इंदौर के डेली कॉलेज का बोर्ड बेलगाम, लोकतंत्र को ठेंगा बताकर कार्यकाल चार महीने और बढ़ाया

इंदौर के डेली कॉलेज के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने अपने कार्यकाल को 13 अप्रैल 2026 तक बढ़ा लिया, जबकि उनका कार्यकाल 13 दिसंबर 2025 तक था। क्या है पूरा मामला...चलिए जानते हैं।

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The Sootr
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Indore के नामी-गिरामी डेली कॉलेज का बोर्ड ऑफ गवर्नर्स अब खुलेआम मनमानी पर उतर आया है। नियम-कानून, लोकतंत्र और परंपरा सबको ताक पर रखकर बोर्ड ने अपने कार्यकाल को चार महीने बढ़ा लिया है।

13 दिसंबर 2025 को इस बोर्ड का कार्यकाल खत्म होना था, लेकिन इससे पहले ही चुनाव कराने की जगह इन्होंने खुद अपनी गद्दी को 13 अप्रैल 2026 तक बढ़ा लिया। सवाल ये है कि क्या बोर्ड अब लोकतांत्रिक संस्था रही भी है या फिर कुछ गिने-चुने चेहरों का क्लब बनकर रह गई है?

चुनाव से डर क्यों?

पिछला चुनाव 13 दिसंबर 2020 को हुआ था और बोर्ड का कार्यकाल साफ तौर पर 5 साल का तय है। इसके बावजूद बार-बार कार्यकाल बढ़ाना बताता है कि बोर्ड को लोकतंत्र से डर लग रहा है। धीरज लुल्ला, मोनू भाटिया और प्रियव्रत सिंह 10 साल से जमे हुए हैं। बोर्ड के मेंबर न वार्षिक आमसभा बुलाना चाहते हैं, न ही समय पर चुनाव कराना चाहते हैं।

डेलियंस बोले- ये तो अब हद

ओल्ड डेलियंस का कहना है कि डेली कॉलेज के इतिहास में शायद ही कभी किसी बोर्ड ने इतनी बेशर्मी दिखाई हो। पिछली बार कार्यकाल 6 महीने बढ़ाया गया था, इस बार 4 महीने। यानी सत्ता से चिपके रहने का सिलसिला जारी है।

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छात्रों और पूर्व छात्रों का गुस्सा

पूर्व छात्र मानते हैं कि ये लोकतंत्र का खुला मजाक है और बोर्ड अपनी असीमित शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है। जिनके हाथ में स्कूल की कमान है, वही उसे अपनी निजी संपत्ति की तरह चला रहे हैं। सवाल साफ है कि क्या डेली कॉलेज के छात्रों और स्कूल के भविष्य का फैसला कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए करेंगे?

विरोध भी दबा

बोर्ड की 29 सितंबर 2025 की बैठक में केवल संदीप पारेख ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। बाकी सभी ने आंख मूंदकर अपनी ही कुर्सियों को सुरक्षित कर लिया।

ये उपस्थित थे बैठक में

  • विक्रम सिंह पवार
  • राज्यवर्धन सिंह जी नर्सिंगर
  • प्रियव्रत सिंह
  • धीरज लुल्ला
  • मोनू भाटिया
  • कारण नर्सरियां
  • संजय पाहवा

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सवालों और आरोपों के घेरे में बोर्ड 

दरअसल, डेली कॉलेज (Daly College Indore) इन दिनों सवालों और आरोपों के घेरे में है। एक तरफ ओल्ड डेलियंस (पूर्व छात्र) लगातार चुनाव कराने और वार्षिक आम बैठक (AGM) बुलाने की मांग कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ प्रबंधन उनकी आवाज को दरकिनार कर रहा है। 
पूर्व छात्रों का कहना है कि मैनेजमेंट AGM और EOGM (इमरजेंसी जनरल मीटिंग) बुलाने में जानबूझकर टालमटोल कर रहा है, ताकि जवाबदेही से बचा जा सके। 

ओल्ड डेलियंस का कहना है कि स्कूल के वास्तविक मुद्दों जैसे पारदर्शिता, चुनाव, सदस्यता अधिकार और विकास की दिशा पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के 9 मेंबर पूरे फैसले कर रहे हैं। गौरतलब है कि ओल्ड डेलियन संदीप पारेख ने सितंबर 2024 में आवाज उठाई थी कि कॉलेज में सालाना आमसभा (AGM) तक नहीं होती। उन्होंने कहा था कि यह सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1973 का सीधा उल्लंघन है। शिकायत पर कार्रवाई न होने पर मामला हाईकोर्ट पहुंचा। 29 नवंबर 2024 को हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार को 6 हफ्तों में मसला निपटाने का आदेश दिया। कई बार सुनवाई टलने के बाद 2 अप्रैल 2025 को पारेख और उनके वकील ने पक्ष रखा। रजिस्ट्रार ने अंततः माना कि कॉलेज का बोर्ड मनमानी कर रहा है और नियम बदलने का आदेश दिया।

नए नियम: बड़ा झटका बोर्ड को

रजिस्ट्रार, फर्म्स और सोसायटीज इंदौर ने डेली कॉलेज सोसायटी को लोकतांत्रिक बनाने के लिए सख्त गाइडलाइन दी। 

  • सदस्यता: पूर्व छात्र, नए व पुराने दानदाता सभी सदस्य माने जाएंगे।
  • AGM अनिवार्य: हर साल बैठक, सूचना 15 दिन पहले, कोरम 3/5।
  • विशेष बैठक (EGM): 150 सदस्य मांग करें तो बुलाना होगा।
  • बजट-ऑडिट: सभी सदस्यों के बीच वेबसाइट और ईमेल से पब्लिक होगी।
  • नियम बदलना: विशेष बैठक में 2/3 बहुमत से गुप्त वोटिंग।
  • सुप्रीम बॉडी का दावा खत्म: अब बोर्ड खुद को सर्वोच्च नहीं कह सकेगा।

आदेशों की खुली धज्जियां

आरोप है कि इतने कड़े आदेश के बावजूद बोर्ड ने पिछले दिनों हुई बैठक में नियम बदलने का एजेंडा ही शामिल नहीं किया था। न ही बोर्ड मेंबर इलेक्शन कराना चाहते हैं।

जहां मोनू...विवाद वहां

मोनू भाटिया जहां भी जाते हैं, चुनाव में विवाद खड़ा कर ही देते हैं। चाहे वो श्री गुरु सिंघ सभा चुनाव हो या अब डेली कॉलेज का, हर जगह कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि मामला चर्चा में आ जाता है। अब डेली कॉलेज के चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। मोनू भाटिया का नाम आते ही एक बार फिर से विवादों का बवंडर मच गया।

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