स्टेट सिविल सप्लाई कारपोरेशन के डिस्ट्रिक्ट मैनेजर दिलीप किरार पर परिवहन घोटाले का आरोप, ईओडब्ल्यू ने दर्ज किया मामला

जबलपुर में EOW ने मध्यप्रदेश स्टेट सिविल सप्लाई कारपोरेशन में 42 लाख के घोटाले का पर्दाफाश किया। तत्कालीन जिला प्रबंधक दिलीप किरार और M/s JMR Agency के राकेश रजवारी ने मिलकर खाद्यान्न परिवहन अनुबंधों में गड़बड़ियां कीं, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ।

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Neel Tiwari
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Photograph: (The Sootr)

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JABALPUR. जबलपुर में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने एक बड़ा खुलासा करते हुए मध्यप्रदेश स्टेट सिविल सप्लाई कारपोरेशन में हुए कई लाख के लेन-देन से जुड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है। इस मामले में निगम के तत्कालीन जिला प्रबंधक दिलीप किरार (सेवानिवृत्त) और निजी एजेंसी M/s JMR Agency के संचालक राकेश रजवारी को मुख्य आरोपी बनाया गया है।

जांच में सामने आया है कि दोनों ने मिलकर योजनाबद्ध तरीके से खाद्यान्न परिवहन अनुबंधों में अनियमितता कर 42 लाख 7 हजार 638 रुपए की हेराफेरी की। इस मामले ने न केवल विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि यह भी दिखाया है कि जनता की बुनियादी जरूरतों से जुड़ी व्यवस्थाओं में किस तरह भ्रष्टाचार पनप रहा है।

मुनाफा कमाने सैकड़ों किलोमीटर दूर दिखाई समितियां

EOW की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि तत्कालीन जिला प्रबंधक दिलीप किरार ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए निजी एजेंसी संचालक राकेश रजवारी के साथ मिलीभगत की। खाद्यान्न परिवहन का काम देने के लिए किए गए अनुबंधों में जानबूझकर गड़बड़ियां की गईं। जबलपुर और छपरा जैसे नजदीकी इलाकों की खाद्यान्न समितियों को कागजों में दूर स्थित दिखाया गया।

ऐसा करने के पीछे उद्देश्य यह था कि परिवहन खर्च को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा सके। कागजों में यह दूरी अधिक दिखाकर एजेंसी को भुगतान कराया गया, जबकि हकीकत में सप्लाई नजदीक से हो रही थी। इस तरीके से सरकारी खजाने को सीधे तौर पर लाखों का चूना लगाया गया।

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अनुबंध से लेकर ट्रांसपोर्ट की दूरी और बिलों में फर्जीवाड़ा 

जांच में यह तथ्य भी सामने आए कि वर्ष 2023 से 2025 के बीच किए गए दूध परिवहन अनुबंध पूरी तरह से मनमाने तरीके से बनाए गए थे। ट्रांसपोर्ट के आर्डर जारी कर कछपुरा की जगह गोसलपुर रैक से परिवहन कराया गया। कई समितियां जो कारखानों और डेयरियों से महज कुछ किलोमीटर दूर थीं, उन्हें 100-150 किलोमीटर दूर दर्शाया गया और कई बार जानकर दूर के रैक से माल उठाया गया।

बार-बार एक ही सप्लाई पॉइंट के लिए अलग-अलग बिल तैयार कराए गए और भुगतान हासिल किया गया। परिवहन अनुबंध की शर्तों का पालन किए बिना सीधे एजेंसी के पक्ष में निर्णय दिए गए। इन सबमें तत्कालीन जिला प्रबंधक की सीधी भूमिका रही, जिन्होंने बिना जांच-पड़ताल किए दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए। यह स्पष्ट करता है कि यह घोटाला एक सुनियोजित साजिश थी।

खाद्यान्न परिवहन घोटाला : पूरी खबर को 5 पॉइंट्स में ऐसे समझें... 

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घोटाले का खुलासा: EOW ने जबलपुर में मध्यप्रदेश स्टेट सिविल सप्लाई कारपोरेशन में 42 लाख रुपए के घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसमें दिलीप किरार और राकेश रजवारी मुख्य आरोपी हैं।
मुनाफा कमाने के लिए गड़बड़ी: आरोपियों ने खाद्यान्न परिवहन अनुबंधों में जानबूझकर गड़बड़ियां की, नजदीकी समितियों को कागजों में दूर दिखाकर परिवहन खर्च बढ़ाया और सरकारी खजाने को चूना लगाया।
फर्जीवाड़ा और बिलों में धोखाधड़ी: ट्रांसपोर्ट के आर्डर में दूर के रैक से माल उठाने और बार-बार एक ही सप्लाई के लिए अलग-अलग बिल तैयार करने से धोखाधड़ी की गई।
कानूनी कार्रवाई: EOW ने भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दिलीप किरार और राकेश रजवारी के खिलाफ मामला दर्ज किया है। जांच में अन्य आरोपियों के नाम सामने आने की संभावना है।
घोटाले का असर आम जनता पर: खाद्यान्न की आपूर्ति व्यवस्था में भ्रष्टाचार के कारण गरीबों और किसानों को सही मूल्य और समय पर सप्लाई नहीं मिली, जिससे आम जनता का विश्वास टूट गया।

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EOW ने दर्ज किया मामला

खाद्यान्न घोटाला : आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ने दिलीप किरार और राकेश रजवारी के खिलाफ 316(5), 61(2)ए भारतीय न्याय संहिता, धारा 7(सी) भ्र.नि.अ.1988 संषो. 2018 के तहत मामला दर्ज किया है। एफआईआर दर्ज होने के बाद अब दोनों आरोपियों पर कानूनी शिकंजा कस गया है।

EOW अधिकारियों का कहना है कि घोटाले की गहराई इतनी ज्यादा है कि जांच आगे बढ़ने पर कई और नाम सामने आ सकते हैं। इस वजह से न केवल आरोपियों की गतिविधियों बल्कि उनकी संपत्ति और बैंक खातों की भी गहन पड़ताल शुरू कर दी गई है।

खाद्यान्न परिवहन में भी मुनाफा कमा रहे भ्रष्टाचारी

यह मामला केवल पैसों की हेराफेरी तक सीमित नहीं है। गरीबों के खाद्यान्न जैसी आवश्यक वस्तु की आपूर्ति व्यवस्था में हुए भ्रष्टाचार ने आम जनता का विश्वास भी तोड़ा है। जिस विभाग का उद्देश्य आम लोगों तक जरूरत की चीजें ईमानदारी से पहुंचाना है, उसी विभाग में बैठे अफसर और ठेकेदार सांठगांठ कर सरकारी खजाने को चूना लगाने में लगे हुए थे।

इसका असर सीधा-सीधा ग्रामीण किसानों और उपभोक्ताओं पर पड़ा, जिन्हें सही मूल्य और समय पर सप्लाई नहीं मिल पाई। इस तरह का घोटाला यह सवाल उठाता है कि आखिर गरीब और किसान की मेहनत की फसल किस तरह अफसर और ठेकेदारों की जेब में चला गया।

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