इंदौर मेडिकल कॉलेज के एमवाय, मेंटल, सुपर स्पेशलिटी, केंसर, एमटीएच अस्पताल में चादर धुलाई घोटाला
कैंसर और मानसिक चिकित्सालय अधीक्षकों द्वारा फेब केयर इंडस्ट्रीयल लॉन्ड्री कंपनी के अक्टूबर व उससे पुराने बिलों को क्लीयर नहीं किया जा रहा था। वहीं, वित्तीय वर्ष 2024–25 समाप्त हो रहा है।
इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज से संबंधित अस्पतालों में एक नया घोटाला सामने आया है। इसमें एमवायएच, मेंटल, कैंसर, सुपर स्पेशलिटी और एमटीएच अस्पताल शामिल हैं। घोटाला भी दवा जैसी सामग्री में खरीदी-बिक्री का नहीं बल्कि चादरों का है। जी हां अब अस्पतालों की चादरों में भी शासन की करोड़ों रुपए का चूना लगाने का मामला सामने आया है। यह अभी तक में किए गए घोटालों में सबसे अलग तरह का घोटाला है। खास बात तो यह है कि यह घोटाला पूर्व डीन डॉ. ज्योति बिंदल और डॉ. संजय दीक्षित के समय से चल रहा है। इसमें एक चादर धुलाई के लिए 10 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान करना तय किया गया।
कुल 5 अस्पतालों के 2292 बेड की चादरें व ओटी के कपड़े आदि की धुलाई का ठेका दिया गया। अकेले चादर धुलाई की ही बात करें तो पांचों अस्पतालों में प्रतिमाह फुल ऑक्यूपेंसी मानकर 6 लाख 87 हजार 600 रुपए तो केवल चादरों की धुलाई का वसूला गया। जबकि इन अस्पतालों के बेड आम दिनों में भी कभी पूरे भरे नहीं रहते हैं। ऐसे में कुल 7 साल में कंपनी ने लगभग 5 करोड़ 77 लाख रुपए का भुगतान तो चादर धुलाई के नाम पर ले लिया। जबकि इतने की चादरें तो धोई भी नहीं गई हैं। आपको बता दें कि उक्त दोनों पूर्व डीन बिंदल और दीक्षित पर इनके कार्यकाल में हुए और भी कई घोटाले के आरोप लग चुके हैं, जिनकी जांच अभी चल रही है।
फरवरी में अधीक्षकों को दिया था नोटिस, वहां से शुरू हुआ विवाद
सूत्रों के मुताबिक कैंसर और मानसिक चिकित्सालय अधीक्षकों द्वारा फेब केयर इंडस्ट्रीयल लॉन्ड्री कंपनी के अक्टूबर व उससे पुराने बिलों को क्लीयर नहीं किया जा रहा था। वहीं, वित्तीय वर्ष 2024–25 समाप्त हो रहा है। ऐसे में कंपनी की तरफ से डीन से बिल क्लीयर करने को लेकर बात की गई। इसके बाद डीन ने 18 फरवरी 2025 को एमजीएम से संबद्ध सभी अस्पतालों को नोटिस जारी कर दिए। इसमें कहा गया कि लॉन्ड्री के जो भी बिल बकाया हैं उसकी सूची 7 दिन के अंदर एमजीएम में प्रस्तुत करें। बस फिर क्या था डाॅ. पाल कंपनी के फर्जीवाड़े का पूरा कच्चा–चिट्ठा उठाकर एमजीएम पहुंच गए।
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चादरों के बिल ऐसे लगाए कि हो गया घोटाला
इन अस्पतालों में मरीजों के लिए बिछाई जाने वाली चादरों की धुलाई के जो बिल लगाए गए उसमें वार्ड में रखे पलंग के हिसाब से संख्या दिखा दी गई। जबकि चादरों के बिल मरीज के हिसाब से लगाने थे। इसकी शिकायत मानसिक अस्पताल के अधीक्षक डॉ. वीएस पाल ने डीन को कर दी। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने ना केवल भुगतान के लिए रोके बिल डीन को दिखाए, बल्कि वह बारीकियां भी बताईं कि किस तरह से यह टेंडर गलत किया गया है। इसके कारण पिछले सात साल में लॉन्ड्री कंपनी को अधिक भुगतान कर शासन को करोड़ाें रुपए की हानि हो चुकी है।
10 रुपए प्रति चादर के हिसाब से दिया था ठेका
एमजीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अस्पतालों में कपड़े धुलाई का ठेका 10 रुपए प्रति चादर के हिसाब से दिया गया था। असल में खास बात तो यह है कि एमवाय, कैंसर, एमटीएच, मानसिक चिकित्सालय और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल कभी भी पूरे भरे नहीं रहते हैं। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में तो कभी 200 बेड से ज्यादा मरीज आम दिनों में भी भरे नहीं रहे। कई बार त्यौहारों के समय तो यहां पर 40 प्रतिशत मरीज भी नहीं होते हैं। उसके बावजूद ठेकेदार द्वारा पूरे बेड के हिसाब से ही बिल लगाया जाता रहा है।
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7 साल के ठेके में वसूले साढ़े 5 करोड़ रुपए
एमजीएम से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, फेब केयर कंपनी द्वारा 5 अस्पतालों से प्रतिमाह 6 लाख 87 हजार 600 रुपए के बिल लगाए, जो कि सालभर में लगभग 82 लाख 51 हजार 200 रुपए थे। वहीं, कंपनी के 2018 से अभी तक की बात करें तो लगभग 5 करोड़ 77 लाख 58 हजार 400 रुपए के बिल तो केवल चादर धुलाई के ही लगाए हैं। कंपनी को किए गए इस भुगतान के संबंध में अब विस्तार से जांच की जा रही है।
असल में तत्कालीन डीन डॉ. ज्योति बिंदल के समय 2018 में एमवाय अस्पताल, मेंटल, कैंसर और एमटीएच अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए बिछाई जाने वाली चादरों की धुलाई के लिए ठेका दिया गया। इसके लिए एक सर्वे किया गया, जो कि राजेश बरगड़िया व उनकी टीम ने किया था। उसमें वार्ड में जो बेड हैं उसके हिसाब से चादरें गिनकर तय कर लिया गया कि उतनी ही चादरें रोज बदली जाएंगी। भले ही फिर उस बेड पर मरीज आए या फिर ना आए। चादर की गिनती तो तो रोज के हिसाब से पंजी रजिस्टर में दर्ज होगी। इसी के हिसाब से पूरा गणित लगाकर सर्वे रिपोर्ट डीन को दे दी। डॉ. बिंदल के जाने के बाद डॉ. संजय दीक्षित डीन बने तब भी यह ठेका चलता रहा।
मेंटल अस्पताल से आई आपत्ति, तो खुला राज
पिछले दिनों मेंटल अस्पताल से जब बिल क्लीयर करने की बात आई तो मेंटल अस्पताल के अधीक्षक डॉ. वीएस पाल ने आपत्ति दर्ज करवा दी। उनका कहना था कि मेंटल अस्पताल में तो पूरे मरीज हैं ही नहीं और खाली बेड पर बिछी चादर धुलने गई ही नहीं तो फिर किस बात का बिल लगाया है। बताते हैं कि इसको लेकर उनका लॉन्ड्री संचालक से विवाद हो गया। इसके बाद उन्होंने अपने यहां पर भर्ती मरीजों की लिस्ट निकाली और लॉन्ड्री के लिए भेजी गई चादरों की सूची के साथ ठेकेदार द्वारा दिए गए बिल को लेकर पिछले दिनों एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया के पास पहुंच गए। यहां पर उन्होंने डीन से ठेकेदार के द्वारा लगाए गए बिलों की शिकायत कर दी।
लॉन्ड्री संचालक मनीष अरोरा द्वारा मनमानी किए जाने को लेकर कैंसर, मानसिक चिकित्सालय और एमटीएच अस्पतालों के डॉक्टरों द्वारा पूर्व में भी शिकायतें की जाती रही हैं। इसी कड़ी में कुछ समय पूर्व एमटीएच अस्पताल में चादरें कम दिए जाने को लेकर इसका बिल रोक दिया गया था। तब भी मनीष ने वहां के डॉक्टरों से काफी विवाद भी किया था। बाद में उसका बिल क्लीयर किया गया।
7 साल में कर दिया करोड़ों का घोटाला
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक एमवायएच, कैंसर, मेंटल, एमटीएच अस्पताल कभी भी पूरे भरे नहीं रहते हैं। ऐसी स्थिति में ठेकेदार को पेमेंट प्रति बेड के हिसाब से किया जाना बताया जा रहा है। अकेले एमवायएच में ही 850 के करीब बेड हैं। वहीं, चारों अस्पतालों की बात करें तो यहां पर 2000 से ज्यादा बेड हैं। ऐसे में इनकी चादरों की धुलाई को लेकर पिछले 7 साल से चल रहे ठेके से करोड़ों रुपए का घोटाला करने का मामला सामने आया है।
एमजीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध एमवायएच अस्पताल में संचालित हो रही लांड्री संचालक को पूर्व एमजीएम डीन डॉ. वीपी पांडे द्वारा नोटिस जारी किया गया था। साथ ही लांड्री संचालक को आरोप पत्र जारी करते हुए सेवा समाप्त करने का नोटिस भी दिया था। बड़ी बात यह है कि संचालक कंपनी का टेंडर नवंबर 2023 में समाप्त होने के बाद और लगातार शिकायतें मिलने के बाद भी उसकी सेवा जारी रखी गई। इसके लिए लांड्री खाली करना का नोटिस लांड्री पर चस्पा किया गया था। इसके पूर्व उसे शा. कैंसर अस्पताल, सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, एमटीएच और स्कूल ऑफ एक्सीलेंस फॉर आई के अधीक्षकों से नोड्यूस का सर्टिफिकेट लेना था।
बेहतर क्वालिटी का हवाला देकर दिया था ठेका
एमवायएच प्रबंधन द्वारा कुछ वर्षों पूर्व तक अपने ही स्टाफ के माध्यम से लांड्री का संचालन किया जा रहा था। अस्पताल के स्टाफ द्वारा बेहतर सेवाएं दी जा रही थी, लेकिन पीपीपी के चलते लांड्री का संचालन 2018 में निजी हाथों में सौंप दिया गया था। दावा किया गया था कि अत्याधुनिक मशीनों के माध्यम से अस्पतालों के कपड़े धुलेंगे, जिससे इसमें गुणवत्ता आएगी और कपड़े भी जल्द धुलेंगे और सुखेंगे। इसके बाद लांड्री निजी हाथों में सौंप दी गई।
कंपनी को ठेका मिलने के कुछ दिनों तक तो सबकुछ ठीक चलता रहा, लेकिन फिर धीरे-धीरे ढर्रा ऐसा बिगड़ा के लांड्री के कामकाज को लेकर लगातार शिकायतें मिलने लगी। ठेके की मियाद पूरी होने के बाद भी जिम्मेदारों ने इसी कंपनी के ठेके को लगातार बढ़ाते चले गए। अनुबंध के मुताबिक जितने कर्मचारी लांड्री में रखे जाने थे, वो भी संचालक द्वारा नहीं रखे जा रहे थे। इसके बाद भी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई।
डॉ. दीक्षित के समय नए टेंडर हुआ, पर नहीं किया था हैंडओवर
पूर्व डीन डॉ. संजय दीक्षित के समय टेंडर की समयावधि पूरी होने के बाद भी जिस कंपनी काे नया ठेका हुआ था, उसे लांड्री संचालन का ठेका नहीं दिया गया। नए टेंडर के मुताबिक लांड्री का संचालन एमवायएच और सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में किया जाना था। लेकिन एमजीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अस्पतालों के कपड़े एमवायएच की लांड्री में धुलते रहे। नए टेंडर प्रक्रिया पूरी हुए छह माह से अधिक समय बीत गया था, लेकिन शिकायतों के बाद भी नई कंपनी को ठेका नहीं दिया गया। इसी दौरान एमजीएम मेडिकल कॉलेज के नए डीन डॉ. वीपी पांडे नियुक्त हुए, उन्हें जानकारी मिली तो उन्होंने लांड्री संचालक को 3 माह में लांड्री खाली करने का नोटिस थमा दिया था।
ठेका शर्तों का नहीं किया पालन, तो नोटिस दिया
वित्तीय वर्ष 2023–24 में एमवायएच में लांड्री का संचालन फैब केअर इंडस्ट्रियल लाॅन्ड्री ग्वालियर के द्वारा संचालित की जा रही थी। इसको एमवायएच प्रबंधन द्वारा नोटिस जारी कर सेवा समाप्त करने को कहा गया था। इसमें लिखा गया कि उक्त फर्म द्वारा वर्ष 2018 से लांड्री का कार्य किया जा रहा है। तब से लेकर अब तक लांड्री इंचार्ज ऑफिसर, सिस्टर इंचार्ज द्वारा सबस्टेंडर्ड कार्य व अनिरंतरता आदि के संबंंध में शिकायतें प्राप्त हुई हैं।
अस्पताल स्टाफ से दुर्व्यवहार की मिली थी शिकायतें
एमजीएम को ठेकेदार के खिलाफ जो गंभीर शिकायतें मिली थीं उसमें धुलाई में कपड़े ठीक से साफ नहीं करना। लांड्री परिसर में गंदगी। धुले कपड़े समय पर उपलब्ध न कराना। कई बार आकस्मिक सेवाएं जैसे ओटी आदि के कपड़ों की कमी के कारण काम प्रभावित होना। बिना प्रेस के कपड़े देना। कपड़ों को बदलकर देना और कम देना। मानसिक चिकित्सालय व कैंसर अस्पताल में बिना सूचना पत्र दिए लांड्री कार्यों को बंद किया जाना। समय पर बिजली, पानी का बिल न भरना। कार्यालय में स्टाफ के साथ अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल करना। भुगतान के लिए अधिकारियों, कर्मचारियों पर दबाव डालना। ऑडिट में भी सेवाओं में अनियमितत के संबंध में भी स्पष्टीकरण मांगा गया था।
अक्टूबर से नहीं ले रहे कैंसर और मेंटल अस्पताल के कपड़े
फेब केयर इंडस्ट्रीयल लॉन्ड्री कंपनी के लॉन्ड्री संचालक मनीष अरोरा ने बताया कि अक्टूबर 2024 के बाद से ही हमने कैंसर अस्पताल और मेंटल अस्पताल से धुलाई के कपड़े लेने बंद कर दिए थे और तब से ही हम बिल भी नहीं दे रहे हैं। मेंटल अस्पताल काफी दूर पड़ता है फिर भी हमारी गाड़ी वहां पर कपड़े लेने जाती थी, लेकिन वे हमें कपड़े ही नहीं देते थे। उनका कहना था कि जितने का बिल लगाया जा रहा है उतने कपड़े तो निकलते ही नहीं है। हमने उनसे कहा था कि हम नियम के मुताबिक ही बिल लगा रहे हैं। अब हम उनसे अक्टूबर तक की बिल क्लीयर करने की बात कर रहे हैं तो वे नहीं कर रहे हैं। वैसे भी हमारा टेंडर तो 2018 से चल रहा है जो फिर अब अचानक से यह बात कहां से आ रही है। एमवायएच और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में तो कभी बिल को लेकर परेशान नहीं किया गया।
डीन को बता चुका हूं समस्या
शासकीय मानसिक चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. वीएस पाल ने बताया कि लॉन्ड्री के बिल को लेकर मुझे जो भी समस्या थी। वह मैं डीन को बता चुका हूं। अब वे ही आगे की कार्रवाई कर रहे हैं। उसके बारे में मैं आपको कुछ नहीं बता सकता हूं।
मेरे कार्यकाल के पहले ही हो चुका था ठेका
एमजीएम की पूर्व डीन डॉ. ज्योति बिंदल ने बताया कि उन्होंने अक्टूबर 2018 में ज्वाइन किया था और कपड़े धुलने का ठेका भी उसके कुछ समय पहले ही हुआ था। ऐसे में मेरे सामने इसको लेकर कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। मैंने जब डीन का पदभार ग्रहण किया तब लॉन्ड्री संचालक काम कर रहा था। वहीं, डॉ. संजय दीक्षित से इस संबंध में जानकारी लेने के लिए कॉल किया तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया।
हां बिल के भुगतान को लेकर शिकायत आई है
एमजीएम के डीन डाॅ. अरविंद घनघोरिया का कहना है कि डॉ. वीएस पाल ने लॉन्ड्री के बिल को लेकर शिकायत की है। उनका कहना है कि लॉन्ड्री के बिल मरीज के हिसाब से नहीं, बल्कि वार्ड के बेड के हिसाब से लगाए गए हैं। हम इसको दिखवा रहे हैं, क्योंकि यह टेंडर पूर्व डीन डॉ. ज्योति बिंदल के समय का है। इसलिए उस समय से अभी तक का पूरा रिकॉर्ड चेक करवाया जा रहा है। इस पूरे मामले की जांच के लिए हमने एक जांच कमेटी भी बना दी है, जोकि इसके दस्तावेजों को देखेगी और फिर रिपोर्ट देगी।