बैतूल में 110 करोड़ की सरकारी जमीन लीज मामले में 151 परिवारों को हाईकोर्ट से राहत

मध्य प्रदेश के बैतूल में चर्च के नाम पर लीज पर ली गई जमीन पर बनीं दुकानों के मामले में प्रशासन से लीज रद्द होने के बाद, उस जगह से बेदखल किए जाने वाले परिवारों को हाईकोर्ट से राहत मिली है। कोर्ट ने 151 परिवारों के बेदखली पर रोक लगा दी है। जानें पूरा मामला

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Neel Tiwari
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jabalpur High court heard Betul government land lease case

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।

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JABALPUR. मध्य प्रदेश के बैतूल में 90 साल पुरानी लीज का बड़ा घोटाला सामने आया था जिसमें शैक्षणिक और आवासीय उद्देश्यों के लिए दी गई सरकारी जमीन पर अवैध रूप से शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और दुकानें बना दी गईं और उन्हें बेच दिया गया था। जिला प्रशासन ने लीज शर्तों के उल्लंघन पर कार्रवाई करते हुए इसे निरस्त कर दिया और 110 करोड़ रुपए मूल्य की इस भूमि को फिर से सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया था। लेकिन इस मामले ने एक नया मोड़ तब लिया, जब इस भूमि पर रहने वाले 151 परिवारों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपने बेदखली आदेश पर रोक लगाने की मांग की। हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए प्रशासन को बेदखली पर रोक लगाने और विस्थापित परिवारों की अपील पर विचार करने का आदेश दिया है।

लीज की जमीन के व्यावसायिक उपयोग का मामला

यह पूरा मामला तब सामने आया था जब बैतूल के नजूल अधिकारी ने खुद संज्ञान लेते हुए इस प्रकरण को एडीएम कोर्ट में दर्ज कराया। जांच के दौरान पता चला था कि दि इवेंजलिकल लूथरन चर्च इन मध्य प्रदेश (ELC) को सरकार द्वारा स्कूल और आवासीय उद्देश्यों के लिए दी गई 224, 680 वर्ग फुट भूमि का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा था।

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सरकार ने लीज पर दी थी जमीन

दरअसल, साल 1914 में चर्च बना और 1930 में स्कूल की स्थापना हुई। सरकार ने इस जमीन को लीज पर दिया था, जिसे 1995 तक के लिए नवीनीकृत किया गया और बाद में इसे 2025 तक बढ़ा दिया गया। लेकिन धीरे-धीरे यह जमीन व्यावसायिक केंद्र में बदल गई, और संस्था के प्रमुख पदाधिकारियों ने भूमाफिया से मिलकर यहां शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और 22 दुकानों का निर्माण करवा दिया। जांच में यह भी पता चला था कि 4,275 वर्ग फुट पर बनी दुकानों को 25-25 लाख रुपये में बेचा गया। 

घोटाले में ईओडब्ल्यू ने दर्ज किया केस

इसके बाद इस मामले में अपर कलेक्टर ने लीज को निरस्त करते हुए भूमि को रिकॉर्ड में शासकीय भूमि के नाम पर दर्ज करवाया था। इस घोटाले में ईओडब्ल्यू के द्वारा भी प्रकरण दर्ज किया गया था, जिसमें मुकेश मोजेस, सुरेंद्र कुमार सुझा, जॉर्ज थॉमस विश्वास, अशोक चौकसे, अनिल मार्टिन, नितिन सहाय सहित अन्य नामचीन लोगों के नाम शामिल हैं, जिन्होंने इस सरकारी जमीन को भूमाफिया के साथ मिलकर बेचा और करोड़ों की अवैध संपत्ति बनाई थी।

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बेदखली से सैकड़ो परिवारों का जीवन होगा प्रभावित

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने कोर्ट में दलील दी कि बैतूल जिले के नजूल शीट क्रमांक 12, प्लॉट क्रमांक 7/1, कुल क्षेत्रफल 2,23,515 वर्ग फुट पर 151 परिवार पिछले कई वर्षों से निवास कर रहे हैं। प्रशासन द्वारा हाल ही में इस भूमि को सरकारी नजूल भूमि घोषित कर दिया गया और इसे अवैध अतिक्रमण के रूप में चिन्हित कर बेदखली की प्रक्रिया शुरू करने की योजना बनाई गई। यह भूमि कई दशकों से इन 151 परिवारों का घर रही है और अगर उन्हें तुरंत बेदखल कर दिया गया तो वे बेघर हो जाएंगे।

प्रशासन ने परिवारों के हक को किया नजरअंदाज

उन्होंने तर्क दिया कि सरकार को यह समझना चाहिए कि इतने बड़े पैमाने पर विस्थापन करने से सैकड़ों लोग प्रभावित होंगे और इससे सामाजिक असंतोष उत्पन्न हो सकता है। अधिवक्ता ने आगे कहा कि यदि कोर्ट से कोई अंतरिम राहत नहीं मिलती है, तो प्रशासन किसी भी समय कार्यवाही कर सकता है और यह 151 परिवारों के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि प्रशासन ने उनके हक को नजरअंदाज करते हुए उन्हें अतिक्रमणकारी घोषित कर दिया, जबकि वे लंबे समय से इस भूमि पर निवास कर रहे हैं और इसे वैध रूप से नियमित करने की प्रक्रिया की मांग कर रहे हैं। 

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मामले में सरकार का पक्ष

वहीं राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता ब्रह्मदत्त सिंह ने कोर्ट में पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास मध्य प्रदेश नजूल भूमि विमोचन निर्देश, 2020 के तहत उच्च प्राधिकारी के समक्ष अपील करने का विकल्प मौजूद है।  उन्होंने तर्क दिया कि इस प्रावधान के तहत प्रभावित परिवार अपने मामले को कानूनी रूप से प्रस्तुत कर सकते हैं और इस प्रक्रिया के तहत उन्हें उचित समाधान दिया जाएगा। सरकार ने कोर्ट को यह भी अवगत कराया कि याचिकाकर्ताओं को बेदखली से पहले उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाने का अवसर दिया जाएगा।

सरकार को जवाब देने मिला चार हफ्तों का समय

याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत की डिविजनल बेंच ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक याचिकाकर्ताओं की अपील पर निर्णय नहीं लिया जाता, तब तक प्रशासन द्वारा किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर मध्य प्रदेश नजूल भूमि विमोचन निर्देश, 2020 की धारा 145(1) के तहत उच्च प्राधिकारी के समक्ष अपनी अपील दाखिल करने की स्वतंत्रता दी जाती है। 

बैतूल कलेक्टर और नगर पालिका को दिया आदेश

हाइकोर्ट ने बैतूल कलेक्टर और नगर पालिका को यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ताओं की अपील प्राप्त होने के बाद, छह सप्ताह के भीतर इस पर निर्णय लिया जाए और उसका रिकॉर्ड रखा जाए। हाईकोर्ट के अगले आदेश तक, बिना न्यायालय की अनुमति के बैतूल जिले की उक्त भूमि पर स्थित आवासीय संपत्तियों पर कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। अब इस मामले में राज्य सरकार सहित बैतूल कलेक्टर और अन्य प्रतिवादियों को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करना होगा। इसके बाद, याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर दाखिल करने का अवसर दिया जाएगा।

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प्रभावित परिवारों को मिली बड़ी राहत

हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद 151 परिवारों को फिलहाल बड़ी राहत मिली है, क्योंकि अब बिना कानूनी प्रक्रिया के उनके मकानों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। इस फैसले के बाद स्थानीय निवासियों में न्यायपालिका के प्रति विश्वास बढ़ा है और उन्होंने इसे अपनी बड़ी जीत बताया है। स्थानीय निवासियों ने हाईकोर्ट के इस आदेश पर राहत की सांस ली और कहा कि अब प्रशासन मनमाने तरीके से उनकी बेदखली नहीं कर पाएगा।

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