जबलपुर कलेक्टर का ट्रांसफर निरस्तीकरण आदेश रद्द, NHM की सलोनी सिडाना और कलेक्टर दीपक सक्सेना को नोटिस

'द सूत्र' ने NHM के निर्देश पर जबलपुर कलेक्टर द्वारा जारी ट्रांसफर कैंसिल आदेश की खामियां बताईं थी। हाइकोर्ट में ये खामियां सिद्ध हो गई हैं।

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Neel Tiwari
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MP के स्वास्थ्य विभाग में संविदा कर्मियों के ट्रांसफर और कैंसिल मामले में अब कानूनी हस्तक्षेप हुआ है। जबलपुर हाईकोर्ट ने कलेक्टर दीपक सक्सेना के आदेश को अवैध माना। कोर्ट ने आठ कर्मियों के ट्रांसफर रद्द करने के आदेश को स्थगित कर दिया। याचिकाकर्ताओं को भी राहत मिली है। द सूत्र ने पहले बताया था कि कैसे IAS अधिकारी बाबुओं के आदेशों पर आंख मूंदकर साइन कर रहे थे। यहां क्लिक कर पढ़ें वह खबर

गांव से शहर भेजे गए

इस विवाद की जड़ उस ट्रांसफर लिस्ट में है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के कर्मियों को शहरी स्वास्थ्य केंद्रों में स्थानांतरित किया गया था। यह कार्रवाई कलेक्टर की मंजूरी से जिला स्तर पर हुई थी। कुछ दिन बाद NHM भोपाल से एक पत्र के आधार पर इन तबादलों को रद्द कर दिया गया।

गौरतलब है कि NHM के निर्देश में जिस पत्र का उल्लेख किया गया, उसमें कोई स्पष्ट निर्देश नहीं था कि ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में ट्रांसफर नहीं किए जा सकते। इसके बावजूद, जबलपुर कलेक्टर ने उसी आधार पर सभी ट्रांसफर कैंसिल कर दिए। इस पर आठ संविदा कर्मियों ने इसे "गलत तर्कों पर लिया गया फैसला" मानते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

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कोर्ट में खुली हवा हवाई आदेश की पोल

17 जुलाई को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता परितोष गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि कलेक्टर ने बिना नोटिस दिए, बिना किसी सुनवाई के कर्मचारियों को पिछली जगह पर ही भेजने का आदेश पारित कर दिया। इस ट्रांसफर को कैंसिल करने के लिए एचएम से जो निर्देश दिए गए थे और कलेक्टर के द्वारा जो आदेश जारी किया गया। दोनों लेटर्स  में जिस पत्र का हवाला दिया गया था वह भी हवा हवाई था। क्योंकि उसमें ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में हो रहे ट्रांसफरों पर कोई रोक नहीं थी।

5 प्वाइंट्स में समझे पूरी खबर

👉 जबलपुर हाईकोर्ट ने कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा जारी ट्रांसफर कैंसिल आदेश को अवैध मानते हुए उसे स्थगित कर दिया, और आठ कर्मचारियों को राहत दी।

👉 यह विवाद तब उत्पन्न हुआ जब ग्रामीण क्षेत्रों के कर्मियों को शहरी स्वास्थ्य केंद्रों में स्थानांतरित किया गया, और बाद में NHM के पत्र के आधार पर उन ट्रांसफरों को रद्द कर दिया गया।

👉 NHM द्वारा जारी निर्देश में कोई स्पष्ट निषेध नहीं था कि ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में ट्रांसफर नहीं किए जा सकते, फिर भी कलेक्टर ने इसी आधार पर ट्रांसफर रद्द कर दिए।

👉 कोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि कलेक्टर ने बिना नोटिस या सुनवाई के कर्मचारियों के ट्रांसफर कैंसिल कर दिए थे, और जो पत्र हवाले में लिया गया, वह भी काल्पनिक था।

👉 हाईकोर्ट ने NHM की संचालक सलोनी सिडाना और कलेक्टर दीपक सक्सेना से जवाब तलब किया है, और अगली सुनवाई 1 सितंबर 2025 को निर्धारित की गई है।

 

 

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काल्पनिक आदेश पर हुए थे ट्रांसफर कैंसिल 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मध्य प्रदेश की संचालक सलोनी सिडाना ने 4 जुलाई को आदेश जारी किया। इस आदेश में सामान्य प्रशासन के जी पत्र का हवाला दिया गया था। पत्र क्रमांक 6-1/2024/एक/9 और दिनांक 29.4.2025 बताया गया था। इसके आधार पर NHM ने कलेक्टर से 17 जून 2025 को सभी ट्रांसफर रद्द करने का अनुरोध किया। हालांकि, पत्र क्रमांक 29 अप्रैल को नहीं, बल्कि 30 जून 2025 को जारी किया गया था। इसमें केवल ट्रांसफर पर प्रतिबंध की छूट 10 जून से लागू होने की जानकारी थी। इसमें ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में ट्रांसफर पर कोई रोक नहीं थी।

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जबलपुर कलेक्टर का आदेश कोर्ट ने किया रद्द

जस्टिस मनिंदर एस. भट्टी की सिंगल बेंच ने प्राथमिक सुनवाई के आधार पर ट्रांसफर निरस्त करने के कारणों को गलत ठहराया। कोर्ट ने 8 जुलाई 2025 को कलेक्टर द्वारा जारी ट्रांसफर कैंसिल आदेश को स्थगित कर दिया। इसके साथ ही कर्मचारियों को राहत देते हुए, अगली सुनवाई तक उन्हें नए ट्रांसफर स्थान पर कार्यरत रहने की छूट दी।

अब सलोनी सिडाना और कलेक्टर से जवाब तलब

हाईकोर्ट ने इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए NHM की संचालक सलोनी सिडाना और जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 1 सितंबर 2025 को निर्धारित की गई है।

प्रशासनिक जल्दबाजी से बनी कानूनी उलझन

इस घटनाक्रम ने यह साबित किया है कि बिना नियमों और लेटर्स को समझे लिए गए प्रशासनिक निर्णय कर्मचारियों के भविष्य को खतरे में डालते हैं। संविदा स्वास्थ्य कर्मी पहले से ही अस्थिर और असुरक्षित नौकरी की स्थिति में रहते हैं। ऐसे आदेश उनकी स्थिति को और जटिल बना देते हैं।

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