इंदौर में नगर निगम की नई और अनोखी कारस्तानी सामने आई है। असल में हाई कोर्ट ने नगर निगम से पूछा है कि जनता से जलकर के नाम पर दोहरी वसूली क्यों की जा रही है। खास बात तो यह रही कि जिनके घरों में निगम का नल कनेक्शन ही नहीं था उनसे भी जलकर के नाम पर वसूली कर ली गई। इस मामले में हाईकोर्ट ने नगर निगम कमिश्नर से 6 सप्ताह में जवाब मांगा है।
निगम की अवैध वसूली के लगे आरोप
पूर्व पार्षद महेश गर्ग की और से अधिवक्ता मनीष यादव और अधिवक्ता अदिति मनीष यादव ने जनहित याचिका दायर कर कोर्ट में तर्क रखे थे। उसमें कहा गया था कि इंदौर नगर निगम के द्वारा शहर की जनता से जलकर के नाम पर दोहरा कर वसूला जा रहा है, जो पूरी तरह से अवैध है।
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संपत्तिकर के साथ भी कर रहे वसूली
अधिवक्ता मनीष यादव ने 01 अप्रैल 2000 के महापौर परिषद के प्रस्ताव को चुनौती देते हुए कोर्ट को बताया कि कैसे पिछले 25 साल से निगम संपत्ति कर के साथ 10% जलकर की अवैध वसूली कर रहा है जो पूरी तरह गलत है। जबकि जिन लोगों ने नल कनेक्शन लिया हुआ है वो जलकर का अलग से मासिक भुगतान करते ही हैं। वो भी अलग–अलग पाइप लाइन और प्रकार के हिसाब से होता है, जिससे आमजन की जेब से दोहरा कर लिया जा रहा है।
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ऐसे समझें दोहरे कर का गणित
अधिवक्ता यादव ने बताया कि उदहारण के तौर पर किसी का बड़ा मकान है पर नल कनेक्शन ही नहीं है। फिर भी उसे संपति कर में 10% जलकर देना पड़ रहा है। भले ही उसका नल कनेक्शन हो या न हो। शहर की जनता को रोज पानी भी साफ और समय से नहीं मिलता है। कई जगह गंदे पानी की शिकायता रहती है एक दिन छोड़ कर नल आते हैं। ये जनता से अवैध वसूली की तरह है। इन तर्को से सहमत होकर प्रशासनिक न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति प्रेम नारायण सिंह की कोर्ट ने इंदौर नगर निगमायुक्त से महापौर से 6 सप्ताह में जवाब मांगा है।
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