नील तिवारी@JABALPUR. जबलपुर हाईकोर्ट ने मऊगंज जिले में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए निजी जमीन पर कब्जा करने के मामले में सरकार और लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर को फटकार लगाई। साथ ही निजी जमीन से सड़क हटाए जाने तक भूमि मालिक को 15 हजार प्रतिदिन हर्जाना देने का आदेश दिया है। इस हर्जाने की भरपाई जनता के टैक्स के पैसे से नहीं बल्कि इंजीनियर के वेतन से काट कर भुगतान करने का भी आदेश दिया। कोर्ट ने 25 हजार रुपए की कास्ट लगाई जो एक माह के अंदर जमा करनी होगी।
जानें क्या है पूरा मामला
दरअसल, मऊगंज जिले की कुलबहेरिया ग्राम पंचायत में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत सड़क निर्माण कार्य चल रहा है। इस दौरान भास्करदत्त द्विवेदी की निजी जमीन पर सड़क का कुछ हिस्सा बना दिया गया। इस जमीन का सरकार द्वारा अधिग्रहण नहीं किया गया, बल्कि कब्जा कर रोड का काम शुरू कर दिया गया। अब इस मामले में लगी भूमि मालिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने सरकार सहित पीडब्ल्यूडी के रीवा डिवीजन के एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को जमकर फटकार लगाई। साथ ही याचिकाकर्ता को 15 हजार रुपए प्रतिदिन हर्जाना देने का आदेश दिया। इस हर्जाने की भरपाई जनता के द्वारा दिए गए टैक्स के पैसे से नहीं बल्कि इस इंजीनियर के वेतन से काट कर भुगतान करने का भी आदेश दिया।
निर्माण कार्य पर लगाया स्टे
भास्करदत्त द्विवेदी की दायर याचिका पिछली सुनवाई में सरकार की ओर से यह माना गया था कि जिस जगह पर इस सड़क का निर्माण हो रहा है, वह याचिकाकर्ता की ही निजी जमीन है। इसके बाद मंगलवार को न्यायालय के आदेश पर निर्माण कार्य पर स्टे लगा दिया गया था। साथ ही सड़क निर्माण के लिए निजी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने का आदेश पारित किया गया था।
मुख्य सचिव को दिए कार्रवाई के आदेश
बुधवार को हुई सुनवाई में शासन की ओर से वकील स्वाति असीम जॉर्ज ने यह आश्वासन दिया कि उन्होंने निजी जमीन को मुक्त करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी से फोन पर बात कर ली है। जब पीडब्ल्यूडी विभाग के एक्सीक्यूटिव इंजीनियर मनोज कुमार द्विवेदी से न्यायालय ने इसकी पुष्टि चाहिए तो उन्होंने बताया कि वह जमीन काफी समय से सड़क के रूप में इस्तेमाल होती है, इसलिए उससे कब्जा नहीं हटाया गया। पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर को इस बात का शायद एहसास नहीं था कि यह कहकर उन्होंने न्यायालय के पिछले आदेश की अवहेलना की है। इस बात पर शासकीय वकील से पक्ष जानने पर उन्होंने न्यायालय को बताया कि इंजीनियर को समझने में कुछ गलती हो गई पर न्यायालय ने यह जवाब रिजेक्ट कर दिया।
इंजीनियर को लगाई फटकार
कोर्ट ने आदेश में लिखा कि एक्सीक्यूटिव इंजीनियर का यह कहना कि यह सड़क पिछले 40 से 50 साल से मौजूद है, इसलिए उन्हे अधिकार है कि नई सड़क का निर्माण कर सके। इससे स्पष्ट है कि यह आदेश के प्रति अज्ञान नहीं, बल्कि न्यायालय और एडवोकेट जनरल ऑफिस से जारी आदेश कि अवहेलना कर रहे हैं। जस्टिस जीएस आहलूवालिया ने आदेश में लिखा कि यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि सिविल सेवकों को महाधिवक्ता कार्यालय के आदेश का महत्व नहीं है जो एक संवैधानिक प्राधिकार है, और वे अपनी मनमर्जी अनुसार अवैध गतिविधि को अंजाम दे रहे हैं। इसके साथ ही न्यायालय ने मध्यप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को एक्सीक्यूटिव इंजीनियर पर तत्काल कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं।
ऐसे अधिकारियों को जेल दो भेज...
सुनवाई के दौरान जस्टिस अहलूवालिया ने कहा कि एडवोकेट जनरल के ऑफिस से निर्देश जारी किए गए थे और यदि शासकीय अधिवक्ता यह मान रहे हैं कि इस अधिकारी मनोज कुमार द्विवेदी को आदेश समझ में नहीं आया तो क्यों ना इसे जेल भेज दिया जाए। आगे जस्टिस ने कहा कि यह अभी भी सरकारी आवास में रह रहे हैं और जेल भी सरकारी आवास ही है।
निजी जमीन से सड़क हटने तक प्रतिदिन हर्जाना देना होगा
सुनवाई के दौरान जस्टिस अहलूवालिया ने निजी जमीन को अतिक्रमण मुक्त करने के आदेश देते हुए पीडब्ल्यूडी विभाग को निर्देश दिया कि जब तक सड़क को पूरी तरह से निजी जमीन से हटाया नहीं जाता तब तक याचिकाकर्ता को प्रतिदिन 15 हजार रुपए की दर से हर्जाना दिया जाए और इस हर्जाने की भरपाई शासन के खाते से नहीं बल्कि इस इंजीनियर के वेतन से कटौती कर की जाए। जिसकी रिपोर्ट भी पीडब्ल्यूडी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी 31 मई तक कोर्ट को सौंपनी होगी।
लगाई 25 हजार रुपए की कास्ट
इसके साथ ही कोर्ट ने 25 हजार रुपए की कास्ट लगाई जो एक माह के अंदर जमा करनी होगी। इसके साथ ही कोर्ट ने एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को कारण बताओ नोटिस जारी करने के आदेश दिए हैं कि न्यायालय के 21 मई के आदेश कि अवहेलना करने पर क्यों ना उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना का मुकदमा चलाया जाए।
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