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Photograph: (The Sootr)
Indore. ब्राह्मण पर विवादित बयान देने वाले IAS संतोष वर्मा के पुराने केस में उन्हें बरी करने वाले जज विजेंद्र सिंह रावत बुरी तरह फंस गए हैं। इस मामले में उनकी अग्रिम जमानत याचिका जिला कोर्ट में लगी थी। इस पर शासन पक्ष और फरियादी पक्ष में जोरदार बहस हुई। लेकिन, इस दौरान पुलिस अनुसंधान की बातें कोर्ट में सामने आई। इसमें साफ हुआ कि वर्मा और जज रावत के बीच करीबी संबंध रहे और दोनों की मिलीभगत थी। सुनवाई कर रहे जज ने आदेश सुरक्षित रख लिया है, जो शुक्रवार को सुनाया जा सकता है।
114 बार हुई दोनों के बीच बात
शासकीय लोक अभियोजक अभिजीत सिंह राठौर ने न्यायाधीश रावत की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज करने की मांग करते हुए जोरदार तर्क रखे। इसमें उन्होंने पुलिस अनुसंधान में सामने आई बातें कोर्ट को बताई, जो चौंकाने वाली रही। इसमें बताया कि रावत और आईएएस संतोष वर्मा के बीच में एक-दो बार नहीं बल्कि 114 बार मोबाइल पर बात हुई है। दोनों के कई बार मोबाइल की टावर लोकेशन समान रही है। कई बार माचल में भी दोनों की एक लोकेशन रही है। यानी दोनों कई बार एक साथ रहे हैं।
आदेश सुबह 4 से 7 बजे के बीच हुआ टाइप
अधिवक्ता व पूर्व न्यायाधीश विष्णु सोनी ने रावत का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि कोर्ट में 6 अक्टूबर जज का आदेश टाइप होना बताया गया, उस दिन वह छुट्टी पर थे। यह आदेश फर्जी है और उनकी कोर्ट से पास नहीं हुआ है। वहीं लोक अभियोजक राठौर ने इसका विरोध किया। उन्होंने बताया कि पुलिस जांच के आधार पर यह आदेश सुबह 4 से 7 के बीच में कोर्ट के कम्प्यूटर में टाइप हुआ है। इसके बाद रावत छुट्टी पर गए थे। इस आदेश की कॉपी भी डीपीसी में आईएएस संतोष वर्मा ने लगाई थी। इसके आधार पर उनकी पदोन्नति हुई और वह आईएएस बने।
न्यायाधीश रावत के खिलाफ जांच की मिली है मंजूरी
रावत हाल ही में करीब 20 दिन पहले निलंबित हुए हैं। उधर इस केस में पुलिस को हाईकोर्ट ने आगे जांच करने और कोर्ट से दस्ताेज लेने, पूछताछ करने की मंजूरी दी है। इसी मंजूरी के बाद अब अब रावत ने जिला कोर्ट में अग्रिम जमानत का आवेदन लगाया है। जबकि वह खुद केस में पहले फरियादी रहे हैं। पुलिस वर्मा के कोर्ट केस से बरी होने वाले आदेश की सच्चाई पता करने के लिए जांच कर रही है।
मोबाइल नहीं दे रहे हैं रावत
बताया जा रहा है कि पुलिस ने इस मामले में न्यायाधीश रावत से कई जानकारियां और मोबाइल मांगा है। लेकिन उन्होंने पुलिस को बताया कि मोबाइल टूट गया है। बताया जा रहा है कि पुलिस इस मामले में कोर्ट के कम्प्यूटर से आर्डर की कापी ले चुकी है और कुछ अन्य दस्तावेज भी ले चुकी है। इसके बाद ही मामला उलझ गया है।
वर्मा के लिए जरूरी था बरी होने का आदेश
यह आदेश वर्मा के लिए बहुत जरूरी था, बिना बरी आदेश के वह आईएएस नहीं बन सकते थे। इसलिए पदोन्नति डीपीसी के पहले यह आदेश लेना उनकी प्राथमिकता थी। बताया जाता है कि इसी के चलते यह आदेश बना और इसे डीसीपी के समय दिया गया, इसके बाद ही उन्हें आईएएस अवार्ड हो सका।
वर्मा पर युवती ने आरोप लगाए थे
प्रशासनिक अधिकारी संतोष वर्मा पर एक युवती ने आरोप लगाए थे। इस केस के चलते उनके पदोन्नत होकर आईएएस बनने की राह में रोड़ा आ गया था। आरोप है कि इस मामले में बरी होने का फर्जी आदेश पारित कराया था।
जज रावत ने थाने में यह कराई थी शिकायत
- एमजी रोड थाने में 27 जून 2021 को यह फर्जी कोर्ट आदेश बनाने का केस दर्ज हुआ था। इसमें अज्ञात आरोपी पर आईपीसी धारा 120बी, 420, 467, 468, 471 व 472 में केस हुआ था। अपराध होने का समय 6 अक्टूबर 2020 बताया गया। थाने में न्यायाधीश विजेंद्रसिंह रावत द्वारा केस दर्ज कराने के लिए आवेदन दिया था।
- आवेदन में न्यायाधीश रावत ने कहा कि- लसूडिया थाने में संतोष वर्मा पर दर्ज एफआईआर क्रमांक 851/2016 (धारा 323, 294 व 506) का फौजदारी केस 1621/2019 चल रहा है।
- यह केस अन्य कोर्ट से ट्रांसफर होकर मेरी (न्यायाधीश रावत) कोर्ट में 3 अक्टूबर 2020 को चढ़ाया गया। सुनवाई के लिए 23 नवंबर 2020 लगाई गई। फिर इसमें साक्ष्य के लिए 22 फरवरी 2021 तारीख लगाई गई। फिर अगली तारीख 31 मई 2021 लगी।
- इस मामले में मेरी कोर्ट द्वारा 6 अक्टूबर 2020 को कोई आदेश पारित नहीं किया गया। कोर्ट की डायरी व सीआईएस में इस दिन का कोई रिकॉर्ड नहीं है। ना ही इस दिन मेरे हस्ताक्षर से कोई निर्णय हुआ। मेरी पत्नी बीमार है इसलिए इस दिन 6 अक्टूबर को मैं अवकाश पर था।
- जिला अभियोजन अधिकारी अकरम शेख द्वारा मौखिक तौर पर मेरी कोर्ट में आकर यह बताया गया कि इस केस में समझौता हो गया है इस आधार पर निर्णय हुआ है और इसकी स्कैन कापी है। इसमें भी इस निर्णय की तारीख 6 अक्टूबर लिखी हुई थी। सील मेरी कोर्ट की लगी थी और हस्ताक्षर अंग्रेजी में अपठनीय थे। लेकिन इस दिनांक को मेरे द्वारा कोई आदेश नहीं किए गए। यह फैसला कॉपी कूटरचित तैयार की गई है।
वर्मा पर महिला ने क्या लगाए हैं आरोप
संतोष वर्मा पिता रूमाल सिंह वर्मा पर एक महिला द्वारा लसूडिया पुलिस थाना इंदौर में 18 नवंबर 2016 को आईपीसी धारा 493, 494स 495, 323, 294 व 506 धारा में केस दर्ज कराया गया। केस नंबर 851/2016 है। तब वर्मा उज्जैन में अपर कलेक्टर पद पर पदस्थ थे।
शिकायत में था कि साल 2010 से वह वर्मा को जानती है। मेल-जोल के दौरान वर्मा ने शादी का प्रस्ताव रखा। फिर दोनों ने चुपके से मंदिर रिद्दिनाथ, हण्डिया जिला धार में शादी कर ली। पूर्व में वह शादीशुदा थे और पत्नी की तरह चुपचाप रखा। शारीरिक संबंध बनाए। जैसे ही पूर्व शादीशुदा होने की बात चली और विरोध किया तो वर्मा ने मारपीट शुरू कर दी। बीते तीन सालों से इंदौर में एक टाउनशिप में उनके साथ रह रही है। बीच में गर्भवती हुई तो वर्मा ने दबाव डालकर दो बार अबॉर्शन कराया। बालाघाट में अपर कलेक्टर पद पर पदोन्नत हुएस फिर सीहोर एडीएम बने। इसके बाद राजगढ़ में सीईओ जिला पंचायत और इसके बाद उज्जैन अपर कलेक्टर हैं। मुझसे धोखाधड़ी करते हुए शादी की गई।
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