मध्यप्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने अनूपपुर निवासी हरि कीर्तन शाह की सजा को 20 साल से घटाकर 5 साल कर दिया। युगलपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि केवल छेड़छाड़ को पाक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने यह निर्णय पीड़िता के बयान और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर लिया, जिसमें यौन शोषण की पुष्टि नहीं हुई थी। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्रा की पीठ ने पुनरीक्षण याचिका पर यह आदेश दिया।
छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न में अंतर...
छेड़छाड़ क्या है:
छेड़छाड़ से तात्पर्य है किसी व्यक्ति को बिना उसकी सहमति के छूना, छेड़ना या अनुचित व्यवहार करना। यह शारीरिक सीमा का उल्लंघन है, लेकिन आवश्यक नहीं कि यौन उत्पीड़न के तहत आए।
यौन उत्पीड़न की परिभाषा:
यौन उत्पीड़न में शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक शोषण शामिल होता है जिसमें पीड़िता के निजी अंगों या यौन संबंधी गतिविधि का संलिप्त होना जरूरी होता है।
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कोर्ट का मेडिकल रिपोर्ट और पीड़िता के बयान पर जोर
- पीड़िता ने स्पष्ट किया कि छेड़छाड़ हुई लेकिन यौन शोषण नहीं।
- मेडिकल जांच में निजी अंगों पर कोई चोट के निशान नहीं मिले।
- ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड से यह साफ हुआ कि यौन शोषण के ठोस प्रमाण नहीं थे।
इस आधार पर कोर्ट ने सजा घटाने का निर्णय लिया।
पुनरीक्षण याचिका में क्या तर्क दिया गया?
हरि कीर्तन शाह ने अपनी पुनरीक्षण याचिका में यह दलील दी कि उन्हें एससी-एसटी एक्ट के तहत झूठे आरोपों से बचाने के लिए पहले से पुलिस को शिकायत थी। उन्होंने कोर्ट से उचित न्याय की गुहार लगाई।
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हाईकोर्ट का आदेश और समाज पर असर
हाईकोर्ट का यह फैसला छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के बीच स्पष्ट अंतर दर्शाता है। यह निर्णय कानून की सही समझ और संवेदनशीलता को दर्शाता है। साथ ही, यह न्याय व्यवस्था में संतुलन और साक्ष्य की महत्ता पर जोर देता है।