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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की कथित भेदभावपूर्ण नीतियों के खिलाफ देशभर में मंगलवार को कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिक और कर्मचारी पेन डाउन स्ट्राइक पर उतर आए। इसी क्रम में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर में भी वैज्ञानिकों ने कलम बंद हड़ताल कर विरोध दर्ज कराया।
कर्मचारियों ने ICAR पर आरोप लगाया कि समान कार्य करने के बावजूद गैर-ICAR KVKs के वैज्ञानिकों और कर्मचारियों को वेतन, प्रमोशन और सेवानिवृत्ति लाभों में भारी भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
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वन नेशन, वन केवीके की मांग
प्रदर्शनकारी वैज्ञानिकों की मुख्य मांग है कि परोड़ा उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के अनुरूप वन नेशन, वन केवीके नीति लागू की जाए। उनका कहना है कि 1974 से लेकर अब तक कृषि विज्ञान केंद्र किसानों के लिए एक मजबूत कड़ी साबित हुए हैं, लेकिन 91% KVKs जो ICAR के बजाय राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, राज्य सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों के अधीन कार्यरत हैं, वहां के कर्मचारियों को हाशिए पर रखा जा रहा है।
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समान काम, असमान वेतन बना बड़ा मुद्दा
कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि उन्हें वर्षों से समान कार्य, असमान वेतन की स्थिति झेलनी पड़ रही है। कई राज्यों में वेतन में 6 से 9 महीने तक की देरी आम बात है। पदोन्नति की नीति लागू नहीं होती और सेवानिवृत्ति लाभ जैसे पेंशन व ग्रेच्युटी से भी वंचित रखा जाता है। वहीं, ICAR के अधीन काम करने वाले KVKs में कार्यरत कर्मचारियों को ये सभी सुविधाएँ मिलती हैं।
JNKVV जबलपुर में दिखा आक्रोश
जबलपुर में हुई हड़ताल में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रश्मि शुक्ला ने स्पष्ट कहा कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी जातीं तो यह आंदोलन और व्यापक रूप लेगा। उन्होंने बताया कि हम किसानों के बीच काम करते हैं, नई तकनीकों को गाँव-गाँव पहुँचाते हैं और कृषि को मजबूत बनाने में लगातार योगदान देते हैं। लेकिन जब हमारे साथ ही भेदभाव होगा, तो मनोबल टूटना स्वाभाविक है।
रबी सीजन कार्यक्रम के बहिष्कार का ऐलान
देशभर में KVK कर्मचारियों के संगठन ने सर्वसम्मति से फैसला लिया है कि जब तक वेतन समानता और सेवा शर्तों का समाधान नहीं किया जाता, तब तक अक्टूबर में निर्धारित वीकेएसए (रबी) कार्यक्रम का बहिष्कार किया जाएगा। संगठन ने साफ कहा है कि अब केवल लिखित आदेश ही स्वीकार होंगे, मौखिक आश्वासन नहीं।
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किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर
कृषि विज्ञान केंद्र अब तक किसानों और सरकार के बीच तकनीकी सेतु का काम करते रहे हैं। नई तकनीक, नवाचार और प्रशिक्षण के जरिए ग्रामीण युवाओं और किसानों को सशक्त बनाने में इनकी बड़ी भूमिका रही है। ऐसे में कर्मचारियों की हड़ताल का असर किसानों तक भी पहुंचेगा।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह आंदोलन राष्ट्रविरोधी नहीं बल्कि न्याय की पुकार है, और यदि उनकी मांगें पूरी होती हैं तो इससे न सिर्फ वैज्ञानिकों का मनोबल बढ़ेगा बल्कि किसान समुदाय को भी और बेहतर सेवाएं मिलेंगी।