हाईकोर्ट में जिलाबदर आदेश पर कलेक्टर-SP पर जुर्माने की खबर निकली झूठी, अब सुनवाई 11 मार्च को

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जबलपुर कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के खिलाफ जुर्माने की खबरें गलत साबित हुई हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता ने कुछ महत्वपूर्ण तथ्य छुपाए थे, और मामले की अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी।

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Neel Tiwari
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jabalpur high court SP and Collector fine fake news

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना और पुलिस अधीक्षक (एसपी) संपत उपाध्याय के खिलाफ 50 हजार रुपए के जुर्माने की खबरें गलत साबित हुई हैं। जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने 6 मार्च को सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा कुछ महत्वपूर्ण तथ्य छुपाए गए थे, जिसके चलते अब इस मामले की सुनवाई 11 मार्च 2025 को जारी रहेगी।

जिला बदर करने से जुड़ा हुआ था मामला

दरअसल, जबलपुर कलेक्टर ने 24 अक्टूबर 2024 को लमती निवासी संतोष पटेल के खिलाफ जिलाबदर आदेश जारी किया था। संतोष पटेल पर कुल 13 अपराध दर्ज हैं, जिनमें शराब बिक्री और जुआ-सट्टा जैसे मामले शामिल हैं, हालांकि इनमें कोई गंभीर अपराध नहीं है। इस आदेश को संतोष पटेल ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें तर्क दिया गया कि यह कार्रवाई राजनीतिक दबाव में की गई थी और कानून के अनुरूप नहीं थी।

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मीडिया में फैली गलत खबर

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि हाईकोर्ट ने जिलाबदर आदेश को निरस्त कर दिया है और कलेक्टर-एसपी पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। हालांकि, कोर्ट के लिखित आदेश में ऐसा कुछ नहीं था। बल्कि, कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने कुछ तथ्य छुपाए थे, जिससे मामले में आगे सुनवाई जरूरी है। हालांकि इस मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से यह पक्ष सामने आ रहा है कि प्रारंभिक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मौखिक रूप से यह टिप्पणी की थी जिसमें जमाने की बात थी, लेकिन उसके बाद कोर्ट के समक्ष ऐसे क्या तथ्य सामने आए जिसके बाद यह आदेश जारी हुआ है इसके बारे में 11 मार्च को ही अधिक जानकारी मिल सकेगी।

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अभी बाकी है मामले की सुनवाई

इस मामले की अगली सुनवाई 11 मार्च 2025 को होगी, जिसमें कोर्ट यह तय करेगा कि जिलाबदर आदेश को सही ठहराया जाए या इसे निरस्त किया जाए। फिलहाल, कलेक्टर और एसपी पर किसी भी प्रकार का जुर्माना नहीं लगाया गया है, और जिलाबदर आदेश पर अंतिम निर्णय लंबित है। इस प्रकरण में बिना आधिकारिक पुष्टि के फैली खबरों ने प्रशासन और न्यायपालिका की छवि पर असर डालने का प्रयास किया है। अब सभी की नजरें 11 मार्च की सुनवाई पर टिकी हैं, जब हाईकोर्ट इस मामले में अंतिम निर्णय ले सकता है।

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