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गुना में जन्मे, उज्जैन में रच-बस गए और पूरे प्रदेश में अपनी कीर्ति से छा गए जबलपुर कलेक्टर
मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित… चाहता हूं देश की धरती तुझे अभी कुछ और भी दूं। रामवतार त्यागी की यह कविता वाक्य विन्यास का सौंदर्यभर नहीं है। यह उस मन की भावना भी है, जो 5 जनवरी 2024 से जबलपुर में आम आदमी की भावनाओं को एक सूत्र में पिरोए हैं। हम बात कर रहे हैं, जबलपुर कलेक्टर आईएएस दीपक कुमार सक्सेना की। वे 2010 बैच के आईएएस हैं। वे जबलपुर में 5 जनवरी 2024 से पदस्थ हैं। लोगों की मौलिक समस्याओं को दूर कर रहे हैं।
इंजीनियर बनने का था सपना, सिविल सेवा में आए
दीपक कुमार सक्सेना का जन्म गुना में 29 दिसंबर 1967 को हुआ। पिता मध्यप्रदेश इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में थे। पांचवीं तक की पढ़ाई उन्होंने गुना में ही की। पिता का तबादला उज्जैन हुआ तो पूरा परिवार बाबा महाकाल की नगरी में ही रच-बस गया। दीपक का रुझान शुरुआती दिनों से ही गणित की ओर था। वे इंजीनियर बनना चाहते थे, लिहाजा उन्होंने गणित विषय से एमएससी की। किसी कारण वे इंजीनियरिंग की ओर नहीं जा सके।
एक नौकरी चाहते थे, फिर भी बैंक की नौकरी छोड़ दी
कलेक्टर दीपक सक्सेना का कहना है, पारिवारिक हालात ऐसे थे कि एमएससी करने के बाद उन्हें एक नौकरी की जरूरत थी। उन्होंने बैंक की परीक्षा दी और नौकरी मिल गई। फिर किसी ने कहा और भी अच्छी नौकरी मिल सकती है। बस! फिर क्या था। उन्होंने नौकरी छोड़ दी। सिविल सेवा की ओर मुड़ गए। तैयारी की और पहले ही प्रयास में वे एमपी-पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में चयनित हो गए। इसके बाद उन्हें अपना लक्ष्य साफ दिखने लगा। उन्हें भरोसा था कि वे सिविल सेवा की परीक्षा में चयनित होंगे। उन्होंने इतिहास और मानवशास्त्र विषय के साथ पढ़ाई की और एमपी-पीएससी में चयनित हुए। मेहनत करते रहे और आगे बढ़ते रहे।
करियर
आईएएस दीपक कुमार सक्सेना ने पीएससी के बाद ही संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी भी शुरू कर दी। हालांकि इसमें थोड़ा वक्त लगा, लेकिन उन्हें भरोसा था कि वे अपने लक्ष्य को हासिल कर लेंगे। 12 जून 2017 को मप्र सरकार में प्रशासन के अंग बने। एमपी-पीएससी के जरिए सेवा में आए और 2010 में आईएएस बने। वे कई पदों पर रह चुके हैं। जबलपुर कलेक्टर बनने से पहले वे खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति व उपभोक्ता संरक्षण विभाग के संचालक रहे हैं। इससे पहले वे मप्र राज्य भंडार गृह निगम भोपाल में प्रबंध संचालक थे।
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समर्पण ऐसा, जनता का दिल जीत लिया
जबलपुर में शिक्षा के नाम पर रहे बुक-ड्रेस की फिक्सिंग के खेल को कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना ने नेस्तनाबूद कर दिया। 65 निजी स्कूलों के कॉकस को उन्होंने कानून के दायरे में लाकर शिकंजा कस दिया। स्कूल और दुकानदारों के गठजोड़ से पैरेंट्स की जेब स्कूल ड्रेस और किताबों के नाम पर खाली की जा रही थी। स्कूलों पर कलेक्टर ने कार्रवाई का डंडा चलाया और केस दर्ज कराया। कई स्कूलों ने फीस के नाम पर ज्यादा वसूली की तो करोड़ों रुपए लौटाने पर स्कूलों को विवश कर दिया। इस कार्रवाई ने जनता का दिल जीत लिया।
कुछ बातें घर की...
आईएएस सक्सेना के घर की बातें भी आम लोगों की तरह ही हैं। पत्नी, मां, बेटे-बेटी। अमूमन घर में बहू और सास दो विचारधारा की होती हैं। लेकिन सक्सेना के घर में पत्नी और मां दोनों के विचार एक जैसे हैं। मां हमेशा, पत्नी के साथ खड़ी होती हैं और सक्सेना को डांट लगाती हैं। बकौल सक्सेना पत्नी ने सामान्य जीवन की तरह ही प्रोफेशनल जीवन में भी पूरा सहयोग दिया है। यही कारण है कि वे बेहतर प्रशासक बन सके।
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बेटे को खो चुके, पर जज्बा जनता के लिए वही पुराना
आईएएस अफसर दीपक कुमार सक्सेना के दो बच्चे हैं। एक बेटा और एक बेटी। दोनों अपनी प्रोफेशनल लाइफ में खुश थे। दोनों ने क्रिएटिव लेखन की फील्ड अपनाई। अफसोस! उनके कलेक्टर बनने के महज पांच माह बाद ही 2 जून 2024 को बेटे अमोल सक्सेना की मौत हो गई। दिल्ली में वे फिल्म स्टडीज कोर्स कर रहे थे। हीट स्ट्रोक ने सक्सेना परिवार के चिराग को बुझा दिया। बेटे को बीमारी की हालत देखने के लिए पिता दीपक नागपुर से फ्लाइट लेने वाले थे। इससे पहले ही उन्हें यह बुरी खबर मिली। वे अंदर से टूटे, पर जनता के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा एक पिता से कहीं ज्यादा था। वे अनवरत जन हित के कार्यों में खुद को झोंके हैं।
युवाओं के लिए मंत्र..
आईएएस दीपक सक्सेना कहते हैं, अब पहले की तरह अफसरी नहीं हो सकती। लोगों के साथ कम्युनिकेशन बढ़ाना होगा। मेहनत पर भरोसा रखिए और बढ़ते रहिए। सफलता तो मिलकर रहेगी।
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