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Photograph: (The Sootr)
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INDORE. इंदौर और मप्र के सबसे बड़े क्लब यशवंत क्लब (yc) में शुक्रवार को नगर निगम की टीम पहुंच गई। निगम की टीम ने वहां हर एंगल से नपती की। जितने भी निर्माण हुए हैं, उन स्थानों की नपती हुई है। यशवंत क्लब को लेकर पहले ही निगम के साथ संपत्तिकर का विवाद चल रहा है। हालांकि इसमें हाईकोर्ट का स्टे है। लेकिन नपती किसी और कारण से हुई।
दरअसल यह टीम नगर निगम के संपत्तिकर विभाग (राजस्व) की जगह बिल्डिंग परमीशन विभाग से पहुंची थी। यशवंत क्लब ने नए 100 सदस्य बनाकर जो 25 करोड़ की राशि जमाकर यहां पर बड़ा भवन बनाने का प्लान बनाया है यह नपती उसी के लिए है। नए भवन के प्रस्ताव के संबंध में साथ ही कुछ अधिक निर्माण की शिकायतों के चलते यह नपती की गई है।
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5 पॉइंट्स में समझें इंदौर नगर निगम की कार्रवाई से जुड़ी पूरी खबर...नपती का कारण: नगर निगम की टीम इंदौर के यशवंत क्लब में शुक्रवार को पहुंची और वहां किए गए निर्माणों की नपती की। यह नपती क्लब द्वारा नए भवन के निर्माण की योजना के लिए की गई थी, जिसमें 25 करोड़ रुपये जमा किए गए थे। संपत्तिकर विवाद: यशवंत क्लब और नगर निगम के बीच संपत्तिकर का विवाद चल रहा है, जिसके कारण क्लब ने नगर निगम के संपत्तिकर विभाग के बजाय बिल्डिंग परमीशन विभाग से नपती करवाई। नए भवन की मंजूरी नहीं मिलेगी: यशवंत क्लब ने नए भवन की मंजूरी के लिए नगर निगम में आवेदन किया है, लेकिन संपत्तिकर विवाद और बकाया टैक्स के कारण मंजूरी नहीं मिलेगी। जब तक बकाया टैक्स पूरा नहीं भरा जाता, तब तक नई भवन निर्माण की मंजूरी नहीं दी जाएगी। हाईकोर्ट का स्टे: संपत्तिकर विवाद के कारण हाईकोर्ट में केस चल रहा है। क्लब ने एक तिहाई टैक्स भरने के आदेश के बाद बाकी राशि पर विवाद उठाया है, लेकिन नगर निगम का पोर्टल टैक्स बकाया होने पर नए निर्माण की मंजूरी नहीं देता है। जुपिटर अस्पताल के साथ भी हुआ था ऐसा: इस मामले का समान उदाहरण हाल ही में जुपिटर अस्पताल के साथ हुआ था, जहां टैक्स बकाया होने पर भवन निर्माण की मंजूरी नहीं मिली थी। यही हाल यशवंत क्लब का भी है, और क्लब को पूरी राशि चुकता करने के बाद ही मंजूरी मिलेगी। |
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यशवंत क्लब ने नए भवन की मंजूरी के लिए नगर निगम में प्रक्रिया शुरू की है लेकिन इसकी मंजूरी मिलेगी ही नहीं। इसका कारण है कि यशवंत क्लब और नगर निगम के बीच में संपत्ति कर का विवाद चल रहा है। हाईकोर्ट ने एक तिहाई टैक्स भरने के आदेश दिए थे जो क्लब ने भर दिए और बाकी राशि पर विवाद है।
क्लब का कहना है कि इतना टैक्स नहीं बनता है। अब समस्या यह है कि जब तक निगम का कोई भी टैक्स बकाया होता है तो निगम का पोर्टल नई भवन अनुज्ञा या किसी भवन अनुज्ञा में संशोधन की मंजूरी देता ही नहीं है।
यही मामला हाल ही में जुपिटर हास्पिटल का आया था, जिसका खुलासा द सूत्र ने किया था। जुपिटर ने भी टैक्स बकाया होने पर मंजूरी मांगी थी, खुद निगम ने इसके लिए भोपाल तक फाइल चलाई थी कि टैक्स बाद में आ जाएगा मंजूरी देने की सुविधा दी जाए, लेकिन भोपाल ने साफ मना कर दिया कि ऐसा कोई नियम नहीं है। इसके बाद जुपिटर को मंजूरी नहीं हुई।
यही केस यशवंत क्लब का भी है। यानी साफ है कि क्लब को नए भवन की मंजूरी चाहिए तो उन्हें हर हाल में बकाया टैक्स पूरा भरना होगा, फिर भले ही वह हाईकोर्ट में केस जीतने के बाद इसका रिफंड का क्लेम कर लें। बिना टैक्स भरे यह मंजूरी नहीं मिलेगी।
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