इंदौर हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा पति पर लगाए गए अप्राकृतिक यौन संबंध, दहेज प्रताड़ना आदि के मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है और पत्नी की रीव्यू पिटीशन को खारिज कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि पति–पत्नी के शारीरिक संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं है। इसे वैवाहिक बलात्कार नहीं कहा जा सकता है। इसके पूर्व ट्रायल कोर्ट ने भी पति को बरी कर दिया था।
यह है पूरा मामला
मप्र हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने पत्नी से अप्राकृतिक संबंध के आरोप में पति को बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को कायम रखते हुए कहा कि यदि समान लिंग या अलग-अलग लिंग के दो व्यक्तियों के बीच दोनों पक्षों की सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनता है, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध नहीं होगा। यह भी कहा गया है कि वैवाहिक बलात्कार को अब तक कानूनी मान्यता नहीं मिली है। उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी ने दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर करने के बाद पत्नी की रिव्यू पिटीशन खारिज कर दी।
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जिला कोर्ट से पति को कर दिया था बरी
इंदौर हाईकोर्ट पहुंची महिला के पति को इंदौर की एक अतिरिक्त सत्र अदालत ने अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन कृत्य के आरोप से 3 फरवरी 2024 को बरी कर दिया था। यह आरोप भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन कृत्य) के तहत लगाया गया था।
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पति के खिलाफ थे पर्याप्त सबूत
कोर्ट में याचिकाकर्ता महिला के वकील की ओर से कहा गया कि पर्याप्त सबूत के बावजूद निचली अदालत ने पति को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत लगाए गए आरोप से मुक्त कर दिया जो कानून की दृष्टि से गलत है। महिला ने उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी कि निचली अदालत के इस आदेश को रद्द किया जाए।
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पत्नी से संबंध बनाना अपराध नहीं
इस मामले में पति के वकील ने उच्च न्यायालय में कहा कि शीर्ष अदालत भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित कर चुकी है। महिला के पति के वकील ने उच्च न्यायालय में यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत बलात्कार की संशोधित परिभाषा के अनुसार वैवाहिक संबंध बरकरार रहने के दौरान पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाता है।
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कोर्ट ने कहा, वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं
न्यायालय ने पति और पत्नी के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध के पहलू पर विचार-विमर्श करने वाले कुछ निर्णयों का उल्लेख किया और IPC की धारा 375 के तहत बलात्कार की संशोधित परिभाषा का उल्लेख किया। न्यायालय ने यह भी कहा कि आज तक आईपीसी के तहत वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं दी गई।
कोर्ट ने इसी तरह के और भी कई मामले बताए
न्यायालय ने मनीष साहू पुत्र ओंकार प्रसाद साहू बनाम मध्य प्रदेश राज्य के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें यह देखा गया। हालांकि, यह न्यायालय IPC की धारा 375 के तहत परिभाषित बलात्कार की संशोधित परिभाषा पर विचार करने के बाद पहले ही इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका है कि यदि एक पत्नी वैध विवाह के दौरान अपने पति के साथ रह रही है तो किसी पुरुष द्वारा पंद्रह वर्ष से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ कोई भी संभोग या यौन क्रिया बलात्कार नहीं होगी।
पत्नी ने पति पर लगाए थे दहेज प्रताड़ना के भी आरोप
याचिकाकर्ता पत्नी ने पति पर आरोप लगाया कि उसके साथ क्रूरता की गई दहेज की मांग की गई और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए गए। इस प्रकार IPC की धारा 498-ए (क्रूरता), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दंड), 294 (अश्लील कृत्य और गीत) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के साथ धारा 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 (दहेज देने या लेने के लिए दंड) के साथ धारा 4 (दहेज मांगने के लिए दंड) के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए एक FIR दर्ज की गई।