मणिपुर-त्रिपुरा कैडर के 2001 बैच के IAS अधिकारी मोहनलाल मीणा की याचिका पर जबलपुर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के निर्णय को बरकरार रखा। कोर्ट ने उनकी मणिपुर में जान को खतरा बताने वाली याचिका को खारिज कर दिया। 2020 की इंटेलिजेंस रिपोर्ट के आधार पर स्थायी ट्रांसफर की मांग को स्वीकार नहीं किया गया।
दो विधायकों से टकराव के बाद शुरू हुआ विवाद
IAS मोहनलाल मीणा का मामला 2006 से शुरू होता है, जब मणिपुर में उपायुक्त रहते हुए उनका दो विधायकों से इसलिए विवाद हो गया क्योंकि उन्होंने पद में रहते हुए विधायकों के कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल कर दिए थे। हालांकि अब उन दोनों विधायकों की मौत हो चुकी है।
याचिकाकर्ता का आरोप था कि 28 और 30 जनवरी 2006 को उन पर जानलेवा हमला हुआ, जिसके बाद उन्होंने 15 फरवरी 2006 को केंद्र सरकार से मणिपुर छोड़कर किसी अन्य राज्य में ट्रांसफर की मांग की। उन्होंने नागालैंड को छोड़कर किसी भी राज्य को स्वीकार्य बताया था।
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केंद्र ने माना था जान को खतरा
2006 में केंद्र सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों से रिपोर्ट मंगाई थी, जिसमें यह माना गया कि मीणा को मणिपुर में खतरा है, लेकिन यह भी कहा गया कि ऐसे सामान्य खतरों को आधार बनाकर कैडर ट्रांसफर की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके बावजूद, 2010 में उन्हें तीन साल के लिए मध्य प्रदेश कैडर में प्रतिनियुक्त किया गया। यह प्रतिनियुक्ति 2013 में समाप्त हो गई, लेकिन मीणा CAT (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल) और हाईकोर्ट के विभिन्न आदेशों के सहारे मध्यप्रदेश में बने रहे।
तीन बार कैट और HC में चुनौती
मीणा ने 2013, 2015 और 2019 में CAT में आवेदन देकर मणिपुर में लौटने से बचने की कोशिश की। हर बार CAT ने केंद्र को उनके मामले पर पुनर्विचार का निर्देश दिया, लेकिन स्थायी ट्रांसफर कभी नहीं हुआ। आखिरकार, केंद्र सरकार ने जुलाई 2020 को स्पष्ट रूप से उनके ट्रांसफर अनुरोध को खारिज कर दिया। इस आदेश को भी मीणा ने CAT में चुनौती दी, जिसे 2021 में खारिज कर दिया गया। इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
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कोर्ट ने कहा अब नहीं कोई खतरा
कोर्ट ने 2020 की IB रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मणिपुर में अब न तो एनएससीएन-आईएम जैसे संगठनों का प्रभाव है और न ही कोई विशेष इनपुट है जो मीणा या उनके परिवार को जान का खतरा दर्शाता हो। न्यायालय ने कहा कि सिर्फ खतरे की 'धारणा' के आधार पर ट्रांसफर की अनुमति नहीं दी जा सकती, वरना ऐसे मामलों की बाढ़ आ जाएगी।
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बिना अनुमति चार साल मप्र में रहे: HC
कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि 2021 में CAT द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद भी मीणा चार साल से बिना किसी कानूनी या प्रशासनिक आदेश के मध्य प्रदेश में जमे हुए हैं। उन्हें न तो निलंबित किया गया और न ही अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई, जो यह दर्शाता है कि केंद्र सरकार में उनके "ऊंचे संपर्क" हैं। यह स्थिति प्रशासनिक अराजकता को जन्म देती है।
दूसरे ट्रांसफर का हवाला भी खारिज
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी दलील दी गई थी कि एक जूनियर अधिकारी को जान के कम खतरे के बावजूद ट्रांसफर की अनुमति मिली थी। कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि हर मामले के अलग तथ्यों को देखा जाता है और तुलना करना न्यायसंगत नहीं है।
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केंद्र सरकार का फैसला सही
हाला कि मामले की सुनवाई तो 25 जून 2025 को हो चुकी थी लेकिन इसका आदेश कोर्ट के द्वारा अपलोड नहीं किया गया था, अब अपलोड हुए आदेश के अनुसार कोर्ट ने साफ किया कि यह केंद्र सरकार का प्रशासनिक विवेक है कि वह किस अधिकारी को किस राज्य में नियुक्त करे।
याचिकाकर्ता को किसी भी प्रकार की स्थगन या अंतरिम राहत नहीं मिली है, और इस आधार पर हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया। अब IAS मीणा को मणिपुर वापस लौटना होगा।
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