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अश्वत्थामा अमर हैं, इस बात की पुष्टि महामंडलेश्वर ईश्वरानंद उत्तम स्वामी ने की है। रविवार को इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने यह दावा किया। बता दें कि उत्तम स्वामी ने संघ प्रमुख मोहन भागवत और प्रदेश के कई मंत्रियों के सामने अश्वत्थामा से भेंट होने की बात कही है। उत्तम स्वामी के दावे के बाद एक बार फिर यह बहस शुरू हो गई है कि क्या अश्वत्थामा अमर हैं?
पुस्तक विमोचन में शामिल हुए थे उत्तम स्वामी
बता दें कि प्रदेश सरकार में मंत्री और मां नर्मदा के भक्त प्रहलाद पटेल की पुस्तक "परिक्रमा कृपासार" का विमोचन इंदौर में किया गया था। यह पुस्तक मां नर्मदा की परिक्रमा के दौरान प्रहलाद पटेल के अनुभवों पर आधारित है। इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत, महामंडलेश्वर ईश्वरानंद (उत्तम स्वामी), और मुख्यमंत्री मोहन यादव सहित कई मंत्री शामिल थे।
तभी अपने उद्बोधन के दौरान उत्तम स्वामी ने कहा- मुझे अश्वत्थामा के दर्शन हुए हैं। लोग कहते थे कि उनके शरीर में पस बहता है। यह होता है, वह होता है। माथे पर मणी निकली है। हाल ही में परिक्रमा के दौरान धड़गांव के पास खप्पर माल में मुझे उनके दर्शन हुए। बिल्कुल सफेद, 8 फीट की हाइट और उनके शरीर में कोई किसी प्रकार से कुछ गलत नहीं था। मैं रात ढाई से साढ़े तीन बजे तक रोज साधना में रहता हूं। तभी मेरे सामने आकर वे कहते हैं- 'मैं पंडित अश्वत्थामा हूं। यहां 5000 साल नर्मदा तट छोड़कर कहीं नहीं जाता हूं।
बहरहाल उत्तम स्वामी के इस दावे ने फिर यह चर्चा आम कर दी है कि अश्वत्थामा की अमरता का सच क्या है? चलिए पहले अश्वत्थामा के बारे में थोड़ा विस्तार से जान लेते हैं।
महाभारत की बात
बात महाभारत की है। युद्ध के अंतिम दिन, भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को एक शाप दिया। इस शाप के तहत, अश्वत्थामा को न केवल जीवनभर के लिए एक असहनीय पीड़ा भुगतने का शाप मिला, बल्कि वह भी अमर हो गए।
कौन थे अश्वत्थामा
अश्वत्थामा की कथा महाभारत में आती है। अश्वत्थामा महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। उनका नाम अश्वत्थामा उनके जन्म की घटना से जुड़ा हुआ है, जब वे घोड़े की तरह जोर से चिल्लाए थे (अश्वत्थामा का मतलब होता है घोड़े के जैसा)।
अश्वत्थामा को उनके पिताजी द्रौणाचार्य द्वारा ही युद्ध की शास्त्रों की शिक्षा दी गई थी। वे युद्ध में विशेष रूप से शक्तिशाली थे। महाभारत युद्ध में उनका योगदान और उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। वह कौरवों के प्रमुख सेनापतियों में से एक थे और उनकी वीरता और कुशलता के कारण, उन्होंने युद्ध के दौरान कई महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया था।
महाभारत के महत्वपूर्ण किरदार हैं अश्वत्थामा
महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने कई महत्वपूर्ण घटनाओं में भाग लिया। वह सबसे पहले युद्ध में अपनी वीरता का परिचय देते हैं, जब उन्होंने भीष्म पितामह के साथ मिलकर पांडवों की सेना पर आक्रमण किया। विशेषकर, युद्ध के अंतिम दिन, जब कौरवों की सेना टूटने वाली थी, अश्वत्थामा ने कई प्रकार की कुटिल चालें चलने का प्रयास किया।
अश्वत्थामा द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण कृत्य का उल्लेख महाभारत के अर्द्धकाव्य में मिलता है। वह एक रात पांडवों के शिविर में चुपके से घुसे और द्रौणाचार्य की मौत के बाद पांडवों के बेटे, पांडवों के पुत्रों को मारने की योजना बनाई। उन्होंने पांडवों के कुछ अनाथ बच्चों का वध किया, जिसे अश्वत्थामा की कुटिलता माना जाता है।
नर्मदा नदी के किनारे भटकते अश्वत्थामा की कहानी क्या है
अश्वत्थामा के बारे में एक प्रसिद्ध किंवदंती यह है कि वह महाभारत युद्ध के बाद अमर हो गए थे। युद्ध के अंतिम दिन, जब पांडवों ने उनका पीछा किया, भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें एक शाप दिया। इस शाप के तहत, अश्वत्थामा को न केवल जीवनभर के लिए एक असहनीय पीड़ा भुगतने का शाप मिला, बल्कि वह भी अमर हो गए। यह शाप उन्हें इस कारण से मिला क्योंकि उन्होंने अपने गुरु द्रौणाचार्य की मौत के बाद कुकृत्य किया था और पांडवों के छोटे बच्चों का वध किया था।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि तुम जीवनभर भटकते रहोगे, न किसी के साथ शांत रह सकोगे, और तुम्हारी पीड़ा कभी खत्म नहीं होगी। इस शाप के बाद, अश्वत्थामा अपनी अमरता और पीड़ा के साथ नर्मदा नदी के किनारे भटकते रहे। यह मान्यता है कि वे अब भी इस दुनिया में हैं और कभी भी नर्मदा के किनारे प्रकट हो सकते हैं।
भारत के कई स्थानों (विशेषकर असीरगढ़, ग्वारीघाट-जबलपुर, गुजरात के नर्मदा तट) पर अश्वत्थामा के देखे जाने की कथाएं प्रचलित हैं।
कई स्थानीय लोग एवं साधु बताते हैं कि नर्मदा किनारे एक लंबा-पतला पुरुष, जिसके माथे से खून बहता है, हल्दी-तेल मांगता हुआ अथवा चुपचाप घूमता दिखाई देता है।
पौराणिक विश्वास है कि अश्वत्थामा हर रोज दीप्त शिव मंदिर में गुप्त रूप से पूजा करते हैं, या भोर में फूल और गुलाल चढ़ाकर जाते हैं।
असंख्य श्रद्धालु, साधु, स्थानीय निवासी दावा करते हैं कि उन्होंने कभी नर्मदा तट, जबलपुर, असिरगढ़ या गुजरात में अश्वत्थामा का अनुभव किया है- और यह भी कि जिन्होंने देखा उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया।
कौन हैं महामंडलेश्वर ईश्वरानंद (उत्तम स्वामी)
महामंडलेश्वर ईश्वरानंद, जिन्हें श्री उत्तम स्वामी के नाम से भी जाना जाता है, पंच अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं।
ध्यान योगी के रूप में प्रसिद्ध, वे देश-विदेश में लाखों अनुयायियों के बीच अपने आध्यात्मिक चेहरे के लिए विख्यात हैं।
इन्हें राजस्थान के बांसवाड़ा के उत्तम सेवा धाम से संबंधित माना जाता है, वहीं इनके आश्रम हरिद्वार, इंदौर, मध्यप्रदेश के सलकनपुर, मंदसौर, उज्जैन, और महाराष्ट्र के लौहगांव में हैं।
महामंडलेश्वर बनने का इतिहास
2021 के हरिद्वार महाकुंभ में उन्हें पंच अग्नि अखाड़े का महामंडलेश्वर घोषित किया गया।
इस पदवी के बाद इन्हें "महामंडलेश्वर ईश्वरानंद" के नाम से जाना जाने लगा। समारोह में अखाड़ा परिषद के कई प्रमुख संत-महंत, आचार्य, और गुरुभक्त उपस्थित थे, जिन्होंने उन्हें माला पहनाकर और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
आध्यात्मिक और सामाजिक कार्य
उत्तम स्वामी महाराज ध्यानयोगी के रूप में विख्यात हैं, जिनके वचनों और प्रवचन से कई लोक प्रभावित हुए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी स्वामी जी के प्रति आस्था रखते हैं।
उनका ध्यान सत्संग, साधना, योग और सेवा के द्वारा समाज में आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने पर रहता है।
वे धार्मिक कथाएं, भजन-कीर्तन और भागवत कथा के प्रचार-प्रसार में सक्रिय हैं।