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Photograph: (the sootr)
INDORE. इंदौर के सीएचएल अस्पताल के चेयरमैन डॉ. राजेश भार्गव के साथ ही सबसे ज्यादा बायपास सर्जरी करने वाले जाने-माने चीफ कार्डियक सर्जन डॉक्टर मनीष पोरवाल, डॉक्टर पियूष गुप्ता और डॉक्टर अरूण चोपड़ा के खिलाफ जिला कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या की धारा 304 ए के तहत केस संज्ञान में लिया है। कोर्ट ने इन सभी को 5000-5000 रुपए जमानती वारंट के साथ बुलाया है। सभी को 18 अगस्त की सुनवाई में पेश होना होगा। अब इस मामले में एक और खुलासा हुआ है कि इस मामले में फरियादी ने नेशनल मेडिकल कमीशन के एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड में भी केस दायर किया था, लेकिन बोर्ड ने इन सभी को बरी कर दिया था।
एथिक्स बोर्ड ने बायपास सर्जरी और मरीज की मौत में यह पाया
- एंजियोग्राफिक निष्कर्षों से पता चला कि मायोकार्डियम के बड़े क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जिसके कारण हृदय की कार्यक्षमता में कमी आई। पांडुरंग महाजन को यूरो स्कोर के अनुसार कोरोनरी धमनी बाईपास सर्जरी की आवश्यकता थी उन्हें उच्च जोखिम श्रेणी में रखा गया।
- अस्पताल की प्रगति शीट के अनुसार, श्री पांडुरंग महाजन इनोट्रोपिक सपोर्ट पर थे और आईसीयू में शिफ्ट होने के बाद रात 9.30 बजे उनका रक्तचाप कम होने लगा। रात 11 बजे रक्तचाप और बिगड़ गया और IABP की सलाह दी गई। IABP स्थापित नहीं किया गया, क्योंकि इससे कोई लाभ नहीं होता।
- मृतक की तत्कालीन शारीरिक प्रतिक्रिया और स्थिति के कारण, मरीज की हालत धीरे-धीरे बिगड़ती गई और 01.02.2019 को सुबह 01.40 बजे उसकी मृत्यु हो गई। 73 वर्ष की आयु, लंबे समय से मधुमेह की स्थिति व अन्य रिपोर्ट देखते हुए यह एक उच्च जोखिम वाला मामला था। सर्जरी से लगभग 15 दिन पहले एंजियोग्राफी की गई थी जो स्वीकार्य है और सीएबीजी की सलाह दी गई।
- रिकॉर्ड के अनुसार सर्जरी के बाद मरीज कार्डियोजेनिक शॉक में चला गया और उसे हाई इनोट्रोप्स और वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। 01.02.2019 को दोपहर 1.40 बजे उसे पुनर्जीवन उपायों के बावजूद मृत घोषित कर दिया गया।
- CABG (coronary artery bypass grafting ) हमेशा एक टीम के रूप में किया जाता है, न कि व्यक्तिगत डॉक्टर द्वारा। टीम के सदस्य द्वारा पोस्ट-ऑपरेटिव नोट्स लिखना सामान्य बात है। इन नोट्स में स्पष्ट रूप से डॉक्टर का नाम लिखा होता है। इलाज उच्च शिक्षित फिजिशयन द्वारा ही सफलतापूर्वक किया गया।
एथिक्स बोर्ड ने यह दिया था बचाने वाला फैसला
मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, सभी अभिलेखों और विशेषज्ञों की राय के अवलोकन के बाद, नैतिकता और चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड (ईएमआरबी) के निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:
- ऑपरेशन करने वाले सर्जन का नाम डॉ मनीष पोरवाल है। इसलिए यह स्पष्ट है कि सर्जरी डॉ मनीष पोरवाल ने ही की।
- डॉ. अरुण चोपड़ा आईसीयू में ड्यूटी पर थे। वे एमबीबीएस डॉक्टर हैं। एमबीबीएस योग्यता वाले डॉक्टर का अस्पताल में कहीं भी विशेषज्ञों के निर्देशों का पालन करना न केवल नियमित बल्कि उचित और स्वीकार्य है। उन्हें ऐसे सेटअप में काम करने का अनुभव था। एनेस्थेटिस्ट मरीज के साथ रिकवरी रूम में मौजूद थे, जो फिर से मरीज की देखभाल करने के लिए योग्य व्यक्ति हैं।
- मामले में मानक प्रोटोकॉल के अनुसार प्री-एनेस्थीसिया चेक अप (पीएसी) किया गया।
- इस प्रकार, एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड ने डॉ. मनीष पोरवाल, डॉ. पीयूष गुप्ता और डॉ. अरुण चोपड़ा को उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से मुक्त करने का फैसला किया है।
- राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 की धारा 30(4) के अनुसार, प्रार्थी बोर्ड के निर्णय से व्यथित है, वह ऐसे निर्णय की सूचना मिलने के 60 दिनों के भीतर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग में अपील कर सकता है।
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इसके बाद जिला कोर्ट में गया मामला
इसके बाद प्रार्थी किरण कुमार महाजन पिता पांडुरंग महाजन नवासी शिवशक्ति नगर इंदौर एमआईजी थाना इंदौर द्वारा यह केस इन सभी के खिलाफ जिला कोर्ट में लगाया गया। इसमें आरोप है कि प्रार्थी के पिता पांडुरंग को 21 जनवरी 2019 को बायपास सर्जरी के लिए सीएचएल में चीफ कार्डियक सर्जन डॉ. पोरवाल से हार्ट सर्जरी के लिए भर्ती कराया गया था। लेकिन उनकी घोर लापरवाही, उतावलेपन के कारण उनकी मौत हो गई।
डॉ. पोरवाल की जगह दूसरों ने कर दी सर्जरी
कोर्ट केस में बताया गया कि इन सभी पर आईपीसी की धारा 304 (ए)के तहत मेडिकल नेगलीजेंस किए जाने के कारण पिता पांडुरंग की 1 फरवरी 2019 को मौत हे गई। इसमें दस्तावेजों से पाया गया कि सर्जरी डॉ. पोरवाल से कराने के लिए सहमति दी गई थीष लेकिन चेकलिस्ट दस्तावेजों में डॉ. पीयूष गुप्ता का नाम है। आपरेशन नोटशीट में भी गुप्ता के ही हस्ताक्षर है। जबकि इनसे सर्जरी के लिए सहमति दी ही नहीं गई थी।
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डॉ. पोरवाल ने बैलून लगाने का कहा, लेकिन नहीं लगा
यह भी कहा गया कि डॉ. पोरवाल ने मरीज को इंट्रा एअटिक बैलून लगाने के लिए कहा गया, लेकिन वास्तवकिता में वह मरीज को लगाया ही नहीं गया। जिस दिन प्रार्थी के पिता की मृत्य हुई उस दिन डॉ. अरूण चोपड़ा द्वारा सीपीआर दिया गया जबकि इसके लिए वह योग्य ही नहीं थे। सभी दस्तावेजों के बाद कोर्ट ने कहा कि चेयरमेन डॉ. राजेश भार्गव, चीफ कार्डियक सर्जन मनीष पोरवाल, पियूष गुप्ता और अरूण चोपड़ा पर धारा 304 ए का केस संज्ञान में लिया जाता है और इन सभी के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर 18 अगस्त को उपस्थित होने के निर्देश दिए जाते हैं। mp news hindi
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