यूका कचरा जलने पर ये गैस निकले मानक से अधिक, बोर्ड ने बताए बेल्ट टूटने जैसे कारण
पीथमपुर बचाओ समिति के अध्यक्ष हेमंत हिरोले ने इस मामले में पहले आरोप लगाए कि प्रदूषण बोर्ड द्वारा जो आंकड़े प्रेस विज्ञप्ति में जारी किए जा रहे थे, उनमें और प्रदूषण बोर्ड की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों में अंतर है।
पीथमपुर के रामकी संयंत्र में हाईकोर्ट के आदेश के बाद 28 फरवरी की दोपहर 3 बजे से जहरीला यूका कचरा जलना शुरू हो गया है। पहले चरण में 10 मीट्रिक टन का ट्रायल रन सोमवार शाम को पूरा हो गया है। इसके बाद चार मार्च से दूसरे चरण में 10 मीट्रिक टन जलेगा। लेकिन इसके जलने से हो रहे प्रदूषण की रिपोर्ट सवालों के घेरे में आ गई है। खासकर इस रिपोर्ट में जहरीली गैस सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और हाइड्रोजन फ्लोराइड (HF) के मानकों से अधिक होने से कचरा जलने पर सवाल उठ गए हैं। वहीं, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मप्र द्वारा इसे लेकर जो कारण गिनाए गए हैं, वह तो और चौंकाने वाले हैं। इसमें बेल्ट टूट जाने जैसे कारण गिनाए गए हैं। वहीं, रीजनल डायरेक्टर ने तो यहां तक कह दिया कि अभी तो ट्रायल ही रन है।
रीजनल डायरेक्टर का जवाब – यह तो ट्रायल रन ही है
इस मामले में संवाददाता ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रीजनल डायरेक्टर एस.एन. द्विवेदी से इस संबंध में बात की और पीथमपुर बचाओ समिति के आरोपों पर जवाब मांगा तो वह बोले – "वो तो हर मिनट देख रहे हैं, जबकि सीपीसीबी गाइडलाइन से 30 मिनट का एवरेज निकलता है। उनके आरोपों का जवाब हमने दे दिया है। टीओसी केवल बीच में दो रीडिंग में बढ़ी क्योंकि पंप बंद हो गया था। कंट्रोल रूम में रात तीन बजे भी बैठे हैं, तत्काल इसे ठीक किया जाता है, एवरेज में कभी ज्यादा नहीं बढ़ी। आठ घंटे के एवरेज में धूल कण सही थे, जब ज्यादा आए थे तब उस समय पुलिस, प्रशासन, मीडिया की गाड़ियां आई थीं, इस कारण कुछ समय ज्यादा थे। यह ट्रायल रन है, ट्रायल रन इसलिए होता है, कभी-कभार बढ़ भी सकता है, तभी तो हम इसे आगे देखेंगे कि आगे कैसे ट्रीट करना है। कभी पीक में बढ़ा होगा। पंप कभी-कभार बंद हो जाते हैं। मशीन है। कोई गड़बड़ नहीं, अभी ट्रायल रन है। नहीं बढ़ा है।"
पीथमपुर बचाओ समिति के अध्यक्ष हेमंत हिरोले ने इस मामले में पहले आरोप लगाए कि प्रदूषण बोर्ड द्वारा जो आंकड़े प्रेस विज्ञप्ति में जारी किए जा रहे थे, उनमें और प्रदूषण बोर्ड की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों में अंतर है। वेबसाइट पर साफ दिख रहा था कि सल्फर डाइऑक्साइड 200 के अंदर आना चाहिए, जबकि 300 से ज्यादा आ रहा है। हाइड्रोजन फ्लोराइड का स्तर 4 होना चाहिए, वह भी 5 से ज्यादा आ रहा था। वहीं, पीएम 2.5 भी 72 तक पहुंच गया था, जो कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिहाज से काफी ज्यादा खतरनाक है।
यह जवाब दिया प्रदूषण बोर्ड के अफसरों ने
रिपोर्ट देने में भी आनाकानी
उन्होंने यह भी आरोप लगाए कि आंकड़ों में अंतर को लेकर 2 मार्च 2025 की शाम 7 बजे अफसरों को ई–मेल के जरिए सारी जानकारी दी। इस पर कोई जवाब नहीं मिला तो फिर रात 9 बजे एक और ई–मेल मुख्यमंत्री मोहन यादव, प्रमुख सचिव अनुराग जैन, कमिश्नर इंदौर संभाग दीपक सिंह और प्रदूषण बोर्ड के चेयरमैन को किया। उसके बाद रात लगभग 10 बजे जवाब मिला कि इंसीनेटर खाली चल गया था और उसका बेल्ट टूट गया था। इसलिए प्रदूषण का स्तर ज्यादा हो गया था।
अब प्रदूषण बोर्ड ने माने यह आंकड़े और बताए यह कारण
खुद प्रदूषण बोर्ड ने इस मामले में 2 मार्च की रात और फिर 3 मार्च की सुबह जनसंपर्क के जरिए प्रेस नोट जारी कर हिरोले के आरोपों का जवाब दिया और इसके अजीबो-गरीब कारण बताए:
इसमें देखें सल्फर डाई ऑक्साइड और हाईड्रोजन फ्लोराइड की मात्रा
सल्फर डाइऑक्साइड – मानक: 200 मिलीग्राम/सामान्य घनमीटर, लेकिन निकल रहा है 208.97 मिलीग्राम (समय: 28 फरवरी दोपहर 1 बजे) – कारण बताया कि इस समय केवल ब्लैंक रन किया जा रहा था और किसी प्रकार का अपशिष्ट नहीं डाला गया था। सेंसर के कैलिब्रेशन के दौरान शून्य व पीक लाकर कैलिब्रेशन किया जाता है, जिसके कारण मानक से अधिक रिजल्ट आया।
टोटल ऑर्गेनिक कार्बन – मानक: 20 मिलीग्राम/सामान्य घनमीटर, लेकिन चिमनी से निकले 31.77 व 28.28 मिलीग्राम (समय: 28 फरवरी दोपहर साढ़े चार से पांच बजे के बीच) – कारण बताया कि सेंसर के कैलिब्रेशन के दौरान शून्य व पीक लाकर कैलिब्रेशन किया जाता है, जिसके कारण मानक से अधिक आए।
टोटल ऑर्गेनिक कार्बन – रिपोर्ट 1 मार्च को दोपहर तीन से साढ़े तीन बजे के बीच 32.57 व 26.06 मिलीग्राम (कारण बताया गया कि इस दौरान स्प्रे ड्रायर के पंप का बेल्ट टूट जाने से पंप बंद हो गया था, जिसके कारण रिजल्ट अधिक आए, पंप की खराबी सुधरने के बाद मानक सही आए।)
हाइड्रोजन फ्लोराइड – मानक: 4 मिलीग्राम/सामान्य घनमीटर, लेकिन उत्सर्जन स्तर रिपोर्ट में स्पष्ट नहीं किया गया। (28 फरवरी के प्रेस नोट में 3.8 बताया गया था, जो मानक के करीब था, लेकिन हिरोले को जो ईमेल से जानकारी मिली, उसमें यह स्तर 4.04 से 5.33 बताया गया।) (बोर्ड के प्रेस नोट में उत्सर्जन स्तर नहीं बताया गया, केवल यह लिखा कि सभी परिणाम तय मानक सीमा के भीतर हैं।)
अफसरों का बयान - 24 घंटे का औसत लेकर निकाले जाते हैं मानक
वायु गुणवत्ता के दौरान देखे जाने वाले पीएम स्तर को लेकर कहा गया कि इनका मापन प्रत्येक 24 घंटे के औसत के हिसाब से किया जाता है और हर 8 घंटे में रीडिंग ली जाती है। वहीं, SO₂, TOC और HF का मापक 30 मिनट के अंतराल में किया जाता है।
10 मीट्रिक टन में औसत ठीक, अधिकतम रिजल्ट में ज्यादा
प्रदूषण विभाग के अफसरों ने 3 मार्च 2025 को शाम को जानकारी देते हुए बताया कि शाम 5:15 बजे तक पहले ट्रायल रन के दौरान कुल 10 टन कचरा जल गया। अफसरों ने पिछले 24 घंटे की मॉनिटरिंग रिपोर्ट दी। इसमें भी आया कि कुछ उत्सर्जन मानक से अधिक हुए हैं, हालांकि यह एक तय समय पर ऐसा हुआ है, लेकिन औसत मानकों के अंदर ही रहा है और ट्रायल रन सफल रहा है।
यह बताए गए रिजल्ट: 1- पार्टिकुलेट मैटर - इसका मानक 50 मिलीग्राम/घनमीटर होता है, लेकिन इसका औसत 8.69 रहा है, हालांकि इसका अधिकतम रिजल्ट 10.53 तक गया। 2- सल्फर डाइऑक्साइड - इसका मानक 200 मिलीग्राम/घनमीटर है। औसत 56.11 गया और अधिकतम 73.50 तक गया। 3- नाइट्रोजन ऑक्साइड - इसका मानक 400 है, जो औसत में 89.93 और अधिकतम में 120.41 तक गया। 4- कार्बन मोनोऑक्साइड - इसका मानक 100 है, लेकिन औसत में 17.44 रहा और अधिकतम में 26.03 तक गया। 5- हाइड्रोजन क्लोराइड - इसका मानक 50 का है, औसत 0.23 रहा और अधिकतम में यह 2.94 तक गया। 6- हाइड्रोजन फ्लोराइड - इसका मानक 4 है, लेकिन औसत में यह 0.82 और अधिकतम में 4.44 तक गया। 7- टोटल ऑर्गेनिक कार्बन - इसका मानक 20 है, औसत रेंज में यह 1.61 ही रहा और अधिकतम 3.53 तक गया।
2015 में भी 10 मीट्रिक टन कचरे के साथ ट्रायल रन किया गया था। उस समय सभी मानक सामान्य स्तर पर थे।
यह रिपोर्ट मिली थी
धूल कण: न्यूनतम 2.7, अधिकतम 4
हाइड्रोक्लोराइड: 1 से कम
सल्फर डाइऑक्साइड: 1 से कम
कार्बन मोनोऑक्साइड: 35
कुल ऑर्गेनिक कार्बन: अधिकतम 8.9
हाइड्रोजन फ्लोराइड: 1 से कम
नाइट्रोजन ऑक्साइड: अधिकतम 66
डाइऑक्सिन व फ्यूरान: 0.03
हेवी मेटल (कैडमियम व अन्य): अधिकतम 0.007
मरकरी: 0.02
अन्य भारी धातु (आर्सेनिक, लेड, कोबाल्ट): 0.49
यह नुकसान पहुंचाते हैं ये केमिकल
PM2.5, SO₂ और HF का संपर्क स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है, जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय और फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं।