इंदौर मेट्रो: बिना बीमा-बिना सुरक्षा, भगवान भरोसे हैं यात्री

इंदौर मेट्रो में यात्रियों को बिना बीमा और सुरक्षा के सफर कराया जा रहा है। छह महीने बाद भी बीमा प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। इससे सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

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Rahul Dave
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Indore Metro, Without insurance without security

Photograph: (the sootr)

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INDORE. शहर में मेट्रो पटरी पर दौड़ रही है, उद्घाटन हो चुका है, पोस्टर लग चुके हैं। दावे भी पूरे किए जा चुके हैं लेकिन यात्रियों की सुरक्षा आज भी फाइलों में अटकी हुई है।

इंदौर मेट्रो इस वक्त यात्रियों को बिना किसी सुरक्षा बीमा (इंश्योरेंस कवर) के सफर करा रही है। यह कोई तकनीकी चूक नहीं, बल्कि सीधी-सीधी प्रशासनिक लापरवाही है।

छह महीने से ट्रेन चल रही, बीमा अब भी हवा में

जून 2025 में गांधी नगर से सुपर कॉरिडोर-3 तक करीब 6 किलोमीटर का मेट्रो सेक्शन शुरु किया गया। छह महीने बाद भी न यात्रियों का बीमा है, न ट्रेन, न स्टेशन और न ही आसपास के इलाके किसी इंश्योरेंस कवर में हैं। अगर आज कोई हादसा हो जाए तो सवाल सिर्फ मुआवज़े का नहीं होगा, बल्कि जिम्मेदारी से बचने की अफसरशाही की दौड़ शुरू हो जाएगी।

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देश में नियम एक, इंदौर में नियम अलग?

दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, भोपाल जैसे शहरों में मेट्रो सेवा शुरू करने से पहले यात्रियों और संपत्ति का बीमा अनिवार्य रूप से लिया जाता है। लेकिन इंदौर में नियमों को उल्टा कर दिया गया। यहां पहले मेट्रो चला दी, अब कहा जा रहा है कि बीमा प्रक्रिया में है। यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या इंदौर प्रयोगशाला है, जहां यात्रियों की जान पर ट्रायल किया जा रहा है?

दूसरे चरण की तैयारी, पहले में ही सुरक्षा शून्य

फिलहाल 6 किलोमीटर का सेक्शन चालू है, जिसमें 5 स्टेशन शामिल हैं। वहीं करीब 11 किलोमीटर के दूसरे चरण पर काम चल रहा है। सुपर कॉरिडोर-3 से रेडिसन चौराहा तक मेट्रो शुरू करने की तैयारी है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब पहला चरण ही बिना सुरक्षा चल रहा है, तो दूसरे चरण में जोखिम कई गुना क्यों बढ़ाया जा रहा है?

“प्रक्रिया चल रही है” जवाब वही, जिम्मेदारी शून्य

मेट्रो अधिकारियों का कहना है कि किसी भी बीमा कंपनी से अब तक अनुबंध नहीं हुआ है और प्रक्रिया जारी है। लेकिन सच्चाई यह है कि छह महीने बाद भी सिर्फ वही रटा-रटाया जवाब दोहराया जा रहा है। यह स्थिति सिस्टम की सुस्ती नहीं, बल्कि लापरवाही की खुली स्वीकारोक्ति है।

यात्री घटे, भरोसा टूटा

मेट्रो को लेकर जोश शुरुआत में दिखा, जब किराए में छूट दी गई। छूट खत्म हुई, तो यात्री भी गायब हो गए। स्थिति यह है कि कई ट्रिप में मुट्ठी भर लोग ही सफर करते दिखते हैं। घाटे से बचने के लिए संचालन का समय घटाकर दोपहर 3 बजे से किया गया,यानी यात्री नहीं, अब आंकड़ों को संभाला जा रहा है।

विकास नहीं, जोखिम की सवारी

आधुनिक शहर का सपना दिखाने वाली इंदौर मेट्रो आज बिना बीमा, बिना सुरक्षा कवच और बिना जवाबदेही के दौड़ रही है। अगर हादसा हुआ, तो क्या कोई अफसर जिम्मेदारी लेगा? या फिर हर बार की तरह फाइलों में “प्रक्रिया जारी है” लिखकर मामला दबा दिया जाएगा? पटरी पर दौड़ती यह मेट्रो फिलहाल विकास का नहीं, सिस्टम की लापरवाही का प्रतीक बनती जा रही है।

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बीमा प्रक्रिया की चल रही कार्रवाई

इंदौर मेट्रो के एमडी एस कृष्ण चैतन्य ने बीमा सुरक्षा को लेकर कहा कि प्रक्रिया चल रही है। इंदौर और भोपाल दोनों के लिए बीमा पॉलिसी ली जाएगी। फिलहाल टीम पॉलिसी को लेकर अध्ययन कर रही है। जो भी सबसे बेहतरीन पॉलिसी होगी, उसे लिया जाएगा।

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