया रंग, परफ्यूम की 12 बोतलें, चार पानी के टैंकर, एक बोरिंग मशीन, पांच ट्रैक्टर ट्रॉलियां, बैंड, 21 ढोल, दो बड़े ट्रैक्टर ट्रॉले, दो डीजे और जनसमूह गेर में शामिल होते हैं।
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इंदौर के गेर में टनों से उड़ते हैं रंग-गुलाल
शेखर गिरी ने बताया कि रंगपंचमी पर निकलने वाली गेर के लिए हम रंगाड़े, ट्रैक्टर ट्रॉली और कोठियों में पानी भरते हैं और टैंकर ट्रॉलियों में रंग भरकर मिसाइलों से रंग उड़ाया जाता है। बोरिंग मशीन से भी कई रंग उड़ाए जाते हैं। गेर में डीजे भी लगाया जाता है, जिससे उत्साह और बढ़ जाता है। गेर में कोई भी गैर नहीं रहता है। इसमें इस्तेमाल होने वाला गुलाल अरारोट का होता है, जिसे दो-तीन दिन पहले मंगाया जाता है। गेर के लिए हमें करीब 150 कट्टे गुलाल के लाने पड़ते हैं और सभी रंगों का मिश्रण किया जाता है। इसमें हम हर्बल रंग भी मिलाते हैं। गेर को निकले हुए करीब 76 वर्ष हो चुके हैं।
प्रेम, सद्भाव और सर्वधर्म की गेर
साल 1948 और 50 के दशक से ही इंदौर में रंगपंचमी के दिन गेर निकालने की परंपरा चली आ रही है। इस गेर का प्रारंभ टोरी कॉर्नर पर कढ़ाव लगाकर किया जाता था। यह परंपरा बाबुलाल जी गिरी और बाबुलाल गिरी द्वारा शुरू की गई थी। इसी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले टोरी कॉर्नर के शेखर गिरी ने बताया कि 1983--84 से इस गेर को लगातार जारी रखा जा रहा है। गेर का स्वरूप लगातार बदलता जा रहा है। यह एक सामंजस्य, सद्भाव और सर्वधर्म की गेर है। इसमें कई राजनेता, फिल्मी सितारे और कई जाने-माने लोग शामिल होते हैं।