मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 11 साल से बीआरटीएस को लेकर चल रही खींचतानी को एक झटके में खत्म कर दिया। सीएम की घोषणा के बाद इंदौर के अहम मुद्दों पर चुप्पी साधने वाले नेता भी इसका समर्थन कर रहे हैं। नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय शुरू से ही इसके खिलाफ थे, उन्होंने इस फैसले का स्वागत किया। वहीं विधायक गोलू शुक्ला ( जिनके पुत्र रूद्र शुक्ला तो हूटर वाली कार इस कॉरिडोर में नियम तोड़कर चलाते हुए भौकाल मचा चुके ) इसे लेकर विज्ञापन दे रहे हैं और सीएम को धन्यवाद दे रहे हैं। महापौर पुष्यमित्र भार्गव जो एआईसीटीएसएल ( बस संचालन करने वाली कंपनी ) के प्रमुख हैं, वह भी स्वागत कर रहे हैं। वहीं, आश्चर्यजनक बात यह है कि 23 सितंबर को मप्र शासन की ओर से लगाई याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बीआरटीएस के जमकर गुणगान किए गए हैं।
सरकार ने BRTS को लेकर HC में ये कहा
बीआरटीएस को लेकर समाजसेवी किशोर कोडवानी द्वारा 2013 व 2015 में लगी दो याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। इसी पर 23 सितंबर 2024 को इस मामले में हाईकोर्ट इंदौर ने पांच सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी बनाने की बात कही। इस फैसले में नगर निगम द्वारा रखे गए पक्ष को भी ऑन रिकार्ड लिया गया है। इसमें निगम ने कहा है कि बीआरटीएस का यह पायलट प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक चल रहा है और आम जनता के बीच लोकप्रिय हो रहा है। कई मौकों पर बीआरटीएस का इस्तेमाल ग्रीन कॉरिडोर के तौर पर किया गया है। इंदौर नगर निगम बीआरटीएस की लंबाई बढ़ाने के बारे में सोच रहा है और भारत सरकार से कई आई बसों की मांग कर रहा है।
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हाईकोर्ट ने पांच सदस्यीय कमेटी बनाई
उधर इस मामले में 23 सितंबर को हुई हाईकोर्ट ने अहम बातें कही- दस साल पहले 2013 में बीआरटीएस की उपयोगिता व व्यावहारिकता को लेकर सक्सेना कमेटी बनी, जिसमें बीआरटीएस को उपयुक्त पाया गया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दस साल के बाद काफी कुछ बदला है, एबी रोड की चौड़ाई बढ़ी, फ्लायओवर बन रहे हैं, वाहनों की संख्या बढ़ी, बीआरटीएस भी चौड़ा हुआ, मेट्रो पर भी काम चल रहा है। ऐसे में अब समय की जरूरत है कि फिर से पांच सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी गठित की जाए, जो नए परिदृश्य में इस पर अपनी रिपोर्ट देगी। यह रिपोर्ट पेश होना थी, लेकिन अब इसे केस को जबलपुर ट्रांसफर कर दिया गया है।
इधर वक्त की नजाकत समझ सीएम का यह फैसला
सीएम ने इंदौर एयरपोर्ट पर मीडिया से चर्चा में कहा कि भोपाल में हम बीआरटीएस हटा चुके हैं, इसके हटने से वहां यातायात में लोगों को बड़े पैमाने पर सुविधा मिली। यहां भी इंदौर की दृष्टि से भी लगातार शिकायतें मिल रही थी। जनप्रतिनिधियों ने बीती दो विकास संबंधी बैठकों में भी इसे लेकर बोला था। कोर्ट के सामने अब जो सरकार का पक्ष बन रहा है सभी का मिलकर कि जो भी तरीका लगेगा, वह हम यहां लगाकर इस हटाएंगे। कोर्ट में भी पक्ष रखेंगे। चौराहों पर ट्रैफिक समस्या आती है, वहां ब्रिज बनाकर समाधान खोजेंगे। जब ब्रिज बनाएंगे तब भी, कॉरिडोर तो हटाना ही होगा। कुल मिलाकर इससे यातायात सुगम हो, लोगों को कष्ट नहीं हो, यह हम सभी की जवाबदारी है। सभी की परेशानी को देखते हुए ही यह फैसला लिया है।
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इसलिए यह फैसला समय के साथ लग रहा उचित
बीआरटीएस पर पहले एलिवेटेड कॉरिडोर की बात थी। लेकिन फिजिबिलिटी सर्वे में इसकी उपयोगिता मात्र 3 फीसदी निकली। इसके बाद अब तय हुआ है कि पूरे कॉरिडोर पर अलग-अलग ब्रिज एलआईजी, इंडस्ट्री हाउस चौराहा, गिटार तिराहा, पलासिया चौराहा, गीताभवन चौराहा, जीपीओ पर बनाए जाएं। सत्यसांई और देवास नाके पर पहले ही बन रहे हैं। बाकी 6 जगहों के लिए सर्वे काम के लिए आईडीए ने एजेंसी तय कर दी है। इन्हीं चौराहों पर सबसे ज्यादा ट्रैफिक की समस्या आती है। यहां पर ब्रिज बनने के बाद वैसे ही बीआरटीएस कॉरिडोर एक तरह से खत्म जैसा ही होगा। क्योंकि आगे भंवरकुआं चौराहे पर करीब 700 मीटर का ब्रिज बन चुका है। यानी 11.45 किमी लंबे कॉरिडोर पर यह ब्रिज बनने पर करीब 4 किमी का हिस्सा तो ब्रिज में आ जाएगा, जहां पर ट्रैफिक तेज हो जाएगा। ऐसे में कॉरिडोर के अंदर जो एवरेज बस स्पीड 30 किमी प्रति घंटे और मिक्स लेन में 20 किमी की रफ्तार चलती है वह ब्रिज बनने के बाद ठीक हो सकेगी।
कॉरिडोर खत्म होगा लोकल ट्रांसपोर्ट नहीं
यह भी तय है कि कॉरिडोर भले ही खत्म होगा, लेकिन लोकल ट्रांसपोर्ट और बेहतर करने के लिए शासन, प्रशासन का ध्यान है। कलेक्टर आशीष सिंह ने कहा कि ब्रिज बनने के बाद कॉरिडोर वैसे ही कई जगह से हटाना होता। अब समय भविष्य की ओर देखने का है और सीएम के फैसले के अनुरूप ब्रिज को लेकर काम चल रहा है, लेकिन लोकल ट्रांसपोर्ट और बेहतर होगा, इसमें बसें भी बढ़ाने पर काम हो रहा है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने भी फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ब्रिज के बाद इसकी उपयोगिता नहीं थी, सीएम का अहम फैसला है, इस पर काम तेज करेंगे, याचिका भी कॉरिडोर हटाने को लेकर थी, तो इसमें किसी तरह की नीतिगत, कानूनी समस्या हाईकोर्ट में आते हुए दिखती नहीं है।
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सबसे अहम यदि 102 किमी का बनता तो बात अलग होती
कलेक्टर विवेक अग्रवाल के समय यह प्रोजेक्ट की संकल्पना हुई। चंद्रमौली शुक्ला कोलंबिया के बोगोटा गए और इसका प्लान तैयार हुआ। मेहता कंसलटेंट ने योजना बनाई। जेएनएनयूआरएम में यह मंजूर हुआ। लेकिन बीआरटीएस कॉरिडोर 102 किमी का था। जैसा कि अहमदाबाद में है। लेकिन पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर निरंजनपुर से राजीव चौक तक 11.45 किमी इसे लागू किया गया। इस पर ढाई सौ करोड़ से ज्यादा खर्च हुए। तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने इस पर सबसे ज्यादा फोकस किया और चालू कराया। सीईओ संदीप सोनी ने इस पर जमकर काम किया। नई-नई सुविधाएं दी गई, एसी बस चलीं। इसके बाद इसमें यात्रियों का सफर 80 हजार से एक लाख तक प्रतिदिन पहुंच गया। लेकिन इसके बाद भी यह कभी भी फुल प्रोजेक्ट की तरह 102 किमी का नहीं बना। महापौर भार्गव ने भी माना कि यदि यह पूरा बनता तो फिर बात अलग होती। इंदौर के प्रोजेक्ट को अहमदाबाद, सूरत के साथ सबसे सफल क़ॉरिडोर माना गया। प्रति किमी स्पीड, यात्री संख्या, प्रॉफिट इन सभी मामलों में इंदौर सबसे आगे रहा। लेकिन अब फ्लाईओवर ब्रिज के बाद इसके अस्तित्व को लेकर संशय था जो अब सीएम ने ही दूर कर दिया। भोपाल बीआरटीएस जहां जनवरी में ही हटाने का फैसला हुआ, इंदौर के लिए सीएम ने लंबा समय लिया। कई बार जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों से बात कही, क्योंकि इंदौर सफल मॉडल था, वहीं भोपाल फ्लॉप। चर्चा के बाद ही सीएम ने भविष्य को देखते हुए यह फैसला लिया है।
पीएम ने सीएम रहते गुजरात में बनवाया था
अहमदाबाद और सूरत में यह कॉरिडोर सफलता से चल रहा है। क्योंकि अहमदाबाद में यह सौ किमी से ज्यादा हिस्से में तो सूरत में 30 किमी से ज्यादा हिस्से में हैं। यह दोनों ही कॉरिडोर पीएम नरेंद्र मोदी ने गुजरात सीएम रहते हुए बनवाए थे और वह लोकल ट्रांसपोर्ट के लिए काफी अलर्ट रहे। वहां यह प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
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