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मध्य प्रदेश के गुना जिले में मानवता को शर्मसार करने वाला ऐसा मामला सामने आया है, जिसने पूरे सिस्टम को झकझोर कर रख दिया है। यहां 'रहुआ' नाम के लोकल तंत्र के तहत मानसिक रूप से बीमार, लावारिस और बेसहारा लोगों को जानवरों की तरह कैद कर उनसे गुलामी कराई जा रही थी।
पुलिस और प्रशासन ने बीनागंज और चांचौड़ा अंचल में संयुक्त कार्रवाई में 16 लोगों को छुड़ाया है, जिन्हें वर्षों से कैद कर बंधुआ मजदूरी करवाई जा रही थी। ये मामला दो दिन पहले का है। अब सामने आया है। कुछ पीड़ित दो दशक से भी ज्यादा समय से बंधन में थे। इस अत्याचार में शामिल 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि एक की तलाश जारी है।
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कुप्रथा के नाम पर बनाया बंधक...
यह तंत्र दिखने में जितना साधारण है, हकीकत में उतना ही भयावह है। 'रहुआ' यानी रहो और खाओ... इस मासूम से शब्द के पीछे अमानवीय तंत्र है, जिसमें पीड़ितों को केवल रहने की जगह और जूठन देकर दिन-रात बेगारी कराई जाती थी। उन्हें खेतों में, पशुशालाओं में, ईंट-भट्ठों, ढाबों और घरों में बिना वेतन खपाया जाता था। सोने के लिए जगह मिलती थी जानवरों के तबेलों में और खाने को सिर्फ बासी रोटी। न कोई छुट्टी, न इलाज, न कोई इंसानी हक। मुक्त कराए गए 16 लाखों में से कुछ के शरीर पर चोटों के निशान मिले हैं।
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पीड़ित कौन थे...
छुड़ाए गए सभी लोग पुरुष हैं। ये मानसिक रूप से अस्वस्थ, गरीब, बेसहारा या सड़कों पर भटकते हुए मिले थे। कई को ट्रक ड्राइवर रास्ते में उतार गए, तो कुछ को बहला-फुसलाकर लाया गया था। एक बार जब यह लोग रहुआ तंत्र में फंसे तो फिर उनके लिए कोई वापसी नहीं थी। पहचान छीन ली गई थी, काम का कोई हिसाब नहीं होता था और बाहर जाने की इजाजत तो दूर की कौड़ी थी।
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भागने की कोशिश की तो 'शिकार'...
कई पीड़ितों की दास्तां दिल दहला देने वाली है। एक व्यक्ति ने बताया कि वह कभी सरकारी संस्था में काम करता था, लेकिन सफर में रास्ता भटक गया। किसी ने दोस्ती कर उसे फंसाया और बंधुआ मजदूरी में धकेल दिया। एक अन्य ने कहा कि उसे खाना और घर का लालच देकर लाया गया, लेकिन फिर जानवरों की तरह गुलामी करवाई गई।
तीसरे पीड़ित ने बताया कि वह पास के राज्य में ढाबे पर काम करता था, लेकिन उसे झांसा देकर बीनागंज लाया गया और भैंसों को चारा डालने, गोबर उठाने और खुले में सोने को मजबूर किया गया।
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हालत देखकर अधिकारी भी चौंके...
गुना कलेक्टर किशोर कुमार कन्याल के अनुसार, सभी 16 व्यक्तियों को शिवपुरी के अपना घर आश्रम में भेजा गया है, जहां उन्हें मेडिकल सहायता और मनोवैज्ञानिक परामर्श दिया जा रहा है। रेस्क्यू के दौरान जिन हालातों में पीड़ित मिले हैं, वह किसी नरक से कम नहीं थे। हम लगातार कार्रवाई कर रहे हैं।
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यह पहली बार नहीं…
गुना पहले भी इस तरह की खबरों के लिए चर्चा में आ चुका है। साल 2021 में भी 20 बंधुआ मजदूरों को छुड़ाया गया था, जिनमें 11 नाबालिग थे। उनमें से पांच को सजा के तौर पर खौलते तेल में हाथ डालने पर मजबूर किया गया था। कुछ बच्चों के भागने पर ही मामला उजागर हुआ था।
दबंगों के लिए गुलाम रखना प्रतिष्ठा की बात...
चांचौड़ा क्षेत्र के दर्जनों गांवों में यह सिस्टम वर्षों से फल-फूल रहा है। यहां दबंगों के लिए यह सामाजिक प्रतिष्ठा बन गई थी कि उनके यहां कितने बंधुआ हैं। हाईवे पर अकेले नजर आने वाले लोगों को पकड़कर जबरन कैद किया जाता है। पहले लालच, फिर धमकी और आखिर में झूठे केस का डर दिखाकर उन्हें रख लिया जाता है।
प्रशासन की सख्ती के बाद डर...
जैसे ही प्रशासन ने ऐलान किया कि जो स्वेच्छा से अपने बंधुआ मजदूर को छोड़ देंगे, उन्हें एफआईआर से राहत मिलेगी। इसके बाद दबंगों ने अगले ही दिन छह और पीड़ितों को मुक्त कर दिया। गुजरात के अहमदाबाद स्थित एक स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक रामसिंह को भी गुलामी में धकेल दिया गया था। वे मथुरा पैदल जा रहे थे, तभी उन्हें पकड़ लिया गया और मजदूरी में झोंक दिया गया। यूपी के रायबरेली के वीरेंद्र यादव एनटीपीसी में काम करते थे। बीनागंज आते समय रास्ते में ही फंसा दिए गए और तबेले में कैद हो गए।