करोड़ों की सरकारी जमीन पर हो रहा कब्जा और कुछ फुट के लिए 30 साल से कोर्ट में संघर्ष

जबलपुर हाईकोर्ट ने शासन द्वारा 30 सालों से जारी एक भूमि विवाद को लेकर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने तहसीलदार और पटवारी द्वारा तैयार किए गए पंचनामे को गलत ठहराया और शासन से इस मामले का त्वरित समाधान करने का आदेश दिया है।

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Neel Tiwari
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jabalpur high court rules against government 30 year long land dispute case
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जबलपुर हाईकोर्ट में शासन द्वारा महज कुछ वर्ग फीट जमीन के लिए लगातार 30 सालों से संघर्ष करने पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। कोर्ट के द्वारा तहसीलदार और पटवारी के द्वारा बनाए गए पंचनामे को भी गलत ठहराए जाने के कोर्ट के आदेश को सही बताया गया है। जिसमें जिन तहसीलदार और पटवारी के खिलाफ आदेश जारी किया गया था उन्हीं के द्वारा पंचनामा तैयार किया गया है। कोर्ट के द्वारा शासन से मामले को आगे ना टालते हुए अगली सुनवाई में मामले के निपटारा किया जाने पर जोर दिया है।

जमीन पर कब्जा करने का मामला

मध्य प्रदेश में सतना जिले के रघुराजनगर तहसील अंतर्गत गांव माधवगढ़ के निवासी दिवंगत बृजनंदन तिवारी और उनके परिजनों के द्वारा एक सिविल सूट दायर किया गया था। जिसमें उन्होंने बताया कि केंद्रीय जेल सतना के अधिकारियों के द्वारा उनकी जमीन पर जबरन कब्जा कर उस पर शासकीय क्वाटर बना लिए गए हैं। जिसके बाद संबंधित जगहों पर भू-स्वामी के द्वारा कई बार आवेदन दिए जाने के बाद किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हुई। कार्रवाई न होता देख भू स्वामियों के द्वारा सिविल सूट दायर किया गया जिसमें वर्ष 1994 में एक डिक्री पास हुई जिसमें यह फैसला हो गया कि 6.25 x 4 जरीफ की भूमि पक्षकार( भू स्वामियों) की है जिसे वापस लौटते हुए उन्हें कब्जा दिलाया जाए।

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शासन के द्वारा आदेश के खिलाफ की गई अपील

इस सिविल रिवीजन याचिका में पक्षकार के अधिवक्ता संतोष कुमार पाठक ने बताया कि शासन के द्वारा लगातार मामले को टाला जा रहा है। शासन के द्वारा साल 1994 में पास डिक्री में हुए आदेश जिसमें पक्षकार (भू स्वामी) को 49/2 क में मौजूद 6.25 बाय 4 जरीफ (लगभग 1500 वर्ग फीट) भूमि दिए जाने के सिविल सूट के आदेश के खिलाफ अपील की गई, जिसे साल 1996 में खारिज कर दिया गया। जिसके बाद पुनः आदेश के खिलाफ 2003 में अपील की गई जिसे भी खारिज कर दिया गया। शासन के द्वारा दोनों अपीलों के खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में साल 2005 में रिट याचिका दायर की गई जिसे 2011 में सिविल सूट में पारित आदेश के रिवीजन करवाए जाने की स्वतंत्रता होने के आदेश के साथ इस याचिका को भी खारिज कर दिया गया। आखिरकार सिविल सूट के द्वारा पारित आदेश को निष्पादित किए जाने के लिए 2016 में सिविल रिवीजन याचिका दायर की गई।

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लगातार सुनवाई टालने पर हाईकोर्ट सख्त

अधिवक्ता संतोष कुमार पाठक ने बताया कि सिंगल बेंच में हुई सुनवाई के दौरान शासन की तरफ मौजूद अधिवक्ता के द्वारा इस सिविल रिवीजन में अगली सुनवाई में आदेश किए जाने के लिए समय मांग कर सुनवाई को टालने की कोशिश की गई जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए आज ही बहस किए जाने पर जोर दिया गया। जिस पर शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि पंचनामा तैयार किया जा चुका है और इन्हें जमीन दे दी गई है। जिस पर पक्षकार की तरफ से पक्ष रखते हुए यह बताया गया की जमीन अभी नहीं मिली है और बनाया गया पंचनामा भी फर्जी है। जिस पर कोर्ट के द्वारा पूछा गया कि क्या पंचनामा भगवान द्वारा तैयार किया गया है?... क्योंकि जिस तहसीलदार के खिलाफ आदेश हुए हैं उसी के द्वारा पंचनामा बनाया गया है। साथ ही पूछा गया कि इस पर कोर्ट के द्वारा क्या किया गया तब शासकीय अधिवक्ता ने बताया कि कोर्ट के द्वारा इसे खारिज कर दिया गया है।

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कोर्ट ने की तीखी व्यंग्यात्मक टिप्पणियां

इस सिविल रिवीजन पर सुनवाई के दौरान कोर्ट के द्वारा तैयार किए गए पंचनामे पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा गया कि क्या पंचनामा भगवान के द्वारा तैयार किया गया है, क्योंकि जिस तहसीलदार और पटवारी के खिलाफ आदेश हुए हैं उसी के द्वारा पंचनामा तैयार किया गया है। साथ ही शासकीय अधिवक्ता से कहा कि व्यर्थ के मामलों में 30 ,35 सालों का समय बर्बाद कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हजारों करोड़ों की जमीनों पर लोगों के द्वारा कब्जा किया गया है उन पर लड़ाई नहीं लड़ रहे हो। इसके अलावा बेईमानी यदि करनी ही है तो जांच और नाप करने वाले आप ही है कहीं से भी जरीफ खींच कर आप पक्षकार को जमीन दे सकते हैं।

टॉप ऑफ द लिस्ट होगी मामले की सुनवाई

इस सिविल रिवीजन पर सुनवाई जस्टिस द्वारकाधीश बंसल (Justice Dwarkadhish Bansal) की सिंगल बेंच में हुई जिसमें उन्होंने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि तहसीलदार या पटवारी के द्वारा पंचनामे को पास कर देना यह अच्छी बात नहीं है वह कोई भगवान तो नहीं हैं। जगदीश पंचनामे को  सिविल कोर्ट के द्वारा भी अप्रूव नहीं किया गया है। उन्होंने शासकीय अधिवक्ता से कहा कि इस सिविल रिवीजन को विड्रॉ करके एग्जीक्यूशन में एक आवेदन लगाइए और डिक्री में मौजूद जमीन को पक्षकार को दीजिए। जिस पर शासन की ओर से अधिवक्ता ने पक्ष रखते हुए इस संबंध में OIC से बात किए जाने को कहा जिस पर कोर्ट के द्वारा एक दिन का समय दिया गया है और सुनवाई के लिए 6 मार्च 2025 को टॉप ऑफ द लिस्ट रखा गया है और शासन को हिदायत भी दी गई है कि कल इस मामले में सुनवाई की जान तय है।

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