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BHOPAL. मध्यप्रदेश गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मंडल एक बार फिर सवालों के घेरे में है। विकास कार्यों और टेंडर प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं ने बोर्ड की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला केवल टेंडर निरस्तीकरण तक सीमित नहीं है। यह प्रदेशभर में चल रहे कथित ठेकेदार-अफसर गठजोड़ की ओर इशारा करता है।
बोर्ड की बैठक मैं बड़ा फैसला, बड़ा संकेत
18 दिसंबर को हुई संचालक मंडल की बैठक में टेंडर घोटाले से जुड़े मामलों पर विस्तार से चर्चा हुई। बैठक में बोर्ड अध्यक्ष कैलाश विजयवर्गीय, आयुक्त राहुल हरिदास फटिंग, प्रमुख सचिव संजय दुबे समेत अन्य सदस्य मौजूद रहे। जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद मंडल ने कड़ा रुख अपनाया। 19 दिसंबर को को जांच में दोषी पाए गए इंजीनियरों को सस्पेंड किए जाने के आदेश जारी कर दिए।
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ग्वालियर कमर्शियल कॉम्प्लेक्स टेंडर बना विवाद की जड़
अटल कुंज, दीनदयाल नगर सेक्टर-ए, ग्वालियर में प्रस्तावित कमर्शियल कॉम्प्लेक्स की निविदा 30 अक्टूबर 2024 को जारी की गई थी। निविदा बिक्री के दौरान शर्तों में बार-बार बदलाव किए गए। इससे भ्रम की स्थिति बनी और पूरी टेंडर प्रक्रिया पर सवाल उठ गए।
निविदा शर्तों में हेरफेर, प्रक्रिया हुई दूषित
जांच में सामने आया कि टेंडर की शर्तों में अनियमित संशोधन किए गए। ये बदलाव पारदर्शिता के खिलाफ थे। इससे एक विशेष ठेकेदार को कथित रूप से लाभ पहुंचाने की कोशिश हुई। अंत में मुख्यालय को टेंडर निरस्त करना पड़ा।
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ठेकेदार पहुंचा हाईकोर्ट, खुली अंदरूनी परतें
टेंडर निरस्तीकरण से नाराज ठेकेदार ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने मामले को बिजनेस कमेटी/संचालक मंडल के समक्ष रखकर 60 दिनों में निर्णय के निर्देश दिए। कोर्ट के आदेश के बाद बोर्ड को मजबूरी में बैठक बुलानी पड़ी।
जांच में उजागर हुआ अफसर-ठेकेदार गठजोड़
जांच में सामने आया कि इंजीनियरों और अधिकारियों ने नियमों की अनदेखी की। उन्होंने ठेकेदार को अनाधिकृत लाभ पहुंचाने की कोशिश की। टेंडर प्रक्रिया को जानबूझकर लंबा खींचा गया। इससे बोर्ड के समय और संसाधनों की बर्बादी हुई।
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निलंबन की कार्रवाई: दो इंजीनियरों पर गिरी गाज
संचालक मंडल ने जांच के आधार पर दो अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। एस.के. सुमन, उपायुक्त (अपर आयुक्त चालूप्रभार), मुख्यालय भोपाल, नीरू राजपूत, सहायक यंत्री (कार्यपालन यंत्री चालूप्रभार), संभाग-1 ग्वालियर दोनों पर शासकीय कार्य में लापरवाही, स्वेच्छाचारिता और अनुशासनहीनता के आरोप पाए गए।
ठेकेदारों पर भी कार्रवाई, फिर भी सवाल कायम
आयुक्त एमपी हाउसिंग बोर्ड ने संबंधित ठेकेदारों को सस्पेंड किया है। जारी आदेशों में कहा गया कि निविदा प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कृत्य बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। सवाल यह है कि जब गठजोड़ लंबे समय से चल रहा था, तो बोर्ड की निगरानी व्यवस्था कहां थी?
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पुराने मामलों से जुड़ती नई कड़ियां
यह मामला कोई अपवाद नहीं माना जा रहा। इससे पहले भी बोर्ड के विकास कार्यों और टेंडरों में अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। बार-बार एक जैसे पैटर्न सामने आना सिस्टमेटिक गड़बड़ी की ओर इशारा करता है।
प्रदेशभर में कैसे चलता है टेंडर मैनेजमेंट?
सूत्रों की मानें तो कुछ जिम्मेदार इंजीनियर और अफसर ठेकेदारों के साथ मिलकर टेंडर की शर्तें “जरूरत के मुताबिक” बदली जाती हैं। इससे प्रतिस्पर्धा खत्म होती है और तय लोगों को काम मिल जाता है। ग्वालियर का मामला इसी बड़े नेटवर्क की एक कड़ी माना जा रहा है।
कार्रवाई या सिर्फ दिखावा?
दो अधिकारियों का निलंबन और ठेकेदारों पर कार्रवाई जरूर हुई है, लेकिन असली सवाल सिस्टम सुधार का है। क्या यह कार्रवाई भविष्य में ऐसे गठजोड़ को रोकेगी, या फिर यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा?
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