राजा के मर्डर में छिपे हैं कई राज, क्या सोनम रघुवंशी अपने पापा से नहीं कह पाई थी मन की बात?

राजा रघुवंशी की हत्या के बाद जो सबसे चौंकाने वाली बात सामने आई, वह है सोनम की असहजता। शादी के बाद उसके व्यवहार में वो सहजता नहीं थी, जो एक नवविवाहिता में होती है।

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Sourabh Bhatnagar
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इंदौर के राजा रघुवंशी हत्याकांड ने क्या इंदौर, क्या मध्यप्रदेश और क्या देश... हर किसी को झकझोर दिया है। हर जगह सिर्फ इसी केस की बात है। एक नई शादी, सुंदर जोड़ा और कुछ ही दिनों में ऐसी भयावह घटना...जिसने समाज और रिश्तों पर एक ​बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।

पुलिस की जांच में जितनी तहें खुल रही हैं, उससे ज्यादा परतें समाज के भीतर छिपे उस दबाव की हैं, जिसकी वजह से कई 'सोनम' आज भी अपने 'मन की बात' कहने से डरती हैं। सवाल सिर्फ हत्या का नहीं है। सवाल उस मानसिकता का है, जो आज भी बेटी को 'हां' कहने की इजाजत देती है, पर 'ना' कहने की ताकत और साहस नहीं। पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

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क्या वाकई सोनम इस शादी को नहीं चाहती थी?

राजा रघुवंशी की हत्या के बाद जो सबसे चौंकाने वाली बात सामने आई, वह है सोनम की असहजता। शादी के बाद उसके व्यवहार में वो सहजता नहीं थी, जो एक नवविवाहिता में होती है। परिवार वालों का कहना है कि वह राजा से बात तक ठीक से नहीं करती थी। सोनम को राजा में इंटरेस्ट नहीं था। इस बारे में जब 'द सूत्र' ने देश के सीनियर मनोचिकित्सक डॉ.सत्यकांत त्रिवेदी से बात की तो उन्होंने जो बताया, वह चिंता में डालने वाला है। 

वे कहते हैं, हमारा समाज अब भी पुरुष प्रधान ही है। सोनम (या उस जैसी लड़कियां) को अपने पिता से यह कहने की आजादी ही नहीं है कि इस लड़के से शादी नहीं करना है या मेरा कहीं प्रेम-प्रसंग है। सोनम जैसी बेटियां पिता से यह कहने का साहस नहीं जुटा पातीं कि वो जिससे शादी कर रही हैं, उससे प्यार नहीं करतीं या भविष्य में भी इसकी संभावना नहीं है। डॉ. त्रिवेदी का मानना है कि यह मामला सिर्फ हत्या का नहीं है, यह पैट्रियार्की और कम्युनिकेशन गैप का मिक्स मैच है। 

अपराधों में रिलेशनल थ्रिल क्यों बढ़ रहा है?

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डॉ. त्रिवेदी अब तक इस केस में सामने आए बयानों और घटनाक्रम का विश्लेषण करते हुए कहते हैं, आज का अपराध सिर्फ गुस्से या लालच का रिजल्ट नहीं होता। आज अपराध थ्रिल बन चुका है...एक एक्सपेरिमेंट जैसा, जिसमें युवाओं को लगता है कि वे सब कंट्रोल कर सकते हैं। राजा रघुवंशी के केस में पुलिस का दावा है कि यह योजनाबद्ध साजिश थी। सोनम ने मददगार भी चुने, सबूत मिटाने की कोशिशें की गईं और सोशल मीडिया को नॉर्मल बनाए रखा गया। इससे पता चलता है कि अपराध के पीछे कॉग्निटिव बायस (संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह) काम करता है। अपराधी सोचता है कि वही सबसे चालाक है। अपराध के बाद भी पकड़ा नहीं जाएगा।

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डॉ.त्रिवेदी इस पर महत्वपूर्ण बात करते हैं। उन्होंने कहा, हमारे समाज में आज अपराध और अपराधियों का महिमा मंडम हो रहा है। वेब सीरीज और फिल्मों में अपराधियों को स्मार्ट, चालाक और चतुर दिखाया जा रहा है। फिर उन्हीं को हीरो के रूप में प्रेजेंट किया जा रहा है। 
जब 'द सूत्र' ने सवाल किया कि क्या ऐसे मामलों में आरोपियों को अंजाम की जानकारी नहीं होती? इसके जवाब में डॉ.त्रिवेदी कहते हैं, ऐसे मामलों में अपराधियों के मन में कॉग्निटिव बायस ही आता है कि हम अपराध ऐसे स्मार्ट तरीके से करेंगे कि पकड़े ही नहीं जाएंगे। इस तरह ड्रामा और ज्यादा हो जाता है। यही वजह है कि हमारे देश में इस तरह के केस बढ़ रहे हैं। 

दूसरे तरीके से कहें तो आजकल के नायक असल में खलनायक होते हैं। वे बैंक लूटते हैं, सिस्टम को चकमा देते हैं और आखिर में हीरो बन जाते हैं। यही छवि युवाओं के दिमाग में बैठ रही है। जब फिल्मों में गुनहगार को स्टाइलिश और जीतता हुआ दिखाया जाता है, तब रियल लाइफ में अपराध भी सामान्य लगने लगता है। सोनम के केस में भी कुछ ऐसा ही देखने मिला है, वह सास से बात कर रही है, ऑडियो में सामान्य लग रहा है, लेकिन परदे के पीछे हो सकता है कोई स्क्रिप्ट लिखी जा रही हो? 

अगर हत्यारा कोई पुरुष होता तो क्या होता?

यह सवाल समाज की जड़ तक जाता है। डॉ. त्रिवेदी कहते हैं, अगर पति ने पत्नी की हत्या करवाई होती तो शायद हम इतनी चर्चा नहीं करते। समाज को इसलिए झटका लगा, क्योंकि यहां महिला पर आरोप है, पर यही तो चिंता की बात है, हम अपराध को जेंडर से जोड़ते हैं, इंसान से नहीं। 
जनता इस घटना को लेकर इसलिए चिंतित है, क्योंकि हमारे समाज में यह हमेशा से माना जाता रहा है कि अपराध जेंडर विशेष (पुरुष) ही कर सकते हैं। वे कहते हैं, पहले महिलाएं इतनी ओपन नहीं थीं। अब परिस्थितियां बदल रही हैं, इसलिए हमें यह आश्चर्य बिलकुल नहीं होना चाहिए कि ऐसा महिलाएं कैसे कर सकती हैं।

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