इंदौर में कलेक्टोरेट के नाम पर फर्जीवाड़ा करने पर आखिरकार एक महीने बाद वकील पर केस दर्ज हो गया। वकील पर आरोप थे कि उन्होंने एक पीड़ित का केस लिया और उससे मोटी फीस वसूल की। साथ ही, यह दिखाने के लिए कि वास्तव में उसका केस कलेक्टोरेट में एसडीएम के पास चल रहा है, वैसे ही पूरी नोटशीट तैयार की, जैसे एसडीएम कोर्ट में होती है। इसमें एसडीएम के हस्ताक्षर और सील भी नकली रूप से लगा दी गई।
इस वकील पर हुआ केस
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फरियादी गौरव शर्मा के आवेदन पर हीरानगर थाने में बीएनएस धारा 314(8), 336(3), 338, 340(2), 347(2) के तहत खिलचीपुर राजगढ़ के वकील गिरीराज गुप्ता के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। एफआईआर में उल्लेख है कि आरोपी अधिवक्ता ने एसडीएम घनश्याम धनगर की भाड़ा नियंत्रक कोर्ट के फर्जी हस्ताक्षर और पद मुद्रा से आदेश पत्र, पत्रिका, और कूटरचित आदेश शीट तैयार की। इसमें न्यायालय के फर्जी प्रकरण 40/2024 का उल्लेख करते हुए फरियादी गौरव शर्मा के साथ धोखाधड़ी की। पूरी नोटशीट ऐसे ही चली जैसे की एसडीएम कोर्ट में चलती है।
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क्यों बनाई गई यह नोटशीट?
दरअसल, आवेदक शोभा शर्मा के पक्ष में उनका मकान खाली कराने को लेकर न्यायालय का फैसला आ गया था। आवेदक के बेटे गौरव शर्मा ने एसडीएम को बताया कि हमारे द्वारा वकील गिरीराज से बात की तो उन्होंने कहा कि इसके लिए एसडीएम कोर्ट में केस लगाना होगा तब वह मकान खाली होगा और आपको कब्जा मिलेगा। हमने उन्हें कर लिया। बाद में हम उन्हें और उनके सलाहकार सुधांशु नागर मिलकर पूछते रहे कि मेरे केस में क्या हो रहा है। वकील टालते रहे और कहते रहे कि कभी एसडीएम नहीं मिले, कभी सुनवाई जारी है। इस पर हमने वकील साहब से केस नंबर और अन्य जानकारी मांगी तो उन्होंने यह नोटशीट भेज दी। जिसमें बकायदा सुनवाई दिखाई गई और एसडीएम कोर्ट की साइन, सील थी। इस नोटशीट के साथ उनका वकालत नामा भी लगा हुआ है।
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कैसे खुली पोल?
इसके बाद गौरव ने यह नोटशीट लेकर और केस नंबर लेकर कलेक्टोरेट में सभी जगह पूछताछ की और वह दो दिन पहले एसडीएम धनगर के रीडर से मिले तो उन्होंने कहा कि ऐसा कोई केस ही हमारे यहां नहीं है क्योंकि केस नंबर की यह सीरिज ही नहीं है। इसके बाद वह एसडीएम से मिले और यह नोटशीट दिखाई। इससे पूरा फर्जीवाड़ा खुल गया।
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वकील बोले ऐसा कुछ नहीं हुआ?
इसके बाद एसडीएम धनगर ने सहायक सुधांशु और आवेदक शर्मा सभी के बयान लिए। उधर वकील ने 'द सूत्र' से चर्चा में कहा कि इस तरह का कोई केस मेरे द्वारा नहीं हुआ है। मेरे पास कलेक्टोरेट से फोन आया था, तो मैं मिलने भी गया था लेकिन अधिकारी नहीं मिले और ना ही उन्होंने मेरे फोन उठाया। यह पूरी तरह से निराधार बात है।
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