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Photograph: (the sootr)
JABALPUR. जबलपुर में एक सहकारी गृह निर्माण समिति पर घोटाले के आरोप लगे हैं। समिति ने पास किए गए नक्शे की नाली और सड़के तक बेच डाली। हाईकोर्ट ने सरकार, जबलपुर कलेक्टर सहित जिम्मेदारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
यह मामला शास्त्री नगर सगड़ा क्षेत्र का है। यहां जमीन के नक्शे को बदलकर, न केवल असल भूमि, बल्कि सड़क और नाली जैसे सार्वजनिक स्थानों का भी नामांतरण किया गया। इस घोटाले को लेकर स्थानीय पर्यावरण सामाजिक समिति और आरके. यादव ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। हाईकोर्ट ने इस मामले में सरकार और अन्य संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
स्वीकृति से दोगुने प्लॉट बेचने का आरोप
याचिका में बताया गया है कि वर्ष 1979 में लघु वेतन समिति द्वारा शास्त्री नगर सगड़ा क्षेत्र में कॉलोनी निर्माण शुरू किया गया था। जिसके लिए नगर तथा ग्राम निवेश विभाग से विधिवत लेआउट प्लान की स्वीकृति ली गई थी।
इस लेआउट में लगभग 400 से 450 प्लॉट ही स्वीकृत थे। आरोप है कि समिति ने करीब 1000 प्लॉटों की बिक्री कर दी। गंभीर आरोप यह भी है कि जिन भूखंडों की बिक्री की गई, वे न तो समिति के नाम दर्ज थे और न ही स्वीकृत लेआउट प्लान का हिस्सा थे। कुछ भूमि तो शासन के नाम पर दर्ज थी, इसके बावजूद उसका विक्रय कर दिया गया।
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90% नामांतरण बताए अवैध
याचिका के अनुसार समिति ने राजस्व अधिकारियों से सांठगांठ कर बड़े पैमाने पर अवैध नामांतरण कराए। आरोप है कि कॉलोनी के लगभग 90 प्रतिशत नामांतरण नियमों के खिलाफ हैं।
स्थिति यह है कि जिस व्यक्ति का प्लॉट जिस खसरे में है, उसका नामांतरण किसी दूसरे खसरे में कर दिया गया, जबकि कब्जा किसी तीसरे खसरे पर है। इस गड़बड़ी के कारण वैध प्लॉट धारक आज नामांतरण के लिए राजस्व कार्यालयों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं।
नाली और सड़क तक बेच दी
याचिका के अनुसार समिति ने असल जमीन से अधिक भूखंड बेच दिए है। इसके कारण अब राजस्व रिकार्ड में जमीन ही नहीं बची है। इसी वजह से करीब 200 प्लॉट होल्डरों का नामांतरण अब तक नहीं हो पा रहा है।
आरोप है कि समिति ने जितनी जमीन खरीदी थी, उससे लगभग दोगुनी जमीन बेच दी है। इतना ही नहीं, कॉलोनी की लगभग 30 प्रतिशत भूमि जो सड़क, पार्क और नाली के लिए आरक्षित थी, उसका भी नामांतरण करा दिया गया।
कलेक्टर की जांच में गड़बड़ियां
मामले में यह तथ्य भी सामने आया कि तत्कालीन कलेक्टर द्वारा इस पूरे प्रकरण की जांच कराई गई थी। जांच रिपोर्ट में नामांतरण प्रक्रिया में भारी अवैधानिकता पाए जाने की बात स्वीकार की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार भूमि मालिकों की रजिस्ट्री और वास्तविक कब्जे के आधार पर नामांतरण नहीं किए गए।
तत्कालीन कलेक्टर ने पुराने नामांतरण रद्द कर नए सिरे से प्रक्रिया करने के मौखिक निर्देश भी दिए थे। स्मार्ट सिटी और नगर निगम जबलपुर से लघु वेतन समिति के प्लॉटों का नक्शा भी तैयार कराया गया। लेकिन कलेक्टर के ट्रांसफर के बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
होगा बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा
अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 2022 से लगातार शिकायतें की जा रही हैं। लेकिन प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई। इस कारण करीब 200 लोग आज भी नामांतरण के लिए भटक रहे हैं।
स्थिति यह है कि खरीदार ने खसरा नंबर 1 के लिए भुगतान किया। नामांतरण खसरा नंबर दो के लिए हुआ। जमीन उसे खसरा नंबर 3 की मिली। उन्होंने इसे अपने आप में एक बड़ा नामांतरण घोटाला बताया। इसमें प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार दोनों नजर आ रहे हैं।
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हाईकोर्ट का आदेश-नोटिस जारी
मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा हैं। यह नोटिस राज्य सरकार,जबलपुर कलेक्टर,टीएनसीपी के जॉइंट डायरेक्टर और गोरखपुर एसडीएम और तहसीलदार के साथ समिति को दिया गया है।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि अब तक याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर अधिकारियों के द्वारा क्या-क्या कार्रवाई की गई है। इसकी विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट अगली सुनवाई में पेश की जाए। अगली सुनवाई 27 जनवरी को होगी।
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