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Photograph: (the sootr)
बीना की कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे अब कांग्रेस की है या बीजेपी की, यह किसी को पता नहीं है। यही हाल इंदौर में भी हुआ है। यहां के तीन पार्षद जो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर जीते, लेकिन बाद में बीजेपी में चले गए। लेकिन आज तक उन पर दल-बदल नियम लगाकर पार्षदी नहीं ली गई। इस मामले में अप्रैल 2024 से कांग्रेस की शिकायत राजभवन और मप्र शासन के पास लंबित है। अब इस अहम मसले में हाईकोर्ट ने आदेश दिया है।
यह लगी है याचिका, यह है तीन पार्षद
इंदौर नगर निगम के तीन पार्षद शिवम यादव (वार्ड क्रमांक 17), ममता सुभाष सुनेर (वार्ड क्रमांक 15) व विनीता धर्मेंद्र मौर्य (वार्ड क्रमांक 23) द्वारा इंदौर नगर निगम वर्ष-2022 का चुनाव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार बनकर लड़ा गया था व जीता भी था। चुनाव जीतने के पश्चात तीनों पार्षदों ने बीजेपी सदस्यता ले ली गई थी। इन्हें मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव तथा मंत्री कैलाश विजयवर्गी की उपस्थिति में बीजेपी की सदस्यता सार्वजनिक कार्यक्रम में दिलवाई गई थी।
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इन्होंने लगाई याचिका यह की मांग
कांग्रेस की पार्षद (वार्ड क्रमांक 45) व महिला कांग्रेस की इंदौर जिला अध्यक्ष सोनिला मिमरोट द्वारा 20 मई 2024 को अभिव्यावेदन प्रस्तुत कर यह मांग की गई थी के उक्त तीनों पार्षद दल-बदल करने के कारण मध्यप्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1956 की धारा 17 (2) के तहत पार्षद रहने हेतु अयोग्य हो चुके हैं। इसीलिए उन्हें धारा 17 (3) के तहत अयोग्य घोषित कर फिर चुनाव कराए जाएं।
लेकिन सरकार ने फैसला नहीं लिया, हाईकोर्ट गए
उक्त अभ्यावेदन पर राज्य शासन द्वारा कार्रवाई नहीं की गई। इस पर सोनिला मिमरोट द्वारा अधिवक्ता जयेश गुरनानी के माध्यम से माननीय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय खंडपीठ इंदौर के समक्ष याचिका प्रस्तुत की गई थी। माननीय न्यायालय द्वारा उक्त पर फैसला दिया गया है। इसमें शासन को यह आदेशित किया है कि वह याचिकाकर्ता द्वारा दो माह के भीतर सभी पक्षों को सुनवाई का अवसर प्रदान कर निर्णय लें।
अधिवक्ता जयेश गुरनानी ने बताया कि पार्षदों की पार्षदी कानूनी तौर पर बची ही नहीं है। यह कांग्रेस के होकर बीजेपी के सभी प्रस्ताव, फैसलों में शामिल हैं। इन्हें कायदे से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ना चाहिए। हाईकोर्ट जस्टिस प्रणय वर्मा ने फैसले में लिखा है कि क्योंकि याचिकाकर्ता का आवेदन शासन के पास लंबित है, ऐसे में आवेदन लंबित रहते हुए याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है। शासन इस आदेश की कॉपी प्राप्त होने की तिथि से दो माह के भीतर सभी पक्षों को सुनवाई का उचित अवसर देकर कानून के अनुसार निर्णय लेने का आदेश दिया जाता है।
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निर्मला सप्रे का भी इसी तरह का मामला
बीना विधायक निर्मला सप्रे का भी यही मामला है वह कांग्रेस से विधायक है लेकिन कांग्रेस से मोह भंग हो चुका है और अब बीजेपी की है। लेकिन उनका ना इस्तीफा हुआ और ना ही विधायकी गई। इसी को लेकर कांग्रेस ने स्पीकर को पत्र लिखा था लेकिन फैसला नहीं हुआ। इसके बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने याचिका दायर की। इस पर भी हाईकोर्ट इंदौर में सुनवाई पूरी हो चुकी है और आदेश रिजर्व है।
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