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जबलपुर हाईकोर्ट में मध्य प्रदेश ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण (MPRRDA) सिवनी के पूर्व महाप्रबंधक अजय सिंह रघुवंशी द्वारा एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में उन्होंने मुख्य कार्यपालन अधिकारी (CEO) MPRRDA भोपाल द्वारा जारी आरोप पत्र की वैधानिकता को चुनौती दी थी। अब मामले में हाईकोर्ट ने विभागीय कार्यवाही में हस्तक्षेप करने के लिए उपयुक्त कारण न पाए जाने पर याचिका को खारिज कर दिया है।
विभागीय जांच के खिलाफ दायर की गई याचिका
दरअसल, MPRRDA सिवनी के पूर्व महाप्रबंधक अजय सिंह रघुवंशी ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी एमपीआरआरडीए भोपाल के द्वारा जारी एक आरोप पत्र के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें उन्होंने बताया है कि बरबसपुर सोनावारा अमर नाला मार्ग पर निर्मित पुल अधिक बारिश के कारण अगस्त 2020 में बह गया था, जिसकी उच्च स्तरीय जांच की गई थी, जिसमें उन पर परियोजना के निर्माण के लिए तैयार की गई डीपीआर में जल प्रवाह क्षेत्र की गणना गलत किए जाने का आरोप लगाया गया था और महाप्रबंधक पीआईयू II होने के नाते उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया था। इसके बाद से उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू हो गई थी। जिसके खिलाफ कोर्ट से इस विभागीय कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई गई।
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याचिकाकर्ता ने तैयार नहीं किया डीपीआर
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट में बताया गया कि याचिकाकर्ता मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड में बतौर कार्यपालन यंत्री(सिविल) के रूप में कार्यरत था। 2008 में उसकी प्रति नियुक्ति कर उसे मध्य प्रदेश ग्रामीण सड़क विकास ने महाप्रबंधक के रूप में पदस्थ किया गया था। याचिकाकर्ता पीआईयू I सिवनी में महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत थे। उन्हें पीआईयू II का प्रभार 19 दिसंबर 2017 से 5 मई 2018 तक दिया गया था। पुल निर्माण में जल ग्रहण करने संबंधी डीपीआर 12 नवंबर 2017 से पहले एजेंसियों के द्वारा तैयार कर इसका निरीक्षण भी महाप्रबंधक एवं राज्य तकनीकी एजेंसी जबलपुर के द्वारा किया गया था, जो की याचिकाकर्ता के पदभार संभालने से पहले हो गया था।
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डीपीआर तैयार करने में भूमिका नहीं
डीपीआर के आधार पर मुख्य महाप्रबंधक के द्वारा 29 जनवरी 2018 को तकनीकी स्वीकृति जारी की गई जिसे 14 मई 2018 को निरस्त कर दिया गया था, और उसी दिन संशोधित तकनीकी स्वीकृति प्रदान कर दी गई थी। संशोधित तकनीकी स्वीकृति के आधार पर पुल का निर्माण किया गया जबकि याचिकाकर्ता 5 मई 2018 को महाप्रबंधक पीआईयू II सिवनी के प्रभार से मुक्त कर दिया गया था और इसके बाद संशोधित तकनीकी स्वीकृति प्रदान की गई इसलिए संशोधन तकनीकी स्वीकृति जारी करने और पुनर्निर्माण संबंधी डीपीआर तैयार करने में याचिकाकर्ता की कोई भी भूमिका नहीं है।
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महाप्रबंधक ने की संशोधित डीपीआर की जांच
प्रतिवादियों की ओर से मौजूद अधिवक्ता विजयेंद्र सिंह चौधरी ने बताया कि याचिकाकर्ता 19 दिसंबर 2017 को पीईयू II सिवनी में महाप्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया था। जिसके बाद याचिकाकर्ता के द्वारा हस्ताक्षरित डीपीआर की जांच और डीपीआर को महाप्रबंधक के रूप में STM के समक्ष अंडरटेकिंग के लिए प्रस्तुत किया गया था कि उन्होंने डीपीआर की जांच की है, इसलिए याचिकाकर्ता ने डीपीआर की तैयारी और डीपीआर के अनुमोदन की भूमिका निभाई है। इसके बाद उन पर विभागीय जांच शुरू की गई। जांच में यह पता चला कि संशोधित डीपीआर 30 अप्रैल 2018 को प्रस्तुत की गई थी जिसे महाप्रबंधक पीआईयू II सिवनी की क्षमता में जांचने के बाद याचिकाकर्ता के द्वारा हस्ताक्षर किया गया था जिसके आधार पर संशोधित तकनीकी स्वीकृति प्रदान की गई थी।
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कोर्ट ने याचिका को किया खारिज
इस याचिका पर सुनवाई जस्टिस विनय सराफ की सिंगल बेंच में हुई जिसमें उन्होंने माना की याचिकाकर्ता के द्वारा 30 अप्रैल 2018 को संशोधित डीपीआर पर जांच के बाद हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके आधार पर ही 14 मई 2018 को संशोधित डीपीआर लागू किया गया और पुल का निर्माण किया गया है, लेकिन याचिकाकर्ता के द्वारा दिया गया तर्क कि उन्होंने 5 मई 2018 तक कार्य किया है यह उनके लिए मददगार नहीं है। परिणाम स्वरुप कोर्ट को विभागीय जांच और कार्रवाई में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है इसलिए विभागीय कार्यवाही में हस्तक्षेप करने का यह उपयुक्त मामला नहीं है। साथ ही विभागीय जांच लंबित है इसलिए जांच अधिकारी उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस पर विचार करेंगे।लिहाजा इस याचिका को खारिज किया जाता है।