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आईपीएस व इंदौर पुलिस कमिश्नर संतोष सिंह की दबंग और सिंघम वाली छवि गहरे खतरे में आ गई है। हाईकोर्ट चौराहे पर अज्ञात वकीलों ने जो दो घंटे तक वाहन चालकों को बंधक बनाकर रखा। फिर टीआई को भरे चौराहे दौड़ाया, एसीपी और टीआई की वर्दी फाड़ी, घेरा, झूमाझटकी की। उसके बाद देर रात अज्ञात 200 वकीलों पर केस तो हो गया, लेकिन अब सवाल यह है कि क्या यह अज्ञात ही रहेंगे या इन्हें ज्ञात कर गिरफ्तारी की कोशिश पुलिस द्वारा की जाएगी। वहीं यह भी ध्यान रखिए कि इंदौर के प्रभारी मंत्री खुद सीएम डॉ. मोहन यादव हैं और वही मप्र के गृहमंत्री भी हैं।
टीआई भागते रहे, डीसीपी पहुंचे नहीं
इस पूरी घटना में शर्मनाक वाक्या तो यह हुआ कि टीआई, एसीपी दौड़ते, भागते, बचते-बचाते रहे और सीनियर अधिकारी मौके पर ही नहीं पहुंचे। खुद जोन के डीसीपी साहब ने मौके पर पहुंचने की जहमत नहीं उठाई, ना ही उनसे बड़े स्तर के अधिकारी पहुंचे। वहीं 200 मीटर पर ही कंट्रोल रूम मौजूद था, वहां से ना कोई बल आया और ना ही चक्काजाम खुलवाने के लिए आंसू गैस व अन्य संसाधन पुलिस लेकर पहुंची। पहुंचे तो एडिशनल डीसीपी अमरेंद्र सिंह, जो वकीलों को यह समझाने के लिए आए कि हम आरोपी अरविंद जैन के साथ मारपीट करने वाले पांच पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर रहे हैं।
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आठ साल पहले भी हो चुका कांड
वकील और पुलिस के बीच आठ साल पहले भी विवाद हुआ था और तब डीआईजी संतोष सिंह ही थे। उस समय भी वकील पर केस हुआ लेकिन आज तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। अब सवाल यही है कि क्या कानून हाथ में लेने वालों के खिलाफ खाकी दबंगता दिखाएगी?
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हाईप्रोफाइल मामलों में चुप्पी, छोटे मामले में हाथ-पैर टूट रहे
सिंह के सीपी पद संभालने के बाद से अभी तक कुछ महीनों में कई हाईप्रोफाइल मामले सामने आए, लेकिन सभी में पुलिस सिंघम की जगह चुप्पी साधने वाली भूमिका में ही रही। छोटे मामलों में आरोपियों के हाथ-पैर तोड़ने (आरोपियों को गिरना बताकर), जुलूस निकालकर 56 इंच का सीना तानने वाली पुलिस बड़े मामलों में चुप है। वहीं, बाणगंगा मामले में तो साफ हो चुका है कि आरोपियों पर पट्टा ही फर्जी बांधा गया। पुलिस कहीं सटोरिए से बुके ले रही है तो कहीं पर ड्रग तस्करों के लिए ही मुखबिरी कर रही है और पुलिस ही कई जगह आरोपी बन रही है, गिरफ्तार हो रही है। कुल मिलाकर, उनके इस कार्यकाल में खाकी पर एक नहीं, कई दाग लग चुके हैं।
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यह देखिए हाईप्रोफाइल मामलों में पुलिस के हाल
- ताई सुमित्रा महाजन के बेटे के शोरूम पर तोड़फोड़, पोते से मारपीट: बीजेपी नेता प्रताप करोसिया के रिश्तेदार का नाम आने पर कमजोर धाराएं लगाई गईं। विरोध के बाद धाराएं बढ़ाई गईं, लेकिन कोर्ट में एक दिन में जमानत मिल गई क्योंकि पुलिस ने आपत्ति ही नहीं ली। आरोपियों का जुलूस निकाला गया, लेकिन 42 कदम बाद ही विरोध होने पर पुलिस लौट गई।
- बीजेपी नेता ने बीआरटीएस कॉरिडोर में 300 वाहनों की रैली निकाली: आईएएस के पत्र के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
- मंत्री के करीबी कन्फेक्शनरी कारोबारी संजय जैसवानी की अब तक गिरफ्तारी नहीं: पुलिस ने तो केस ही नहीं किया। कोर्ट की फटकार के बाद तीन महीने बाद एफआईआर दर्ज की गई।
- कमलेश कालरा के यहां जीतू यादव के समर्थक गुंडों के हमले में भी ठंडी रही पुलिस: जन आक्रोश के बाद आरोपियों को सात दिन बाद पहचाना गया और गिरफ्तारी शुरू हुई। मात्र 21 को ही गिरफ्तार किया गया। जीतू पर आज तक पुलिस ने हाथ नहीं डाला और वॉइस सैंपल की रिपोर्ट के लिए शांत बैठी हुई है।
- कुख्यात आरोपी जन्मदिन आदि पर भारी विज्ञापन दे रहे हैं: इनमें सीएम डॉ. मोहन यादव तक की फोटो लगाई जा रही है, लेकिन कोई एक्शन नहीं।
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