इंदौर में बिल्डर एरन, देसाई के 100 करोड़ में उलझा उद्योग विभाग, मोहन सरकार अपील में नहीं गई तो उद्योग की जमीन पर हावी होंगे बिल्डर

इंदौर में अविकसित जमीन आवंटन में 90 करोड़ के खेल का उजागर करने के बाद सीएम डॉ. मोहन यादव ने 24 घंटे में सख्ती करते हुए आवंटन रद्द कर दिए थे। अब एक बार फिर मोहन सरकार को सख्ती दिखाने की जरूरत है।

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Sanjay gupta
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INDORE : इंदौर में अविकसित जमीन आवंटन में 90 करोड़ के खेल का उजागर करने के बाद सीएम डॉ. मोहन यादव ने 24 घंटे में सख्ती करते हुए आवंटन रद्द कर दिए थे। अब एक बार फिर मोहन सरकार को सख्ती दिखाने की जरूरत है। ऐसा नहीं होने पर उनकी लगातार रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव कर प्रदेश को उद्योग प्रदेश बनाने की मुहिम की पलीता लग जाएगा। द सूत्र इंदौर में 300 करोड़ के इस पूरे गेम प्लान का खुलासा कर रहा है, जिसमें सरकार बिल्डर के वकीलों के आगे हाईकोर्ट में हार चुकी है और इसका असर पूरे उद्योग विभाग में होने वाला है।

मामला जुड़ा है ईश्वर एलाय की 300 करोड़ की जमीन का

यह मामला ईश्वर एलाय स्टील लिमिटेड की सांवेर रोड इंडस्ट्रियल सेक्टर डी में मौजूद जमीन का। यह 35 एकड जमीन प्लाट नंबर 4 ,5, 6, 7 ए और 7 बी व लगी हुई अतिरिक्त जमीन का। जो 1.50 लाख वर्गमीटर है। यह जमीन कंपनी के मालिक एसएस बब्बर को 1969, 1978, 1975 औऱ् 1986 में अलग-अलग समय में उद्योग विभाग से आवंटित हुई थी। वह भी 99 साल की लीज पर। बाद में कंपनी देनदारियों मे फंस गई और करीब 12 साल पहले बंद हो गई।

केस डीआरटी में गया, एरन ग्रुप पिक्चर में आया

बैंकों की वसूली के लिए मामला डीआरटी में गया, एक बार नीलामी हुई और कंपनी की सारी मशीनरी बिक गई। इसके बाद जमीन के लीज राइट्स बिक्री की नीलामी हुई। आईसीआईसीआई बैंक ने डीआरटी में केस लगाया और वसूली के लिए डीआरटी ने नीलामी कर दी। यह जमीन मेसर्स एरन डेवलपर्स ने जिसमें मुख्य तौर पर बिल्डर अशोक एरन है। साथ में सहयोगी बिल्डर पराग देसाई है।  उन्होंने इसे जनवरी 2023 में 75.74 करोड़ में नीलामी में खरीदा। इसमें लीज राइट्स ट्रांसपर व अन्य देयताओं के तौर पर 20 करोड़ से ज्यादा की राशि बकाया थी वह भी भर दी। इस तरह करीब 100 करोड़ रुपए ग्रुप ने खर्च किए। लीज राइट्स एरन डेवलपर्स के नाम ट्रांसफर हो गए।

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अब एरन ग्रुप ने मांगी यहां पर प्लॉट काटने की मंजूरी

इसके बाद एरन ग्रुप ने डीआईसी (महाप्रबंधक जिला उद्योग इंदौर) से यहां पर प्लॉट काटने की मंजूरी मांगी, ताकि इसे अन्य उद्योगों को बेच सके। लेकिन उद्योग विभाग ने उन्हें मूल आवंटी (जिसे जमीन उद्योग विभाग से मूल रूप से दी गई थी) मानने से इंकार करते हुए भूमि भवन आवंटन व प्रबंधन नियम 2021 का हवाला देते हुए प्लाट काटने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया और 15 मई 2024 को इसके लिए एरन ग्रुप को पत्र दे दिया।

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यह था एरन ग्रुप का प्रोजेक्ट

एरन ग्रुप यहां पर 5000 वर्गफीट और इससे बड़े प्लॉट काटकर इंडस्ट्री को ट्रांसफर (यहां कहें बेचना) करना चाहता था। यह जमीन एमआर 4 पर है और दोनों ओर रोड है, यहां आज 3 से 5 हजार रुपए वर्गफीट के भाव जमीन है। यहां रोड व अन्य विकास के बाद करीब 10 लाख वर्गफीट माल बिक्री के लिए निकलता, यानी इसकी कीमत होती 300 करोड़ रुपए। अनौपचारिक तौर पर मौखिक तौर पर कुछ लोगों के सौदे भी तय होने लगे।

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मंजूरी नहीं मिली तो एरन ग्रुप गया हाईकोर्ट, वहां यह हुआ

एरन ग्रुप ने मंजूरी नहीं मिलने पर हाईकोर्ट इंदौर डबल बैंच में केस लगाया और कहा कि  वह मूल आवंटी है और जमीन पर प्लाट काटने की मंजूरी दी जाए। इस पर डीआईसी की ओर से शासकीय अधिवक्ताओं द्वारा मजबूती से पक्ष नहीं रखा गया, इसके बाद हाईकोर्ट ने 30 दिन के भीतर ग्रुप के आवेदन पर फैसला करने के आदेश दिए, डीआईसी द्वारा प्लाट काटने की मंजूरी खारिज करने के 15 मई 2024 के पत्र को निरस्त किया और साथ ही प्लाट काटने की मंजूरी दी।

यह है उद्योग विभाग की एक्जिट पॉलिसी का नियम

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मप्र के भू आवंटन नियम 2021 में संशोधन कर एक एक्जिट पॉलिसी लाई गई, जिसमें नियम 19(बी) पैरा में साफ है कि- बंद औद्योगिक इकाई जो कम से कम पांच साल तक उत्पादन में रही और कम से कम दो साल से बंद हो, वह आवंटित भूखंड के समुचित उपयोग के लिए व नए उद्योग स्थापना के लिए भूखंड का विभाजन कर हस्तांतरण हेतु पात्र होंगे, इसकी मंजूरी दी जाएगी। इसमें एक बात बिल्कुल साफ है कि यदि किसी ईकाई को मूल ईकाई के परिसमापन, न्यायालय (लिक्वीडेशन) द्वारा नीलामी या बैंक या ट्रिब्यूनल द्वारा नीलामी से भूमि ट्रांसफर होती है तो कम से कम पांच साल तक उत्पादन में रहना होगा और कम से कम दो साल से बंद रहना आवश्यक होगा।

इस नियम के मायने एरन ग्रुप के लिए क्या है?

इस नियम के मायने साफ है कि एरन ग्रुप ने डीआरटी नीलामी से 2023 में जमीन खरीदी। लेकिन उन्होंने कोई उद्योग चलाया ही नहीं, उनका कहना है कि मुझे लीज ट्रांसफर 99 साल की नहीं हुई बल्कि ईश्वर एलाय की बाकी समयावधि के लिए मिली है तो वह मूल आवंटी है और उन्हें पांच साल उद्योग चलाने की जरूरत नहीं है। डीआईसी हाईकोर्ट में यह पक्ष मजबूती से रख ही नहीं पाई कि यदि नीलामी से भी खरीदी है तो भी पांच साल उद्योग चलाना जरूरी है और फिर दो साल इसका किसी कारण से बंद होना जरूरी है, यानि नीलामी में खरीदी के सात साल तक वह यहां प्लाट काटकर बिक्री नहीं कर सकता है।

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क्या होगा मप्र के उद्योग पर असर

इस पूरे मसले का उद्योग विभाग में बहुत असर होगा। मप्र में कई उद्योगों के पास हजारों करोड़ की जमीन पड़ी हुई है जो नीलामी प्रक्रिया में है और अन्य बिल्डर ग्रुप व अन्य बडे लोग खरीद रहे हैं। वह बिना उद्योग चलाए ही खुद को मूल आवंटी घोषित कराएंगे और इसके आधार पर वहां भी प्लाट काटकर जमकर मुनाफा कमाएंगे। उद्योग विभाग की जमीन बिल्डर के लिए एक बड़ा सेक्टर जमीन के खेल का खुल जाएगा।

मोहन सरकार के पास क्या है रास्ता

मोहन सरकार उद्योगों को लेकर बेहद सख्त है और लगातार खुद सीएम ड़ॉ. मोहन यादव देश भर में दौरा कर निवेशकों को ला रहे हैं। ऐसे में इस खेल को रोकने के लिए जरूरी है कि इस आदेश के खिलाफ तत्काल अपील में जाएं और स्टे हासिल करें। नहीं तो उद्योग विभाग की जमीन बिल्डरों के लिए चारागाह बन जाएगी।

ईश्वर एलॉय का आवेदन ठंडे बस्ते में

इसमें सबसे बड़े मजे की बात यह है कि खुद ईश्वर एलॉय कंपनी के जीएस चन्नी ने भी उद्योग विभाग पर अप्रोच की थी। आवेदन किया था की नई एक्जिट पॉलिसी के तहत उन्हें प्लाटिंग करने की मंजूरी दी जाए ताकि वह देनदारी से मुक्त हो सके और इंडस्ट्री फिर से शुरू कर सकें, लेकिन उद्योग विभाग ने उनके इस आवेदन को पर कोई प्रक्रिया ही नहीं की और इधर जमीन बिल्डर को बिक गई।

( द सूत्र मप्र के एक बड़े उद्योगपति द्वारा हो रहे इससे भी बड़ी जमीन को लेकर जल्द खुलासा करेगा, वहां भी इसी तरह के खेल की तैयारी हो रही है)

sanjay gupta

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